Atmadharma magazine - Ank 107
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 4 of 21

background image
: भाद्रपद : २००८ : आत्मधर्म–१०७ : २११ :
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी
केटलीक शक्तिओ
[१०]
* सर्वज्ञत्व – शक्ति *
[‘धर्मनुं मूळ सर्वज्ञ छे. ते सर्वज्ञताना निर्णयमां घणी गंभीरता रहेली छे. अहीं, दरेक आत्मामां
रहेली सर्वज्ञत्वशक्ति उपरना प्रवचनमां पू. गुरुदेवश्रीए जैनधर्मना अनेक मूळभूत रहस्यो प्रकाशित
कर्या छे. दरेक आत्मार्थी जीवोने आ प्रवचन मननपूर्वक समजवानी खास भलामण छे.]
दरेक आत्मामां अनंत शक्तिओ छे, तेथी ते अनेकान्तनी मूर्ति छे. ते अनेकान्तमूर्ति भगवानआत्माने
ओळखाववा माटे अहीं तेनी केटलीक शक्तिओनुं वर्णन चाले छे. तेमां सर्वदर्शित्वशक्तिनुं वर्णन कर्युं, हवे तेनी
साथे सर्वज्ञत्वशक्तिनुं वर्णन करे छे.
समस्त विश्वना विशेष भावोने जाणवारूपे परिणमेला एवा आत्मज्ञानमयी सर्वज्ञत्वशक्ति छे. दर्शन
तो ‘बधुं छे’ एम सामान्य सत्तामात्र भावने देखे छे; परंतु, जगतना बधा पदार्थो सत्तापणे समान होवा छतां
तेमना स्वरूपमां विशेषता छे; कोई जीव छे, कोई अजीव छे, कोई सिद्ध छे, कोई साधक छे, कोई अज्ञानी छे–
एम अनंत प्रकारना जुदाजुदा भावो छे ते बधायने विशेषपणे जाणे एवी आत्मानी सर्वज्ञत्वशक्ति छे. आ
शक्ति दूरना के नजीकना, वर्तमानना के भूत–भविष्यना समस्त पदार्थोने जाणे छे पण तेमां कोईने ठीक–अठीक
मानती नथी, आमां एकलो जाणवानो ज भाव छे, राग–द्वेषनो भाव सर्वज्ञत्वशक्तिमां नथी. ‘सर्व भाव
ज्ञाताद्रष्टा सह शुद्धता’ एवुं आ शक्तिओनुं परिणमन छे.
आत्मानी बधी शक्तिओमां एवी कोई शक्ति नथी के जे परने के विकारने करे; परंतु परने के विकारने
न करे एवी अकर्तृत्वशक्ति आत्मामां त्रिकाळ छे, तेमज परने तेमज विकारने जाणे एवी सर्वज्ञत्वशक्ति त्रिकाळ
छे.
अहो, समस्त विश्वने जाणवानी ताकात आत्मामां सदाय पडी छे. तेनी प्रतीत करनार जीव धर्मी छे. ते
धर्मी जीव शरीर–मन–वाणी वगेरेनी जे कांई क्रिया थाय तेने जाणवानी क्रिया करे छे, पण ‘हुं तेने करुं छुं अथवा
तो आ होय तो मने ठीक ने आ न होय तो ठीक’ एवी मान्यतारूप मिथ्यात्वनी क्रियाने ते करतो नथी. ते जाणे
छे के मारा आत्मामां परने जाणे तेवो गुण छे पण कोई परने ल्ये–मूके एवो कोई गुण मारामां नथी; जगतना
बधा पदार्थोने जेम छे तेम भिन्न भिन्न स्वरूपे जाणवारूपे परिणमे एवी सर्वज्ञत्वशक्तिनो हुं स्वामी छुं पण
परनी क्रियानो स्वामी हुं नथी. मारी क्रियाशक्तिथी मारा अनंतगुणना परिणमनरूप क्रियाने हुं करुं छुं पण
परनी क्रियाने के विकारने हुं करतो नथी. जडमां पण क्रियाशक्ति छे,