Atmadharma magazine - Ank 107
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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: भाद्रपद : २००८ : आत्मधर्म–१०७ : २१७ :
अध्यत्मन रहस्य
केवी द्रष्टिथी साधकपणुं थाय?
[‘वस्तुनुं स्वरूप अनेकान्तमय छे; त्यां साधक जीवनी
अध्यात्मद्रष्टिमां क्यारेक निश्चयनी मुख्यता होय अने क्यारेक व्यवहारनी
मुख्यता होय–एम नथी, साधकनी द्रष्टिमां तो सदाय अभेदनी ज
मुख्यता छे; अभेदनी द्रष्टिथी ज सदा साधकपणुं होय छे.’ –जैनधर्मनुं
आ गूढरहस्य पू. गुरुदेवश्रीए आ प्रवचनोमां खुल्लुं कर्युं छे.
]


अध्यात्मद्रष्टिमां अभेदने तो मुख्य करीने तेने निश्चय कह्यो छे ने भेदने गौण करीने तेने व्यवहार कह्यो
छे. अभेदनी मुख्यताने निश्चय कह्यो ने भेदनी गौणता करीने तेने व्यवहार कह्यो–तेमां महान सिद्धांत छे, जैन–
दर्शननुं मूळ रहस्य तेमां आवी जाय छे. अध्यात्मनी द्रष्टिमां सदाय अभेदनी ज मुख्यता रहे छे माटे मुख्य ते
निश्चय छे, ने भेदनी सदा गौणता छे तेथी गौण ते व्यवहार छे. ज्ञानीनी द्रष्टिमां कदी भेदनी मुख्यता थती
नथी, तेनी द्रष्टिमां सदाय अभेदनी ज मुख्यता छे; अभेदना आश्रये ज साधकपणुं होय छे. साधकदशा परना
आश्रये के रागना आश्रये तो नथी, परंतु भेदना आश्रये पण साधकदशा नथी, अभेदना आश्रये ज साधक दशा
छे, माटे साधकनी द्रष्टिमां अभेदद्रव्यनी ज मुख्यता छे. जुओ आ जैनधर्मना अनेकान्तनुं रहस्य! निश्चय अने
व्यवहार बंनेने जाणीने, अभेदद्रव्यनो आश्रय लेवो ते ज प्रयोजन छे. अभेद द्रव्यना अवलंबन वगर
वीतरागदशा थती नथी. जो अभेद द्रव्यनुं अवलंबन न करे तो जीवनुं प्रयोजन सिद्ध थतुं नथी. अध्यात्म–
कथनीमां जीवनुं प्रयोजन सिद्ध करवा माटे–एटले के अभेदद्रव्यनुं अवलंबन करावीने शुद्धदशा प्रगट करवा माटे–
सदाय अभेदने ज मुख्य कहेवामां आवे छे, अने ते ज निश्चयनयनो विषय छे; आवा निश्चयना आश्रये ज
मुक्ति थाय छे.
अध्यात्म–प्रकरणनुं आ रहस्य छे के तेमां अभेदनी ज मुख्यता छे, ने मुख्य ते ज निश्चय छे तथा तेना
ज आश्रये धर्म थाय छे; तेमां भेदनी गौणता छे ने गौण ते व्यवहार छे. आ प्रमाणे जाणीने अभेदद्रव्यनो
आश्रय करीने परिणमे तो ज तेणे बे नयोने यथार्थ जाण्या कहेवाय.
अध्यात्म–प्रकरणमां मुख्यने निश्चय कहेवामां आवे छे ने गौणने व्यवहार कहेवामां आवे छे; त्यां मुख्य
कोण? के अभेदद्रव्य ते ज मुख्य छे, ने भेदरूप पर्याय ते गौण छे. जुओ, अध्यात्म कथनमां ‘निश्चय ते मुख्य’
एम न कह्युं, पण ‘मुख्य ते निश्चय’ एम कह्युं, केमके अध्यात्मद्रष्टिमां तो सदाय अभेदनी ज मुख्यता रहे छे,
माटे मुख्यने निश्चय कह्यो. अभेद ते मुख्य छे ने ते ज निश्चयनयनो विषय छे, भेद ते गौण छे तेथी ते
व्यवहारनयनो विषय छे. पर्याय परने लीधे थाय छे माटे तेने व्यवहार कह्यो–एम नथी, पण भेदनी गौणता छे
माटे तेने व्यवहार कह्यो छे. धर्मी जीवनी द्रष्टिमां अभेदद्रव्यनी ज मुख्यता छे, ने भेदनी पर्यायनी गौणता छे,
माटे अध्यात्ममां अभेद द्रव्यने मुख्य करीने तेने निश्चय कह्यो, ने भेदरूप पर्यायने गौण करीने तेने व्यवहार
कह्यो. द्रव्य अने पर्याय–ए बंने, वस्तुना ज अंश छे, पर्याय पण वस्तुनो पोतानो अंश छे, ते कांई परने लीधे
नथी, पण पर्यायनी गौणता छे माटे तेने व्यवहार कह्यो छे. ‘पर्याय परथी थाय छे माटे’ व्यवहार छे–एम नथी,
पण ‘पर्याय गौण छे माटे’