Atmadharma magazine - Ank 107
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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: २१६ : आत्मधर्म–१०७ : भाद्रपद : २००८ :
कापनार निमित्त मने नुकसान करे अने भगवाननी वाणी मने लाभ करे–एम पर विषयोथी लाभ–नुकसान
थवानी जेनी मान्यता छे ते जीव मिथ्याद्रष्टि, विषयोनी बुद्धिवाळो छे. स्वभावनी बुद्धिवाळो धर्मी जीव तो एम
जाणे छे के माथुं कापनार कसाई के दिव्य वाणी संभळावनार वीतरागदेव–ए बंने मारा ज्ञानना ज्ञेयो छे. ते
ज्ञेयोने कारणे मने कांई लाभ–नुकसान नथी तेमज ते ज्ञेयोने कारणे हुं तेने जाणतो नथी. राग–द्वेष वगर
समस्त ज्ञेयोने जाणी लेवानी सर्वज्ञत्वशक्ति मारामां छे. कदाच अस्थिरतानो विकल्प आवी जाय तो पण धर्मीने
आवी श्रद्धा तो खसती ज नथी. तेथी जे पूर्ण स्वभावने प्रतीतमां लीधो छे तेना ज अवलंबनना बळे
अल्पकाळमां तेमने पूर्ण सर्वज्ञता खीली जाय छे.
अनेकान्तस्वरूपी आत्मानी सर्वज्ञत्वशक्तिनुं वर्णन अहीं पूरुं थयुं. (१०)
अरे जीव! विरोध छोडीने अंतरथी हा पाड!
– आ तने तारी प्रभुता समजावाय छे.

साक्षात् चैतन्यमूर्ति निर्मळस्वरूप आत्माने समज्या विना जन्म–मरण टाळवानो कोई अन्य मार्ग
नथी. नित्य अविकारी धु्रव चैतन्यस्वभावने लक्षमां न ल्ये ते जीवने धर्म थाय नहि अने भव घटे नहि. जेने
चैतन्यस्वभावनुं भान नथी ते जीव मन–वाणी–देहनी प्रवृत्तिमां अथवा पुण्यमां धर्म मानीने अटके छे, पण तेनुं
फळ तो बंधनरूप संसार छे. जेने आ वातनुं लक्ष नथी तेणे बाह्य प्रवृत्तिमां ज कृतकृत्यता मानी होय छे; तेथी
तेनी मान्यताथी ऊलटी वात ज्ञानी ज्यारे संभळावे के ‘बाह्य प्रवृत्तिथी के पुण्यथी धर्म न थाय,’ त्यारे ते
सांभळतां सत्यतत्त्वनो ते विरोध करे छे.
जेम पेंडो आपवा माटे बाळक पासेथी चूसणियुं छोडाववामां आवतां ते राड नाखे छे तेम मुक्तिरूपी
पेंडानो स्वाद चखाडवा माटे बाळजीवोने तेमनी ऊंधी मान्यतारूप लाकडानी पकड छोडाववामां आवे छे त्यां
तेओ राड नाखे छे; पण एने खबर नथी के ज्ञानी तेना हितनी वात कहे छे.
जेओ परनी क्रियाथी धर्म माननारा छे तथा पुण्य करतां करतां तेनाथी आत्मशुद्धि थशे एम मानीने ते
विकारना स्वादमां ज अटकी गया छे, तेने ज्ञानी कहे छे के हे भाई! तारी ए खोटी मान्यतारूप लाकडाना
चूसणियाथी साचो स्वाद नहि आवे माटे तेने छोड अने तारा स्वाधीन स्वभावनी अंतरथी हा पाड, तो
स्वभावना संवेदनमां तने सुखनो साचो स्वाद आवे.
हुं परथी जुदो, साक्षात् चैतन्यज्योति, अनंत आनंदनी मूर्ति छुं–एम समज्या वगर जेटला शुभराग
करे ते बधा मुक्ति माटे व्यर्थ छे. आवुं सांभळतां कोई अज्ञानी विरोध करे छे के अरेरे! अमारुं बधुं ऊडी जाय
छे. पण प्रभु! विरोध न कर...ना न पाड...आ तो तारी प्रभुता तने समजावाय छे. तारो अनंत महिमावान
स्वभाव अमे तने समजावीए छीए त्यारे तुं तेनो विरोध करीने असत्यनो आदर करे–ए केम शोभे?
जेम कोई खानदाननो पुत्र बहारचलो थयो होय ने तेने तेनो पिता ठपको आपे के भाई रे! खानदानने
आ न शोभे...तारी जात लाजे छे; तेम आत्माना चैतन्यघरने छोडीने जेओ पुण्य–पापनी प्रवृत्तिरूप कुसंगथी
धर्म माने छे तेने परम धर्मपिता श्री तीर्थंकरदेव शिखामण आपे छे के अरे जीव! तुं अमारी जातनो छो, आ
बहारचलापणुं तने न शोभे, तेमां तारी प्रभुता लाजे छे; तारी नातजात सिद्धपरमात्मा समान छे, आ
विकारथी तारी शोभा नथी. –आम कहीने ते अज्ञानी जीवने पुण्य–पापरहित तेनो ज्ञानस्वभाव समजावे छे.
अहो! परम सत्यनी आवी वात काने पडवी पण घणी दुर्लभ छे. अनंतकाळे आवा मोंघा टाणां मळ्‌यां
छे त्यारे पण जो अपूर्व सत्य समजीने स्वतंत्र वस्तुस्वभावनुं सामर्थ्य न समजे तो चोराशीना अवतारनी
रखडपट्टी टळशे नहि. माटे जे जीव हवे आ रखडपट्टीथी थाक्यो होय तेणे धीरो थईने अंतरमां आ वात
समजवा जेवी छे.
जाुओ – समयसार प्रवचनो भाग १, पृ. १६७ – ८