अषाढः २४७८ः १८३ः
सिद्धनुं स्वरूप अने सिद्धिनो पंथ
(जैन शिक्षणवर्गनी उत्तमश्रेणीनी परीक्षामां पुछायेला पहेला प्रश्नना उत्तररूप निबंध)
‘कर्मबंध सौ कापीने पहोंच्या मोक्ष सुथान,
नमुं सिद्ध परमात्मा ध्यान करुं अमलान.’
सिद्धपणुं ते आत्मानी संपूर्ण शुद्ध, परिपूर्ण निर्विकारी पर्याय छे. निश्चयथी दरेक आत्मा सिद्ध जेवो छे.
‘सिद्धसमान सदा पद मेरो’ एम पोताना आत्मस्वभावनी ओळखाण करीने तेमां एकाग्र थवुं ते सिद्धपदनो
उपाय छे. आत्मानी विकारीदशानुं नाम संसार छे. सिद्धभगवान जेवो मारो आत्मा छे–तेने भूलीने, शरीर ते हुं
छुं ने शरीरादिनी क्रिया हुं करी शकुं छुं–एवी जे मिथ्या मान्यता छे ते संसारनुं मूळ छे, तेथी ते मिथ्यात्वने
महापाप कहेवामां आवे छे. जो आत्मानुं भान करीने ते मिथ्यात्वनो नाश करे तो अल्पकाळमां जीव सिद्ध थया
विना रहे नहि.
सिद्धदशा एटले मोक्ष; मोक्ष शुं छे अने तेनो उपाय शुं छे, ते बाबतमां आ आत्मसिद्धिमां कह्युं छे के–
‘मोक्ष कह्यो निज शुद्धता, ते पामे ते पंथ’
आत्मानी पूर्ण शुद्धता ते मोक्ष छे अने ते मोक्ष जेनाथी पमाय छे एवा सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्र ते
मोक्षनो उपाय छे.
स्वभावथी तो बधा आत्मा सिद्ध जेवा छे, पण अवस्थामां सिद्धदशा नवी प्रगटे छे. जो पोताना
स्वभावनो विश्वास करीने तेमां एकाग्र थाय तो सिद्धदशा प्रगटे. आत्मसिद्धिमां पण कह्युं छे के–
‘सर्व जीव छे सिद्धसम,
जे समजे ते (सिद्ध) थाय.’
–तेथी सिद्ध थवा माटे सौथी पहेलां पोताना आत्मस्वभावनी ओळखाण करवी जोईए.
तत्त्वार्थसूत्रना पहेला ज सूत्रमां कहे छे के ‘सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः’–सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्र ते मोक्षनो मार्ग छे; त्रणेकाळे कोई पण जीवने माटे आ एक ज मोक्षनो मार्ग छे,–केम के ‘एक होय त्रण
काळमां परमारथनो पंथ.’
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भगवान श्री कुंदकुंदाचार्यदेवे समयसारनी शरूआतमां ज ‘वंदित्तु सव्वसिद्धे’ एम कहीने सर्वे सिद्ध
भगवंतोने नमस्कार कर्या छे अने आत्मामां सिद्धपणुं स्थाप्युं छे; वर्तमानमां पोताने सिद्धदशा प्रगट न होवा
छतां, जेवुं सामर्थ्य सिद्ध भगवंतोमां छे तेवुं ज सामर्थ्य मारा आत्मामां पण छे–एम स्वभावसामर्थ्यनो विश्वास
करीने धर्मीजीव पोताना आत्मामां सिद्धपणानी स्थापना करे छे. ए रीते, कुंदकुंद भगवाने कह्या प्रमाणे आत्मामां
सिद्धपणुं स्थापीने तेनो आदर करतां करतां, स्वभाव तरफना उत्साहना बळे सम्यग्दर्शन अने सम्यग्ज्ञानसहित
चारित्रदशा प्रगट थतां ते मुनि थाय छे.–आवा मुनिवरो मोक्षमार्गे विचरे छे.
मुनि थईने अंर्तस्वभावमां एकाग्रतानो अभ्यास करतां करतां, उपयोगने आत्मामां स्थिर करीने
क्षपकश्रेणी मांडीने चार घाति कर्मोनो क्षय करी केवळज्ञान–केवळदर्शन–अनंतसुख अने अनंतवीर्य एवा चतुष्टय
प्रगट करे छे. ए दशानुं वर्णन करतां ‘अपूर्व अवसर’ मां कहे छे के–