Atmadharma magazine - Ank 106
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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: १९८ : आत्मधर्म–१०६ : श्रावण : २००८ :
प्रश्न : ३ (क) उपयोगनी व्याख्या लखो तथा तेना भेद अने पेटाभेद लखो.
(ख) अपूर्णज्ञान क्या क्या छे ने ते दरेकनी पहेलांं क्यो क्यो दर्शनउपयोग होय छे?
(ग) जीव पैसानो उपयोग करी शके के नहि? ते कारण आपी समजावो.
(घ) एक विद्यार्थी जिनमंदिरमां बेसी ‘द्रव्यसंग्रह’ वांचतो हतो. पछी तेणे सीमंधर भगवाननी
प्रतिमाजीनां दर्शन कर्यां ने त्यार पछी एक भक्तिकाव्य सांभळ्‌युं; –आमां वांचन, दर्शन अने श्रवण करवामां
क्या क्या उपयोग थया ते अनुक्रमे लखो.
उत्तर : ३ (क) चैतन्यने अनुसरीने थता आत्माना परिणामने उपयोग कहे छे; तेना बे भेद छे– (१)
दर्शनउपयोग अने (२) ज्ञानउपयोग. तेना विशेष भेदो १२ छे ते आ प्रमाणे: (१) चक्षुदर्शन (२)
अचक्षुदर्शन (३) अवधिदर्शन अने (४) केवळदर्शन; (५) कुमतिज्ञान (६) कुश्रुतज्ञान (७) कुअवधिज्ञान
(८) मतिज्ञान (९) श्रुतज्ञान (१०) अवधिज्ञान (११) मनःपर्ययज्ञान अने (१२) केवळज्ञान.
आ रीते दर्शनउपयोगना ४ अने ज्ञानउपयोगना ८ एम कुल १२ भेदो छे.
(ख) मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान अने मनःपर्ययज्ञान–ए चार ज्ञानो अपूर्ण छे.
मतिज्ञान पहेलांं चक्षुदर्शन के अचक्षुदर्शननो उपयोग होय छे.
श्रुतज्ञान मतिपूर्वक ज होय छे, एटले श्रुतज्ञान पहेलांं दर्शननो उपयोग होतो नथी.
अवधिज्ञान पहेलांं अवधिदर्शननो उपयोग होय छे. मनःपर्ययज्ञान पहेलांं मतिज्ञाननो ‘ईहा’ नामनो
भेद होय छे, एटले मनःपर्ययज्ञाननी पहेलांं पण दर्शन–उपयोग होतो नथी.
(ग) जीव पैसानो उपयोग करी शके नहि; कारण के जीव चेतन छे ने पैसा अचेतन छे. जीव पोतानी
चैतन्यमय पर्यायने भोगवी शके पण जडनी पर्यायने भोगवी शके नहि. जीव अने पैसा वच्चे अत्यंत अभाव
छे. जो जीव पैसानो उपयोग करी शके तो ते पोते जड थई जाय, अथवा तो पैसा चेतन थई जाय. –पण एम
कदी बनतुं नथी.
(ध) विद्यार्थीने वांचन वखते मतिज्ञानरूप उपयोग हतो; त्यार पछी सीमंधर भगवानना दर्शन
कर्या पहेलांं चक्षुदर्शननो उपयोग थयो; प्रतिमाजीनां दर्शन कर्या त्यारे नेत्रजन्य मतिज्ञाननो उपयोग
थयो; भक्तिना श्रवण पहेलांं अचक्षुदर्शननो उपयोग थयो, अने श्रवण वखते कर्णेन्द्रियसंबंधी
मतिज्ञाननो उपयोग थयो.
प्रश्न : ४ नीचेना प्रश्नोना जवाब कारण सहित आपो.
(१) सिद्धभगवान परिपूर्ण थई गया छे तो तेओ अलोकाकाशने जाणी शके? तेम ज त्यां जई शके के नहि?
(२) घडियाळना जे बे कांटा देखाय छे ते निश्चयकाळ छे के व्यवहारकाळ?
(३) एक वृक्षनां पांदडा चाले छे ते क्या गुणने कारणे? ने ते पांदडानो पडछायो नीचे चालतो देखाय
छे ते क्या गुणने कारणे?
(४) आकाशने धर्मद्रव्य निमित्त छे के अधर्मद्रव्य?
(५) अरिहंत भगवान तथा सिद्ध भगवानना पर्यायमां शो फेर छे?
(६) जीवनो आकार मोटो होय तो तेने सुख थाय के जड ईन्द्रियो वधारे होय तो सुख थाय?
उत्तर : ४ (१) सिद्ध भगवान परिपूर्ण थई गया छे तेथी तेमने परिपूर्ण एवुं केवळज्ञान प्रगटी गयुं
छे; ते केवळज्ञान सर्व पदार्थोने जाणे छे तेथी तेना द्वारा सिद्ध भगवान अलोकाकाशने पण जाणे छे. अने
अलोकाकाशमां ‘प्रमेयत्व’ नामनो गुण छे तेथी ते केवळज्ञानमां जणाय छे.
सिद्धभगवान अलोकाकाशने जाणता होवा छतां तेओ अलोकाकाशमां जई शकता नथी पण लोकना
अग्रभागे बिराजमान थाय छे. निश्चयथी तेमनी गतिनी योग्यता त्यां सुधी ज जवानी छे, अने निमित्त तरीके
कहीए तो अलोकाकाशमां गतिना निमित्तभूत एवा धर्मद्रव्यनो अभाव