: १९२ : आत्मधर्म–१०६ : श्रावण : २००८ :
वस्तु जगतमां न होय तेने मिथ्याज्ञान कहेवाय छे; जगतमां पदार्थो जे स्वरूपे सत् छे ते प्रमाणे तेमने ज जाणतां
असत् कल्पना करे छे तेथी ते ज्ञान असत् छे. ते मिथ्याज्ञाननो विषय एटले के तेनी कल्पना प्रमाणेनो पदार्थ आ
जगतमां छे ज नहि. जगतमां मिथ्याज्ञान छे पण तेनुं ज्ञेय नथी. अहो! आखुं जगत सम्यग्ज्ञाननो ज विषय छे. जो
ज्ञान प्रमाणे वस्तुनुं स्वरूप होय तो तो ते ज्ञान मिथ्या न कहेवाय. पण जे ज्ञानप्रमाणे वस्तुनुं स्वरूप न होय ते
ज्ञानने मिथ्या कहेवाय छे एटले के मिथ्याज्ञाननो विषय ज जगतमां नथी. आ संबंधमां केटलाक उदाहरण–
जेम कोई कहे के हुं आकाशना फूलने चूंटु छुं, तो तेनी वात मिथ्या छे, केमके आकाशनुं फूल जगतमां छे ज
नहि; तेम कोई एम माने के हुं पर द्रव्यनी क्रिया करुं छुं, तो तेनी मान्यता पण मिथ्या छे, केमके जगतमां कोई
आत्मा एवो नथी के जे पर द्रव्यनी क्रिया करी शके. जेम आकाशनुं फूल जगतमां वस्तु ज नथी, तेम परनी क्रिया
करी शके एवी वस्तु ज जगतमां नथी. तेथी ‘हुं परनुं कांई करी शकुं’ एवी मिथ्या मान्यतानो विषय आ
जगतमां नथी. ते मिथ्या मान्यता परमां निरर्थक छे अने आत्मामां अनर्थकारी छे.
जगतमां अज्ञानीनो मिथ्या अभिप्राय छे पण तेना मिथ्या अभिप्राय प्रमाणे जगतमां ज्ञेय पदार्थ नथी.
कोई एम माने के ‘जगतमां एक सर्वव्यापक आत्मा ज छे ने बीजुं बधुं सर्वथा भ्रम छे,’ तो तेनुं ज्ञान
मिथ्या छे, तेना मिथ्याज्ञान प्रमाणे जगतमां वस्तुस्वरूप नथी.
कोई एम माने के ‘आत्मा सर्वथा कूटस्थ नित्य ज छे,’ तो तेनुं ज्ञान पण मिथ्या छे, केमके तेनी मान्यता
प्रमाणे सर्वथा कूटस्थ आत्मा जगतमां छे ज नहि.
कोई कहे छे :– तेणे आत्माने तो मान्यो ने? एटलुं तो तेनुं साचुं छे ने?
उत्तर :– तेणे खरेखर आत्माने मान्यो ज नथी. तेणे जेवा स्वरूपे आत्माने मान्यो छे तेवो आत्मा
जगतमां छे ज नहि, अने जेवो आत्मा छे तेवो मान्यो नथी, तेथी तेणे आत्माने मान्यो नथी.
वळी ए ज प्रमाणे कोई एम माने के ‘आत्मा सर्वथा क्षणिक ज छे,’ तो तेनुं ज्ञान पण मिथ्या छे, केमके
तेनी मान्यता प्रमाणे सर्वथा क्षणिक आत्मा जगतमां छे ज नहि. आ रीते मिथ्याज्ञाननो विषय ज जगतमां नथी.
कोई एम माने के ‘पुण्यथी धर्म थाय,’ तो तेनी मान्यता प्रमाणेनुं ज्ञेय जगतमां नथी एटले तेनुं ज्ञान
मिथ्या छे.
उपादान–निमित्त संबंधमां कोई एम माने के निमित्तने लीधे उपादाननुं कार्य थाय, तो तेना ज्ञाननो
विषय जगतमां नथी केमके निमित्तने लीधे उपादाननुं कार्य थाय एवी कोई वस्तु ज नथी, तेथी तेनुं ज्ञान मिथ्या
छे. जेम वांझणीनो पुत्र ए कोई वस्तु ज नथी तेम जगतमां मिथ्याज्ञाननो कोई विषय ज नथी, एटले के
मिथ्याज्ञान निरर्थक छे.
आत्मा अनंतधर्मना पिंडस्वरूप छे, ते सम्यग्ज्ञाननो विषय छे. अनंत धर्मना पिंडस्वरूप आत्माने
जाण्या विना सम्यग्ज्ञान थाय नहि. अनंतधर्मस्वरूप आत्माने ओळखाववा माटे अहीं आचार्यदेवे ४७ नयोथी
तेनुं वर्णन कर्युं छे; तेमां १७ नयो उपरनुं विवेचन आवी गयुं छे, हवे नित्यनय अने अनित्यनयथी आत्मानुं
वर्णन करे छे.
[१८] नित्यनये आत्मानुं वर्णन
आत्मद्रव्य नित्यनये, नटनी माफक, अवस्थायी छे; जेम राम–रावणरूप अनेक अनित्य स्वांग धरतो
होवा छतां पण नट तो ते ज छे, तेम पर्यायो क्षणे क्षणे पलटती होवा छतां द्रव्यपणे आत्मा नित्य टकनारो छे,
आवो आत्मानो धर्म छे तेने नित्यनय जाणे छे.
अहीं आत्माने अवस्थायी कह्यो तेथी एम न समजवुं के तेनी पर्याय बदलती ज नथी! अहीं तो
नित्यनयथी आत्मानो स्वभाव केवो छे ते बताववा तेने अवस्थिति कह्यो छे; मनुष्य, स्वर्ग, नरक वगेरेना
अनंत अवतार थया छतां आत्मा तेनो ते ज अवस्थित छे, अवतार बदलतां आत्मा बदली जतो नथी, आवो
तेनो नित्यधर्म छे, अने ते ज वखते तेनामां अनित्यधर्म पण साथे ज रहेलो छे. जो आत्माना अनित्यधर्मने न
माने एटले के क्षणे क्षणे तेनी पर्याय पलटे छे एम न माने ने सर्वथा अवस्थित ज माने तो तेनुं श्रुतज्ञान
प्रमाण थतुं नथी एटले तेनो नित्यनय पण साचो रहेतो नथी. वस्तुना अनित्य धर्मने मान्या विना बंध–मोक्ष
वगेरे कोई कार्य साबित नहि थाय.