तेमां लीन थतां केवळज्ञान अने केवळदर्शननुं व्यक्त परिणमन थई जाय छे.
माटे तेने लोकालोकनी सन्मुख थवुं नथी पडतुं, पण आत्मसन्मुख रहीने ज लोकालोकने देखी ल्ये एवी
आत्मानी ताकात छे. अने आत्माना आवा सामर्थ्यनी प्रतीत पण कोई पर वडे के परनी सन्मुखताथी थती
नथी, स्वरूपसन्मुखताथी ज तेनी प्रतीत थाय छे.
ज मान्यो नथी. अंर्तद्रष्टि वगर पोताने पंडित मानीने लोको अनेक प्रकारना कुतर्क करे छे, पण चैतन्यवस्तु
एकला तर्कनो विषय नथी, आ मार्ग तो अंर्तद्रष्टि अने अनुभवनो छे. आचार्यदेवे अहीं स्पष्ट कह्युं छे के
आत्माना दर्शनस्वभावमां सर्वदर्शीपणे परिणमवानी ताकात छे. सर्वज्ञता अने सर्वदर्शितारूपे आत्मानुं
परिणमन थई शके छे–एवी पण जेने प्रतीत नथी तेणे तो खरेखर सर्वज्ञदेवने ज मान्या नथी एटले तेने तो
जैनधर्मनी व्यवहारश्रद्धा पण नथी.
भगवाननी स्तुतिमां आवे छे के
विश्वास न करे तो धर्मनो लाभ थाय नहि, अने तेणे भगवाननी परमार्थस्तुति करी न कहेवाय. भगवानमां
तेनो विश्वास करे तेणे ज भगवाननी खरी स्तुति करी छे.
स्वभाव नथी. लोकालोकने देखतां आत्मा लोकालोकमय थई जतो नथी माटे आ सर्वदर्शित्वशक्ति
आत्मदर्शनमय छे. सामे लोकालोक छे माटे अहीं सर्वदर्शीपणुं छे एम नथी. लोकालोकने लीधे आत्मानुं
सर्वदर्शीपणुं खीलतुं नथी; जो लोकालोकथी ते खीलतुं होय तो, लोकालोक तो अनादिथी छे तेथी सर्वदर्शीपणुं पण
अनादिथी खीलवुं जोईए. माटे कह्युं के सर्वदर्शित्वशक्ति आत्मदर्शनमय छे, आत्माना अवलंबने सर्वदर्शीपणुं
खीली जाय छे. जेणे सर्वदर्शी एवा निज आत्माने देख्यो तेणे बधुं देख्युं. यथार्थपणे एक पण शक्तिने देखतां
अनंतगुणमय आखुं द्रव्य ज देखवामां आवी जाय छे, एक गुणनी प्रतीत करतां अभेदपणे आखुं द्रव्य ज
प्रतीतमां आवी जाय छे, केमके ज्यां एक गुण छे त्यां ज अभेदपदे अनंतगुणो छे.
परिपूर्ण द्रव्यना लक्षे ज सर्वदर्शीपणानो परिपूर्ण विकास थाय छे; एटले द्रव्यद्रष्टि करवी ते ज तात्पर्य छे एम
सिद्ध थाय छे. कोई निमित्तमां के रागमां एवी ताकात नथी के सर्वदर्शिता आपे. अधूरी पर्यायमां पण
सर्वदर्शिता आपवानी ताकात नथी; सर्वदर्शिता आपवानी ताकात तो त्रिकाळी द्रव्यमां ज छे, माटे द्रव्यनो
आश्रय करीने परिणमवुं ते ज सर्वदर्शी थवानो उपाय छे.
नजीकनी वस्तुथी लाभ माने–एवुं पण सर्वदर्शित्वशक्तिमां नथी. जेणे सर्वदर्शित्वसामर्थ्यनी प्रतीत करी छे ते
जीव कोई पण परवस्तुथी लाभ–नुकसान मानतो नथी. सर्वदर्शित्व तो आत्मदर्शनमय छे, तेनो संबंध पर साथे
नथी; तो पछी महाविदेह वगेरे दूरनी वाणीथी लाभ न थाय ने आ नजीकनी साक्षात् वाणीथी