Atmadharma magazine - Ank 107
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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: २१४ : आत्मधर्म–१०७ : भाद्रपद : २००८ :
रूपिया आवे के जाय, शरीरमां आहार आवे के न आवे, पुस्तक लखाय के भाषा बोलाय–तेमां कांई
करवानी आत्मानी ताकात नथी, पण ते बधाने जाणवानी आत्मानी ताकात छे. बळखो गळामां अटकी गयो
होय त्यां ज्ञान जाणे के अहीं बळखो अटक्यो छे, पण ते बळखाने काढवानी ज्ञाननी ताकात नथी; शरीरमां
रोग थाय ते रोग क्यारे थयो–केटलो थयो तेने ज्ञान जाणे पण रोगने दूर करवो ते ज्ञाननी ताकात नथी. श्रीमद्
राजचंद्र कहे छे के ‘तणखलाना बे कटका करवानी शक्ति पण अमे धरावता नथी’ –एनो आशय एम छे के
अमे तो ज्ञायक छीए, एक परमाणुमात्रने पण फेरववानुं कर्तापणुं अमे मानता नथी. तणखलाना बे कटका
थाय तेने करवानी अमारी ताकात नथी पण जाणवानी ताकात छे. –अने ते पण एटलुं ज जाणवानी ताकात
नथी पण परिपूर्ण जाणवानी ताकात छे. जे ज्ञाननी पूर्ण जाणवानी शक्तिने माने ते अधूरी दशाने के रागने
पोतानुं स्वरूप न माने, एटले तेने ज्ञानना उघाडनो अहंकार क्यांथी थाय? ज्यां पूर्ण स्वभावनो आदर छे त्यां
अल्पज्ञाननो अहंकार होतो ज नथी. ज्ञानस्वभावी आत्मा संयोग विनानो तेम ज परमां अटकवाना भाव
विनानो छे, कोई बीजा वडे तेनुं मान के अपमान नथी. सर्वज्ञता एटले एकलुं ज्ञान... पूरेपूरुं ज्ञान... एवा
ज्ञानथी भरेला आत्मानी प्रतीत करवी ते धर्मनो मूळ पायो छे.
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निमित्तथी आत्माने लाभ थाय एम माननारने विषयोमां सुखबुद्धि टळी नथी. निमित्तथी आत्माने
लाभ थाय एम माननारे आत्मानी सर्वज्ञत्वशक्तिने मानी नथी. मारामां ज सर्वज्ञपणे परिणमवानी शक्ति छे
तेनाथी ज मारुं ज्ञान परिणमे छे एम न मानतां शास्त्र वगेरेना निमित्तथी मारुं ज्ञान परिणमे छे एम जेणे
मान्युं तेणे संयोगथी लाभ मान्यो. जे जेनाथी लाभ माने तेने तेमां सुखबुद्धि होय ज. संयोगथी लाभ माने
तेने संयोगमां सुखबुद्धि छे, निमित्तथी लाभ माने तेने निमित्तमां सुखबुद्धि छे. संयोग एटले पर विषय;
निमित्त पण पर विषय छे. जेने निमित्तना आश्रयनी बुद्धि छे तेने पर विषयमां सुखबुद्धि छे. जेणे आत्माने
कोई पण संयोगथी के निमित्तथी लाभ मान्यो तेने ऊंडेऊंडे पर विषयोनी ज रुचि पडी छे, तेने आत्माना
स्वाधीनसुखनी रुचि थई नथी ने स्वविषय तेनी द्रष्टिमां आव्यो नथी. जेने खरेखर आत्माना सुखनी रुचि
होय ते एक पण पर विषयथी लाभ माने नहि; चैतन्यबिंब स्वतत्त्व सिवाय बीजाथी लाभ मानवो ते
मैथुनबुद्धि एटले के विषयोमां सुखबुद्धि छे.
‘मारो आत्मा ज सर्वज्ञता अने परम सुखथी भरेलो छे’ एवी जेने प्रतीत नथी ते जीव भोगहेतु धर्मने
एटले के पुण्यने ज श्रद्धे छे; चैतन्यना निर्विषय सुखनो तेने अनुभव नथी एटले ऊंडाणमां तेने भोगनो ज
हेतु पड्यो छे.
सर्वज्ञतत्वपणे परिणमवानी आत्मानी ज शक्ति छे, तेने बदले निमित्तना आश्रये ज्ञान खीले एम जे
माने तेने पांच ईन्द्रियना विषयोमां सुखबुद्धि टळी नथी; निमित्त अने विषयो बंने एक छे. निमित्तथी लाभ
माननार के विषयोमां सुख माननार–ए बंनेनी एक ज जात छे. तेओ आत्मस्वभावनो आश्रय करीने न
परिणमतां संयोगनो आश्रय करीने ज परिणमी रह्या छे; भले शुभभाव हो तोपण तेमने विषयोनी रुचि टळी
नथी ने स्वभावसुखनी रुचि थई नथी.
परमांथी कांई लाभ ल्ये एवी कोई शक्ति आत्मामां नथी, तेम ज आत्माने लाभ आपे एवी कोई
शक्ति परवस्तुमां नथी; छतां परनो आश्रय करीने लाभ लेवानुं जे माने छे तेने स्वविषयनी रुचि नथी पण
ऊंडाणमां विषयोना सुखनी रुचि पडी छे; तेणे पोताना आत्माने ध्येयरूप नथी र्क्यो पण विषयोने ज ध्येयरूप
बनाव्या छे. अहीं विषयो कहेतां एकला अशुभरागना निमित्तो ज न समजवा, पण देव–गुरु–शास्त्र वगेरे
शुभरागना निमित्तो ते पण परविषय ज छे. पोताना चैतन्यस्वभाव सिवायना बधाय पदार्थो परविषयो छे,
तेमना आश्रयथी जे लाभ माने तेने परविषयोनी प्रीति छे.
दरेक आत्मामां सर्वज्ञत्वशक्ति छे; तेनी श्रद्धा करनारने परविषयोना आश्रयथी लाभनी बुद्धि होती
नथी. ‘अहो, मारा आत्मामां सर्वज्ञतानुं सामर्थ्य छे’ एम जेणे प्रतीत करी तेणे ते प्रतीत पर सामे जोईने करी
छे के पोतानी शक्ति सामे जोईने करी छे? आत्मानी शक्तिनी प्रतीत आत्माने ध्येय बनावीने थाय के परने
ध्येय बनावीने थाय? कोई निमित्त, राग के अधूरी पर्यायना लक्षे पूर्णतानी प्रतीत थती नथी पण अखंड
स्वभावना लक्षे ज पूर्णतानी