एकत्व–विभक्तस्वभाव मारे दर्शाववो छे तेमां तो हुं चूकीश ज नहि, ते तो हुं स्वसंवेदनप्रत्यक्ष वगेरेथी
प्रगटेला मारा निजविभाववडे यथार्थ ज कहीश. अने तमे ते एकत्वविभक्त आत्माने तमारा स्वानुभवथी
प्रमाण करजो. पण, हुं छद्मस्थ छुं–सर्वज्ञ नथी तेथी कोई ठेकाणे व्याकरण वगेरेनो दोष आवी जवा संभव छे, जो
तेवो कोई दोष आवी जाय तो तेनी सामे जोईने तमे अटकशो नहि.
लक्षमां न लेतां, शब्दोनी विभक्ति वगेरेमां ज जे अटकी जाय छे तेने शुद्धआत्मानुं दर्शन थतुं नथी. माटे
आचार्यदेव कहे छे के हे शिष्य! हुं जे शुद्धात्मा दर्शावुं छुं ते तुं प्रमाण करजे, अने दोषने ग्रहण करीश नहि.
चूकी जवानी वात करी तेमां शंका नथी पण विवेक छे–निर्मानता छे. ए ध्यान राखजो के चूकी जवानी वात करी
छे ते तो व्याकरण वगेरे अप्रयोजनभूत बाबतनी वात छे. प्रयोजनभूत एवो जे शुद्ध आत्मा तेने तो हुं मारा
निजविभवथी निःशंकपणे दर्शावीश–एम आचार्यदेव कहे छे. प्रयोजनभूत वातने मुख्य न करतां जे जीव
अप्रयोजनभूत वातने मुख्य करे छे ते जीव आ समयसार सांभळवानो पात्र नथी.
भूमिकानी जवाबदारीना भान सहित कहे छे के ‘आ समयसार कहेनार हुं छद्मस्थ छुं तेथी क्यांक जाणपणानी
बाबतमां दोष आवी जाय तो ते ग्रहण न करशो पण हुं जे शुद्धात्मा बताववा मागुं छुं ते ज ग्रहण करजो.’
पछी भले ‘सर्वज्ञ आम कहे छे, जिनवर आम कहे छे’ –एम भगवाननी साक्षी आपीने आचार्यदेव कथन
करशे, परंतु भगवाने कह्युं ते झील्युं कोणे? झीलनार हुं तो छद्मस्थ छुं; में मारा ज्ञानमां जे झील्युं ते हुं कहीश.
परमागमनी उपासनाथी, निर्बाध युक्तिना अवलंबनथी, परापर गुरुओना अनुग्रहपूर्वक उपदेशथी तेम ज
प्रचुर स्वसंवेदनथी मारा आत्मानो जे निजवैभव प्रगट्यो छे ते समस्त निजवैभववडे हुं शुद्धात्मानुं जे कथन
करीश तेमां तो फेर नहि पडे; पण क्षयोपशमना बोलमां कोई ठेकाणे फेर पडी जाय तेवो संभव छे. तो तेने मुख्य
न करतां शुद्ध आत्माने ज मुख्य करीने तेने स्वसंवेदनथी प्रमाण करजो.
भगवान आम कहे छे’ एम पोतानी वातने भगवानना नामे चडावी दईने जे