: श्रावण : २००८ : आत्मधर्म–१०६ : १९७ :
श्री सनातन जैन शिक्षण–वर्ग
विद्यार्थीओने उनाळानी रजाओ दरमियान ता. १२–५–५२ वैशाख वद त्रीजथी ता. ५–६–५२ जेठ
सुद बारस सुधी सोनगढमां श्री जैन स्वाध्याय मंदिर तरफथी जैनदर्शन शिक्षणवर्ग खोलवामां आव्यो
हतो. आ वर्षे वर्गमां लगभग १४० विद्यार्थीओ आव्या हता, अने त्रण श्रेणीओ राखवामां आवी हती.
उत्तम श्रेणीमां द्रव्यसंग्रह तथा जैनसिद्धांतप्रवेशिका, मध्यम श्रेणीमां छहढाळा तथा जैनसिद्धांतप्रवेशिका
अने बाल श्रेणीमां जैनबाळपोथी तथा जैनसिद्धांतप्रवेशिका चालता हता. ता. २–६–५२ ना रोज वर्गनी
परीक्षा लेवामां आवी हती अने बधा विद्यार्थीओ वच्चे लगभग ४०० रूा. नी किंमतनां पुस्तको तथा
फोटाओ ईनाम तरीके वहेंचाया हता, तेम ज ‘प्रमाण–पत्र’ पण आपवामां आव्या हता. परीक्षामां उत्तम
श्रेणीना विद्यार्थीओने पूछायेला प्रश्नो तथा तेना जवाबो अहीं आपवामां आवे छे.
उत्तमश्रेणीना प्रश्नो अने तेना उत्तर
[द्रव्यसंग्रह तथा जैनसिद्धांतप्रवेशिका]
प्रश्न : १ सिद्धत्व शुं छे? ते केवी रीते प्राप्त थई शके छे? ते प्राप्त थतां शुं शुं प्रगटे छे? अने तेमने कांई
बाह्यसामग्रीनुं सुख छे के नहि? –ए विषय उपर एक निबंध लखो.
[आ प्रश्नना उत्तररूप निबंध गया अंकमां छपायेल छे, त्यांथी वांची लेवो.]
प्रश्न : २ (अ) जीवना नव अधिकारना नाम लखो.
(ब) जीवत्व, कर्तृत्व अने संसारित्व अधिकारमां जे जे नयथी कथन करवामां आव्युं होय ते लखी ते
दरेक नय शुं बतावे छे ते समजावो.
उत्तर : २ (अ) जीवत्व, उपयोगमयत्व, अमूर्तित्व, कर्तृत्व, भोक्तृत्व, स्वदेहपरिमाणत्व, संसारित्व,
सिद्धत्व अने विस्त्रसा ऊर्ध्वगमनत्व–आ प्रमाणे जीवना नव अधिकारो छे.
(ब) जीवअधिकारमां व्यवहारनय अने निश्चयनयथी कथन करवामां आव्युं छे.
आ जीव ईन्द्रिय, बळ, श्वासोच्छ्वास अने आयु प्राणथी जीवे छे–एम कहेवुं ते व्यवहारनयनुं कथन छे;
अहीं व्ययहारनय जड प्राणोनो संयोग बतावे छे.
आ जीव चेतना प्राणथी जीवे छे–एम कहेवुं ते निश्चयनयनुं कथन छे; अहीं निश्चयनय वस्तुनुं असली
स्वरूप बतावे छे.
कर्तृत्वअधिकारमां व्यवहारनय, अशुद्ध निश्चयनय अने शुद्ध निश्चयनयथी कथन करवामां आव्युं छे.
व्यवहारनयथी जीव द्रव्यकर्म अने नोकर्मनो कर्ता छे; अहीं व्यवहारनय जडना कर्तापणामां जीवना
रागादिनुं निमित्तपणुं बतावे छे.
अशुद्ध निश्चयनयथी जीव रागादि विकारभावोनो कर्ता छे; अहीं अशुद्धनिश्चयनय जीवनी पोतानी
अशुद्धताने बतावे छे.
शुद्ध निश्चयनयथी जीव शुद्ध ज्ञानदर्शनमय भावोनो कर्ता छे; अहीं शुद्ध निश्चयनय जीवना शुद्ध
परिणामोने बतावे छे.
संसारित्व अधिकारमां व्यवहारनय अने निश्चयनयथी कथन करवामां आव्युं छे.
व्यवहारनयथी आ जीव चौद जीवसमास, चौद गुणस्थान अने चौद मार्गणास्थानवाळो छे; अहीं
व्यवहारनय जीवनी भेदरूप अशुद्धता बतावे छे.
निश्चयनयथी सर्वे जीवो शुद्ध छे; अहीं निश्चयनय जीवनी अभेदरूप शुद्धता बतावे छे.