: १९४ : आत्मधर्म–१०६ : श्रावण : २००८ :
केवळज्ञान अने सिद्धदशा प्रगट्या पछी एवा ने एवा अनंतकाळ रहेता होवा छतां तेमांय क्षणे क्षणे परिणमन
तो थया ज करे छे.
दुःख अने सुख बंने दशामां जो आत्मानी सळंगता न होय तो दुःख टाळीने सुख प्रगट्युं तेने भोगवशे
कोण? अने जो आत्मामां क्षणिकता न होय तो दुःखनो नाश थईने सुख प्रगटे कई रीते? माटे आत्मा ध्रुवपणे
नित्य टकनारो होवा छतां उत्पाद–व्ययपणे क्षणिक पण छे, द्रव्यरूपे सळंग टकीने क्षणे क्षणे नवी नवी पर्यायपणे
ऊपजे छे, ने जूनी पर्यायथी नाश पामे छे. जेम रामना स्वांग वखते रावणनो स्वांग न होय ने रावणना
स्वांग वखते रामनो स्वांग न होय एटले स्वांग अपेक्षाए क्षणिकता छे, पण नट तो बधाय स्वांगोमां
सळंगपणे रहेलो छे; तेम आत्मामां संसार वखते सिद्धदशा न होय ने सिद्धदशा वखते संसार न होय, एटले
पर्याय अपेक्षाए आत्मा अनित्य छे. अने संसार के सिद्ध बधी पर्यायोमां सळंगपणे आत्मा रहेलो छे ते
अपेक्षाए आत्मा नित्य छे.
शास्त्रमां कोईवार केवळज्ञान अने सिद्धदशाने ‘कूटस्थ’ पण कहेवाय; कूटस्थ कहीने त्यां परिणमननो
अभाव नथी बताववो, परंतु समये समये परिणमन थतुं होवा छतां सद्रशरूप केवळज्ञान अने सिद्धदशापणे ज
परिणमन थाय छे, अन्यथा परिणमन नथी थतुं. ते अपेक्षाए तेने कूटस्थ कहेल छे एम समजवुं.
उत्पादव्ययध्रौव्ययुक्तं सत् एटले जे सत् होय ते हंमेशा उत्पाद–व्यय–ध्रुवता सहित ज होय छे. उत्पाद–व्यय–
ध्रुव कहो के नित्य–अनित्यधर्म कहो, तेना वगर कोई वस्तु होई शके ज नहि.
एक वखत एक वेदांती चर्चा सांभळवा आव्यो. थोडी वार बेसीने चर्चा सांभळी, पण अनित्यपर्यायनी
वात सांभळी त्यां तो भडकी ऊठ्यो अने ‘अनित्यतानी वात मारे सांभळवी नथी’ एम कहीने भाग्यो. पण
अरे भाई! तुं एटलुं विचार तो खरो के पहेलांं करतां तुं कांईक नवुं जाणवा आव्यो ते ज तारा ज्ञाननी
अनित्यता सिद्ध करे छे. पहेलांं सांभळवानी जिज्ञासाथी आव्यो ने पछी एम थयुं के मारे आ वात नथी
सांभळवी, –त्यां तारा विचारो बदल्या के नहि? जो आत्मानी सर्वथा नित्यता होय तो आवो विचारनो पलटो
थई शके नहि.
वळी जो आत्मामां अनित्यता न ज होय तो ‘आत्मा नित्य छे’ एवो उपदेश पण होई शके नहि; केमके
सामो जीव आत्माने नित्य नथी मानतो अने हवे तेने नित्य मानवानुं कहे छे, त्यां ज तेनी मान्यतानुं
क्षणिकपणुं साबित थई गयुं.
आ रीते आत्मामां नित्यधर्म अने अनित्यधर्म बंने एक साथे ज रहेला छे. ‘नय’ तेने मुख्य–गौण
करीने जाणे छे, पण वस्तुमां तो बधा धर्मो एक साथे रहेला छे.
अहीं १९मां अनित्यनयथी आत्मानुं वर्णन पूरुं थयुं.
दस लक्षणी धर्म अथवा पर्युषण पर्व : भादरवा सुद पांचमथी शरू करीने
भादरवा सुद चौदस सुधीना दस दिवसो सोनगढमां दस लक्षणी धर्म अथवा पर्युषण पर्व तरीके
ऊजवाशे. आ दिवसो दरमियान उत्तमक्षमा वगेरे दस धर्मो उपर पू. गुरुदेवश्रीना आध्यात्मिक
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जैन अतिथि सेवा समितिनी वार्षिक बेठक : भादरवा सुद बीज ने शुक्रवार ता.
२२–८–५२ना रोज सांजे पांच वागे श्री जैन अतिथि सेवा समितिनी वार्षिक बेठक मळशे. तेमां
सर्वे मेम्बरोने हाजर रहेवा विनंति छे.
धार्मिक प्रवचनना खास दिवसो : सोनगढमां दर वर्षनी माफक श्रावण वद १३ ने
सोमवार ता. १८–८–५२ थी भादरवा सुद ५ ने सोमवार ता. २५–८–५२ सुधीना आठ दिवसो
धार्मिक दिवसो तरीके ऊजवाशे ने आ दिवसोमां पू. गुरुदेवश्रीनां खास प्रवचनो थशे. आ दिवसो
दरमियान घणाखरा मुमुक्षुओने कामधंधाथी निवृत्तिनो विशेष अवकाश मळतो होवाथी तेओ
लाभ लई शके ते हेतुए आ आठ दिवसो राखवामां आवे छे.