(ख) अपूर्णज्ञान क्या क्या छे ने ते दरेकनी पहेलांं क्यो क्यो दर्शनउपयोग होय छे?
(ग) जीव पैसानो उपयोग करी शके के नहि? ते कारण आपी समजावो.
(घ) एक विद्यार्थी जिनमंदिरमां बेसी ‘द्रव्यसंग्रह’ वांचतो हतो. पछी तेणे सीमंधर भगवाननी
क्या क्या उपयोग थया ते अनुक्रमे लखो.
अचक्षुदर्शन (३) अवधिदर्शन अने (४) केवळदर्शन; (५) कुमतिज्ञान (६) कुश्रुतज्ञान (७) कुअवधिज्ञान
(८) मतिज्ञान (९) श्रुतज्ञान (१०) अवधिज्ञान (११) मनःपर्ययज्ञान अने (१२) केवळज्ञान.
(ख) मतिज्ञान, श्रुतज्ञान, अवधिज्ञान अने मनःपर्ययज्ञान–ए चार ज्ञानो अपूर्ण छे.
मतिज्ञान पहेलांं चक्षुदर्शन के अचक्षुदर्शननो उपयोग होय छे.
श्रुतज्ञान मतिपूर्वक ज होय छे, एटले श्रुतज्ञान पहेलांं दर्शननो उपयोग होतो नथी.
अवधिज्ञान पहेलांं अवधिदर्शननो उपयोग होय छे. मनःपर्ययज्ञान पहेलांं मतिज्ञाननो ‘ईहा’ नामनो
छे. जो जीव पैसानो उपयोग करी शके तो ते पोते जड थई जाय, अथवा तो पैसा चेतन थई जाय. –पण एम
कदी बनतुं नथी.
थयो; भक्तिना श्रवण पहेलांं अचक्षुदर्शननो उपयोग थयो, अने श्रवण वखते कर्णेन्द्रियसंबंधी
मतिज्ञाननो उपयोग थयो.
(१) सिद्धभगवान परिपूर्ण थई गया छे तो तेओ अलोकाकाशने जाणी शके? तेम ज त्यां जई शके के नहि?
(२) घडियाळना जे बे कांटा देखाय छे ते निश्चयकाळ छे के व्यवहारकाळ?
(३) एक वृक्षनां पांदडा चाले छे ते क्या गुणने कारणे? ने ते पांदडानो पडछायो नीचे चालतो देखाय
(५) अरिहंत भगवान तथा सिद्ध भगवानना पर्यायमां शो फेर छे?
(६) जीवनो आकार मोटो होय तो तेने सुख थाय के जड ईन्द्रियो वधारे होय तो सुख थाय?
उत्तर : ४ (१) सिद्ध भगवान परिपूर्ण थई गया छे तेथी तेमने परिपूर्ण एवुं केवळज्ञान प्रगटी गयुं
अलोकाकाशमां ‘प्रमेयत्व’ नामनो गुण छे तेथी ते केवळज्ञानमां जणाय छे.
कहीए तो अलोकाकाशमां गतिना निमित्तभूत एवा धर्मद्रव्यनो अभाव