वर्णन हतुं, ने आ सर्वदर्शित्वशक्ति कहीने दर्शनना परिपूर्ण सामर्थ्यनुं विशेष वर्णन कर्युं छे. सर्व पदार्थना
समुहरूप लोकालोकने सत्तामात्र देखे एवी सर्वदर्शित्वशक्ति छे. आत्मामां लोकालोकने देखवानी शक्ति छे पण
तेने पोतानां करवानी के तेमां कांई ऊथल पाथल करवानी आत्मानी ताकात नथी. जेम आंखनो स्वभाव
पदार्थोने फक्त देखवानो छे पण तेमां आघुंपाछुं करवानो आंखनो स्वभाव नथी; तेम आत्माने दर्शन अने
ज्ञानरूपी आंखो छे, तेनो स्वभाव समस्त पदार्थोने देखवा–जाणवानो छे, पण क्यांय घालमेल करवानो तेनो
स्वभाव नथी.
माने नहि तेम ज रागने के अल्पदर्शिताने पण पोतानुं स्वरूप न माने; त्रिकाळी सर्वदर्शित्वशक्तिनी सन्मुख
थतां ते बधानो महिमा छूटी जाय छे. साधकनी पर्यायमां हजी सर्वदर्शीपणुं प्रगट्युं न होवा छतां तेने सर्वदर्शित्व
परिणमननी प्रतीत छे के सर्वदर्शित्वपणे परिणमवानी ताकात मारामां अत्यारे पण भरी छे. सर्वदर्शीपणुं एटले
केवळदर्शन; ते केवळदर्शनरूपे परिणमवानी ताकात जो मारामां न होय तो केवळदर्शननुं व्यक्त परिणमन क्यांथी
थशे? त्रिकाळी शक्तिनी प्रतीतमां तेनी व्यक्तिनी प्रतीत पण आवी ज जाय छे.
तेणे आत्माना केवळज्ञान–केवळदर्शननी प्रतीत करवी. लोकालोकनी संपदा कांई आत्मामां घूसी जती नथी, पण
ज्ञानदर्शनमां लोकालोक जणाय–देखाय ते ज लोकालोकनी प्राप्ति छे. खरेखर तो ज्ञान ज्ञानमां छे ने लोकालोक
लोकालोकमां छे, पण लोकालोकनुं ज्ञान थई गयुं ते अपेक्षाए तेनी प्राप्ति कहेवाय छे. जे थोडुं थोडुं मांगशे–एटले
के अल्पतानी भावना करशे तेने कांई नहि मळे अने जे पूर्णतानी भावना भावशे तेने पूरुं मळशे–बधुंय
जणाशे. माटे लक्ष्मी वगेरे परने मेळववानी भावना छोडीने एवी भावना भावो के जेमां बधुंय एक साथे
जणाय एवुं केवळज्ञान हजो! अत्यारे केवळदर्शननी वात चाले छे, पछी दसमी शक्तिमां केवळज्ञाननी वात
करशे; वस्तुमां तो बंने एक साथे ज छे. केवळज्ञान अने केवळदर्शनरूप परिणमन थाय तेवी