भगवाननी शक्ति तेमनामां छे, तेमनी पासेथी कांई आ आत्मानी शक्ति आवती नथी. अर्हंतभगवान जेवी
आ आत्मानी शक्ति पोतामां भरी छे. जो अर्हंतभगवाननी सामे ज जोया करे ने पोताना आत्मा तरफ न वळे
तो मोहनो क्षय थाय नहि. जेवा शुद्ध अर्हंतभगवान छे तेवो ज हुं छुं–एम जाणीने जो पोताना आत्मा तरफ
वळे तो सम्यग्दर्शन प्रगटीने मोहनो क्षय थाय छे. प्रभो! तारी चैतन्यसत्ताना असंख्यप्रदेशी खेतरमां तारा
अचिंत्य निधान भर्यां छे, तारी सर्वज्ञशक्ति तारा ज निधानमां पडी छे, तेनी प्रतीत करीने स्थिरताद्वारा खोद
तो तारा निधानमांथी सर्वज्ञता प्रगटे.
सामर्थ्य आत्मामां भर्युं छे. कोई निमित्तना कारणे ते ज्ञानसामर्थ्य खीलतुं नथी. जो आत्मा निमित्तथी जाणतो
होय तो तो सर्वज्ञत्वशक्ति निमित्तमयी थई गई, पण आत्मज्ञानमयी न रही! जेम पूर्णताने पामेला ज्ञानमां
निमित्तनुं अवलंबन नथी, तेम नीचली दशामां पण ज्ञान निमित्तने लीधे थतुं नथी, एटले खरेखर पूर्णतानी
प्रतीत करनारो साधक पोताना ज्ञाननेे परावलंबने मानतो नथी, पण स्वभावना अवलंबने मानीने स्वतरफ
वाळे छे. पर सामे जोये आत्मानुं कांई वळे तेम नथी, सर्वज्ञशक्तिवाळा पोताना आत्मा सामे जुए तो
सर्वज्ञता मळे तेम छे. अनंत काळ पर सामे जोया करे तोय त्यांथी सर्वज्ञता मळवानी नथी, ने निजस्वभाव
सामे जोईने स्थिर थतां क्षणमात्रमां सर्वज्ञता प्रगटी जाय तेवुं छे.
व्यभिचारी बुद्धि छे. निमित्तना आश्रयथी लाभ थाय एवी मान्यता कहो, अज्ञान कहो, मिथ्यात्व कहो, मूढता
कहो, संयोगीद्रष्टि कहो, विषयोमां सुखबुद्धि कहो, व्यभिचार कहो, अधर्म कहो के अनंत संसारनुं मूळकारण कहो–
ते बधायनो एक ज भाव छे. ज्यां पोताना सहजस्वरूपनी रुचि नथी ने पराश्रयभावनी रुचि छे त्यां उपरना
बधा भावो तेमां पड्या ज छे.
समानपणे जाणवानी मारा ज्ञाननी ताकात छे, मारा ज्ञान सामर्थ्यने दूरनुं के नजीकनुं जाणवामां फेर पडतो नथी
ज्यां पूरुं ज्ञानसामर्थ्य खीली गयुं तेमां दूर शुं ने नजीक शुं? ज्ञान तो आत्मामां रहीने जाणे छे, कांई पदार्थोनी
समीप जईने तेने नथी जाणतुं. एक सर्वज्ञ अढी द्वीपनी बराबर वचमां होय ने बीजा सर्वज्ञ अढी द्वीपना छेडा
उपर होय, तो त्यां वचमां रहेला सर्वज्ञने चारे बाजुना पदार्थोनुं कांई वधारे स्पष्ट ज्ञान थाय अने छेडा उपर
रहेला सर्वज्ञने सामा छेडाना पदार्थो दूर होवाथी कांई ओछुं ज्ञान थाय–एम नथी; बंनेनुं सर्वज्ञपणुं सरखुं ज
छे. अहींना पदार्थनुं जेवुं स्पष्ट ज्ञान अहीं रहेला केवळीने थाय तेवुं ज स्पष्ट ज्ञान लाखो–करोडो योजन दूर
रहेला सिद्ध भगवंतोने थाय छे; सर्वज्ञतामां फेर पडतो नथी. आवी सर्वज्ञतारूपे परिणमवानी शक्ति दरेक
जीवमां त्रिकाळ छे.
स्वभावसन्मुख थया विना सर्वज्ञत्वशक्तिनी प्रतीत थाय नहि. आ रीते एक सर्वज्ञत्वशक्तिनी प्रतीत करतां
तेमां मोक्षनी क्रिया–धर्मनी क्रिया आवी जाय छे. जे जीव स्वभावनी सन्मुख थईने तेनी प्रतीत करतो नथी अने
निमित्तनी सन्मुखताथी लाभ माने छे ते जीवने विषयोमांथी सुखबुद्धि टळी नथी ने स्वभावबुद्धि थई नथी.
माथुं