Atmadharma magazine - Ank 106
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 12 of 21

background image
: श्रावण : २००८ : आत्मधर्म–१०६ : १९९ :
छे. वळी सिद्ध भगवान ते लोकनुं द्रव्य छे; लोकनुं द्रव्य लोकनी बहार केम जाय?
(२) घडियाळना जे बे कांटा देखाय छे ते निश्चयकाळ नथी तेम ज व्यवहारकाळ पण नथी, ते तो
पुद्गलद्रव्यनी पर्याय छे; केमके ते तो ईन्द्रियनो विषय होवाथी प्रगटपणे रूपी छे, अने रूपी तो पुद्गल ज होय.
काळद्रव्य ईन्द्रियनो विषय थाय नहि, केमके ते अरूपी छे.
(३) वृक्षनां पांदडां पुद्गल द्रव्यनी पर्याय छे; पुद्गलमां क्रियावर्ती नामनी एक शक्ति छे, ते शक्तिना
कारणे तेनुं क्षेत्रांतर थाय छे, अने तेथी ज पांदडा चाले छे.
नीचे जे पडछायो चालतो देखाय छे तेमां खरेखर ते पडछायो नथी चालतो, पण ते ते जग्याना
परमाणुओ पोते ज द्रव्यत्वगुणने कारणे ऊजळी अने काळी अवस्थारूपे थाय छे.
(४) आकाशने धर्मद्रव्य के अधर्मद्रव्य बेमांथी एकेय निमित्त नथी; केमके धर्मद्रव्य तो गतिरूप परिणत द्रव्योने
गतिमां निमित्त छे, आकाशद्रव्य कांई गति करतुं नथी. तेथी तेने धर्मद्रव्य निमित्त नथी. अने अधर्मद्रव्य गतिपूर्वक
स्थिति पामनारा द्रव्योने निमित्त छे, आकाशद्रव्य तो सदाय स्थिर ज छे, ते गतिपूर्वक स्थितिने पामेलुं नथी, माटे तेने
अधर्मद्रव्य पण निमित्त नथी. गति–स्थितिमां धर्म–अर्धमद्रव्यनुं निमित्तपणुं जीव अने पुद्गलने ज छे.
(५) अरिहंत भगवानने ज्ञानादिगुणोनी स्वभावअर्थपर्याय छे, योग वगेरे गुणोनी
विभावअर्थपर्यायो छे तथा प्रदेशत्वगुणनी विभावव्यंजनपर्याय छे. अने सिद्धभगवानने स्वभावअर्थपर्याय
तथा स्वभावव्यंजनपर्याय छे, तेमने विभावअर्थपर्याय के विभावव्यंजनपर्याय नथी.
अरिहंत भगवानने बधी अर्थपर्यायो स्वभावरूप थई नथी पण केटलीक थई छे, अने सिद्ध भगवानने
तो बधी अर्थपर्यायो स्वभावरूप थई गई छे. वळी अरहंत भगवानने व्यंजनपर्याय पण विभावरूप छे ने सिद्ध
भगवानने ते स्वभावरूप छे.
(६) जीवनो आकार मोटो होय तो तेने सुख थाय एम नथी; केमके सुख तो अर्थपर्याय छे अने आकार
ते व्यंजनपर्याय छे, तेथी नानो–मोटो आकार ते सुख–दुःखनुं कारण नथी, पण सुख गुणनी स्वभावअर्थपर्याय
ते सुख छे, ने विभावअर्थपर्याय ते दुःख छे.
वळी जड ईन्द्रियो वधारे होय तो जीवने सुख थाय – एम पण नथी; केमके जड ईन्द्रियोमां सुख नथी
तेथी ते जीवने सुखनुं कारण नथी, सुख तो आत्मामां ज छे.
प्रश्न : ५ () अभावना प्रकार अने तेनी व्याख्या लखो.
() नीचेना वाक्योमां जे शब्दोनी नीचे लीटी करी छे तेनी वच्चे क्यो अभाव छे ते कारणसहित लखो :
(१) जीवनी मरजीथी मुखमांथी वाणी नीकळी.
(२) सोनीए हथोडीवडे कुंडळ बनाव्युं.
(३) आहारवर्गणामांथी आहारकशरीर थयुं.
(४) कर्म आत्माने संसारमां रखडावे.
(५) वर्तमानमां बिराजमान सीमंधर परमात्मा भविष्यमां सिद्ध थवाना छे.
(६) ‘द्रव्यसंग्रह’ वांचीने मने ज्ञान थयुं.
(७) एक गृहस्थे धन खर्च्युं तेथी तेने धर्म थयो.
[नोट :– अहीं लखेला वाक्यो मात्र ‘अभाव’ना प्रकारोने शोधी काढवा माटे लखवामां आव्या छे, ते
वाक्यो प्रमाणे सिद्धांत छे एम न समजवुं.]
उत्तर : ५ () ‘अभाव’ना चार प्रकार छे– (१) प्राक्अभाव (२) प्रध्वंसअभाव (३)
अन्योन्यअभाव अने (४) अत्यंतअभाव.
(१) प्राक्अभाव= एक द्रव्यनी वर्तमान पर्यायनो तेनी पूर्वपर्यायमां अभाव.
(२) प्रध्वंसअभाव= एक द्रव्यनी वर्तमान पर्यायनो तेनी भविष्यनी पर्यायमां अभाव.
(३) अन्योन्यअभाव= एक पद्गलद्रव्यनी वर्तमान पर्यायनो बीजा पुद्गलद्रव्यनी वर्तमान पर्यायमां अभाव.
(४) अत्यंतअभाव= एक द्रव्यनो बीजा द्रव्यमां अभाव.
(
) (१) ‘मरजी’ अने ‘मुख’ वच्चे अत्यंतअभाव छे; कारण के मरजी ते जीवनी पर्याय छे अने मुख
ते पुद्गलनी पर्याय छे.
‘मुख’ अने ‘वाणी’ वच्चे अन्योन्यअभाव छे; कारण के ते बंने पुद्गलद्रव्यनी वर्तमान पर्यायो छे.