Atmadharma magazine - Ank 106
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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: श्रावण : २००८ : आत्मधर्म–१०६ : १९३ :
जेम नाटकमां वेष भजवनार कोई वार राम थाय ने कोई वार रावण थाय, कोई वार भरथरीनो वेष
धरीने आवे ने कोई वार पिंगला थईने आवे, –एम अनेक वेष धारण करतो होवा छतां नट तो तेनो ते ज छे.
तेम आ संसाररूपी नाटकमां जीव कोई वार राजा, कोई वार रंक, कोई वार मुनष्य ने कोई वार देव, कोई वार
पुरुष ने कोई वार स्त्री एम जुदी जुदी क्षणिक पर्यायोने धारण करे छे छतां पोते जीवपणे नित्य अवस्थित छे;
आवो तेनो एक धर्म छे.
नाटकमां राम–रावणादि जुदा जुदा क्षणिक स्वांगो धरवा छतां नट पोते नट तरीके कायम रहे छे, नटपणुं
छोडीने ते कांई पाडो के सिंह थई जतो नथी. तेम आत्मा स्वर्ग नरक, राजा अने मुनिपणुं वगेरे नवी नवी
क्षणिक पर्यायो धारण करतो होवा छतां आत्मा मटीने अन्यरूप थई जतो नथी, पण आत्मपणे नित्य टकनारो
छे. आत्मामां एक साथे अनंत धर्मो छे तेमांथी, नित्यनये जोतां आत्मा नित्यधर्मस्वरूपे प्रतिभासे छे.
–उत्पाद–व्यय–ध्रुव सहित ज दरेक वस्तु छे, आत्मा पण एक समयमां उत्पाद–व्यय ने ध्रुवता एवा त्रण
अंशोने धारण करे छे. तेमां उत्पाद–व्यय अपेक्षाए क्षणिकता छे ने ध्रुव अपेक्षाए नित्यता छे. ध्रुव अपेक्षाए
जोतां आत्मा नित्यपणे देखाय छे; अने उत्पाद–व्यय अपेक्षाए जोतां ते ज आत्मा क्षणिकपणे देखाय छे. अहो!
आवो वस्तुस्वभाव सर्वज्ञभगवानना शासन सिवाय बीजे क्यांय सांभळवा मळतो नथी. सर्वज्ञना मार्ग
सिवाय आवुं अनेकान्तस्वरूप जाणवामां आवी शके नहि अने जे आवुं अनेकान्तस्वरूप जाणे ते सर्वज्ञ थया
विना रहे नहि.
सर्वज्ञ परमात्मा सिवाय बीजाओए पूरुं वस्तुस्वरूप जाण्या विना तेना एकेक अंशने पकडीने तेने ज
वस्तुस्वरूप मानी लीधुं. जेम आंधळाना हाथमां हाथीनुं जे अंग आव्युं तेवो ज हाथी तेणे कल्पी लीधो तेम
अज्ञानीओए वस्तुना एक धर्मने पकडीने तेने ज आखी वस्तु मानी लीधी छे. वेदांत वगेरे वस्तुना एक
नित्यधर्मने पकडीने आत्माने एकांत नित्य ज माने छे, ने बौद्ध एकला अनित्यधर्मने पकडीने आत्माने एकांत
क्षणिक ज माने छे, तेओए यथार्थ वस्तुने जाणी नथी अने तेमनो अंश पण साचो नथी. जैनमां सर्वज्ञभगवान
कहे छे के आत्मामां नित्यपणुं अने अनित्यपणुं बंने धर्मो एक साथे ज रहेला छे, ने ए प्रमाणे दरेक वस्तुमां
अनंतधर्मो एक साथे रहेला छे. –आम आखी वस्तुना स्वीकारपूर्वक कोई अपेक्षाए तेने नित्य कहे अने कोई
अपेक्षाए अनित्य कहे, –तो तेनो नित्यअंश अने अनित्यअंश बंने साचा छे. वेदांतमतमां वस्तुने एकांत नित्य
माने छे पण तेनी साथे रहेला अनित्यअंशने कबूलता नथी एटले तेनो नित्यअंश पण साचो नथी. अने
बौद्धमतमां वस्तुने एकांत क्षणिक माने छे पण तेनी साथे रहेला बीजा नित्यअंशने नथी मानता, तेथी तेनो
क्षणिकअंश पण साचो नथी. जेनो अंशी साचो नथी तेनो अंश पण साचो नथी, वस्तुना यथार्थ स्वरूपने जाण्या
विना तेना एक धर्मनुं पण यथार्थ ज्ञान थतुं नथी. एक धर्मथी वस्तुने कहेतां ते ज वखते बीजा अनंत धर्मो
पण वस्तुमां रहेला छे तेना स्वीकार वगर एक धर्मनो स्वीकार पण साचो नथी. माटे बधा पडखेथी
वस्तुस्वरूपने नक्की करवुं जोईए.
नित्यनयथी वस्तुने ध्रुव–अवस्थित वर्णवी, पण ते ज वखते वस्तुमां अनित्यधर्म पण रहेलो छे, तेथी
हवे अनित्यनयथी तेनुं वर्णन करे छे.
[१९] अनित्यनये आत्मानुं वर्णन
आत्मद्रव्य अनित्यनये, राम–रावणनी माफक, अनवस्थायी छे; जेम नटे धारण करेला राम–रावण वगेरे
स्वांगो क्षणिक छे तेम अनित्यधर्मनी अपेक्षाए जोतां आत्मा क्षणिक छे. अनित्यनयथी आत्माने
अनित्यधर्मपणे जोती वखते पण धर्मीने आत्मानी नित्यतानुं भान साथे ज वर्ते छे.
आत्मानी नित्यता वगर दुःख–सुखादि पर्यायो द्रव्यनी छे एम सिद्ध थाय नहि; दुःख टाळीने सुख प्रगट
कर्युं ते बंने दशाओमां सळंगपणे रहीने जीव ते दुःख–सुखने वेदे छे–एम नित्यता विना साबित थाय नहि. तेम
ज अनित्यता वगर दुःख टाळीने सुख करवानुं, श्रवण–मनन करवानुं वगेरे –कांई कार्य बनी शके नहि. नित्यता
अने अनित्यता एवा बंने धर्मो वगर आत्मानुं अस्तित्व ज सिद्ध न थाय. आत्मामां नित्यपणुं अने
अनित्यपणुं ए बंने धर्मो त्रिकाळ छे.
कोई एम कहे के ‘संसारदशा वखते तो आत्मामां अनित्यधर्म छे, पण सिद्ध थया पछी ते रहेतो नथी’
–तो एम नथी. सिद्धना आत्मामांय अनित्यधर्म पण रहेलो छे.