Atmadharma magazine - Ank 107
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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: २२० : आत्मधर्म–१०७ : भाद्रपद : २००८ :
जी.व.नुं.का.र्य
कोई पण जीवे धर्म करवा माटे पहेलां ए
समजवुं जोईए के ‘हुं शुं करी शकुं छुं?
शुं करवाथी मने अधर्म थाय छे
अने शुं करवाथी मने धर्म
थाय?’ आ प्रवचनमां
पू. गुरुदेवश्रीए
‘जीवनुं कार्य
शुं छे’ ते
समजावीने,
धर्मी अने अधर्मी जीवना कार्यनी ओळखाण करावी छे.

जीव शुं कार्य करी शके? अने शुं न करी शके?
आत्मा शुं काम करे तो तेने धर्म थाय अने शुं काम करे तो तेने अधर्म थाय? ते वात कहेवाय छे. प्रथम
तो कोई आत्मामां परनुं कार्य करवानी शक्ति नथी. आत्मा परनुं कांई करी शकतो नथी, केमके जड अने चेतन
बधांय तत्त्वो अनादिअनंत स्वयंसिद्ध पोतपोतानी अवस्थामां पलटी रह्यां छे. जगतमां दरेकेदरेक रजकणनी
क्रिया स्वतंत्र एनी मेळे थई रही छे. कोई आत्मा शरीरने चलावी शके नहि तेम ज स्थिर पण राखी शके नहि,
भाषा बोली शके नहि, कर्म बांधी शके नहि, पर जीवने मारी के बचावी शके नहि, सुखी–दुःखी करी शके नहि,
तेने मदद के नुकसान करी शके नहि; ए रीते परमां जीव कांई करी शके नहि, मात्र पोतानी अवस्थामां ज शुभ–
अशुभ के शुद्धभाव करी शके. ‘जीवो एकबीजाने सुखी–दुःखी करे, शरीर वगेरेनी क्रिया हुं करुं’ एम अज्ञानीए
अनादिनुं मान्युं छे, परंतु तेम थई शकतुं नथी. परने सुखी–दुःखी करवानी ताकात कोईमां छे ज नहि.
दरेक तत्त्वनी स्वाधीनता
आ जगतमां दरेक आत्मा तेम ज दरेक रजकण स्वतंत्र भिन्न भिन्न छे; कोई तत्त्वो एकबीजा उपर
प्रभाव पाडी शकता नथी. दरेक आत्मा पोताना स्वरूपना सद्भावपणे अने बीजा अनंत आत्मा तेम ज जड
पदार्थोना अभावपणे टकेलो छे. ए प्रमाणे दरेक तत्त्व बीजा अनंत पदार्थोना अभावथी टकी रह्युं छे. एक
द्रव्यना स्वरूपनी बाह्य ज बीजा द्रव्यो लोटे छे, कोई द्रव्यमां कोई द्रव्य प्रवेशी जतुं नथी, एटले एक पदार्थमां
बीजा अनंत तत्त्वो कांई पण करे एम त्रणकाळमां बनतुं नथी. कोई एम कहे के, द्रव्य–गुणने तो बीजो न करे
पण पर्यायने बीजो करे, तो तेनी वात जूठी छे. आ द्रव्य–गुणनी वात नथी पण पर्यायनी ज वात छे. जेम
त्रिकाळी द्रव्य–गुणनो कोई कर्ता नथी तेम तेनी पर्यायनो पण बीजो कोई कर्ता नथी. वस्तुना द्रव्य–गुण तो
त्रिकाळ एकरूप छे, एटले तेमां कांई करवानुं नथी; पर्यायो नवी नवी थाय छे, ते पर्यायो त्रिकाळद्रव्य–गुणना
आधारे ज थाय छे, –एटले तेनो पण कोई बीजो कर्ता नथी. निमित्तोने लीधे नवी नवी पर्याय थाय छे–एवो
अज्ञानीनो भ्रम छे. एक द्रव्यनी वर्तमान हालत बीजा द्रव्यनी वर्तमान हालतमां कांई करे ए वात
अज्ञानीओए मानेली छे, वस्तुस्वरूप तेम नथी.
अहो! मारा कार्यनो कर्ता कोई बीजो नहि ने बीजाना