एम पर्यायने तो जाणे, पण रागपर्याय ते ज हुं छुं–एम अज्ञानी माने छे, रागरहित ज्ञानस्वभावी तत्त्व शुं छे
तेने अज्ञानी जाणतो नथी, अने ते स्वभावना ज्ञान विना कदी धर्म थतो नथी. तेथी ते अभेदस्वभावनी द्रष्टि
अने ज्ञान कराववा माटे अध्यात्म कथनीमां तेने मुख्य करीने निश्चय कह्यो छे. लोको कहे छे के मोटानो छेडो
पकडवो, तेम जेणे धर्म करवो होय तेणे मोटाने छेडो पकडवो; मोटुं कोण? के परनो तो पोतामां अभाव छे, ने
पर्याय क्षण पूरती ज छे, त्रिकाळ एकरूप रहेनारो चैतन्यशक्तिनो पिंड अभेद स्वभाव छे ते ज मोटो छे, तेनुं
अवलंबन करवाथी धर्म थाय छे; माटे धर्मीनी द्रष्टिमां ते अभेदस्वभावनी ज मुख्यता सदाय छे. अजीव
पदार्थोथी जीवने जुदो ओळखाव्या पछी हवे तो जीवमां अभेदस्वभावनी द्रष्टि कराववानी वात छे, तेथी मुख्य–
गौणनी वात समजावी छे.
टकनार जीवतत्त्व शुद्ध चैतन्यमय छे, –आवा जीवतत्त्वने लोको नथी जाणता. जुओ, अगियार अंग सुधी भणी
भणतर कदाच विशेष न होय पण अंतरमां परिपूर्ण सामर्थ्यना पिंडरूप अभेदस्वभावने ज्ञानमां पकडीने
एकाग्र थाय तो ते जीव आराधक धर्मी छे.
माटे ज अभेदवस्तुनां गाणां गवाय छे, ने तेने ज प्रधान करीने निश्चय कह्यो छे, तथा भेदरूप पर्यायने गौण
करीने व्यवहार कह्यो छे.
माटे ज अंशने अभूतार्थ कह्यो छे; पण विकार थाय छे ते परने लीधे थाय छे–एम कहेवानो आशय नथी. अहीं
तो, नित्य–अनित्य, द्रव्य–पर्याय, एक–अनेक, शुद्ध–अशुद्ध ईत्यादि रूपे अनेकांतवस्तु छे, तेमां कोना आश्रये धर्म
थाय छे ते समजाव्युं छे. आत्माने साधक बनाववा माटे अनेकान्तवस्तुमां पण मुख्य–गौण थाय छे. धर्मीनी
द्रष्टिमां सदाय अभेद शुद्धस्वरूपनी ज मुख्यता रहे छे, ने तेनी मुख्यताना आश्रये ज धर्म थाय छे भेदरूप
व्यवहार छे ते ज्ञान करवा माटे बराबर छे, पण धर्मीनी द्रष्टिमां तेनो आश्रय नथी. जो भेदने जाणे पण नहि
तो आखी वस्तुनुं यथार्थज्ञान थतुं नथी एटले मिथ्यात्व टळतुं नथी, अने जो भेदना आश्रये लाभ माने तो
पण अभेदवस्तुना आश्रय वगर मिथ्यात्व टळतुं नथी. भेद तेम ज अभेद ए बंने स्वरूपे वस्तुने जाणीने जो
अभेदनो आश्रय करे तो ज सम्यग्दर्शन अने अनेकान्तज्ञान थाय छे. जो द्रव्य अने पर्याय बंनेने यथार्थपणे
उत्तर :– शुभ–अशुभ भावो पुण्य–पापने उत्पन्न करनारा छे, पण आत्मानी
लागणी पापबंधननो भाव छे ए रीते ते बंने बंधन भावो छे, विकार छे, आत्माना
गुणमां ते मददगार नथी एटले शुभ–अशुभ भावो ते मोक्षनुं कारण नथी; मोक्षनुं
कारण तो शुद्ध आत्माना श्रद्धा–ज्ञान ने रमणतारूप वीतरागभाव छे, ते ज धर्म छे.