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पण आत्मानी शक्तिनो विकास थतां ते परनुं कांई करी दे के जगतनो उद्धार करी दे–एम बनतुं नथी.
अल्पज्ञताना आश्रये सर्वज्ञतानी प्रतीत केम थाय? अल्पज्ञपर्याय वडे सर्वज्ञतानी प्रतीत थाय, पण
अल्पज्ञताना आश्रये सर्वज्ञतानी प्रतीत न थाय; त्रिकाळी स्वभावना आश्रये ज सर्वज्ञतानी प्रतीत थाय छे.
प्रतीत करनारी तो पर्याय छे पण तेने आश्रय द्रव्यनो छे. द्रव्यना आश्रये सर्वज्ञतानी प्रतीत करनार जीवने
सर्वज्ञतारूपे परिणमन थया वगर रहे नहि.
माने. अल्पज्ञपर्याय वखते पण सर्वज्ञत्वशक्ति होवानो जेणे निर्णय कर्यो तेनी रुचिनुं जोर अल्पज्ञपर्याय
उपरथी खसीने अखंड स्वभावमां वळी गयुं छे, एटले ते ‘सर्वज्ञभगवाननो नंदन’ थयो छे.
समस्त पदार्थोने, तेना गुणोने तेम ज तेनी भावांतर के क्षेत्रांतररूप अवस्थाओने–बधाने एकसाथे जाणे एवुं
आत्माना ज्ञाननुं विभुत्व छे; जे आत्मा पोतानी आवी ज्ञानशक्तिनी प्रतीत करे ते ज खरो जैन अने
सर्वज्ञदेवनो भक्त छे; पण आत्मा परनुं ल्ये–मूके–फेरफार करे एम जे माने छे ते आत्मानी शक्तिने, सर्वज्ञदेवने
के जैनशासनने मानतो नथी, ते खरेखर जैन नथी.
‘सर्वज्ञ...’ एटले बधाने जाणनार. अनंत द्रव्य, अनंत गुणो, अनंती पर्यायो–ए बधाने जाणे एवो मोटो
महिमावंत पोतानो स्वभाव छे तेने अन्यपणे–विकारी स्वरूपे मानवो ते ज आत्मानी मोटी हिंसा छे. भाई रे!
तुं सर्वनो ज्ञ एटले जाणनार छो, पण परनुं तो कांई कदी करी शकतो ज नथी. ज्यां दरेक वस्तुए वस्तु जुदी छे
त्यां जुदी चीजनुं तुं शुं कर? तुं स्वतंत्र अने ते पण स्वतंत्र, बधा स्वतंत्र छे. अहो! अनेकान्तमां तो एकली
वीतरागता छे. ‘हुं मारापणे छुं ने परपणे नथी’ एम नक्की करतां ज अनंता परतत्त्वोथी उदास थईने
स्वतत्त्वमां रही गयो एटले वीतरागता थई गई, –आम अनेकान्तमां वीतरागता आवी जाय छे. अनेकान्त
कहो के भेदज्ञान कहो, तेना विना वीतरागता होय ज नहि.
वीतरागी चारित्रनुं स्थापन छे एटले अनेकान्त ते ज मोक्षमार्ग छे, अनेकान्त ते परम अमृत छे. ज्यां परनुं
करवानुं मान्युं त्यां एकान्त छे, तेमां मिथ्यात्व अने राग–द्वेष भरेला छे, ते ज संसारनुं मूळ छे.
परथी पृथक् वस्तु सिद्ध थाय छे. हुं परथी शून्य छुं ने मारा स्वभावथी स्वाधीन–परिपूर्ण छुं–एम अनेकान्तमां
वीतरागीश्रद्धा छे, स्व–पर तत्त्वनी भिन्नतानुं वीतरागीज्ञान छे, अने तेमां ज स्वरूपस्थिरतारूप
वीतरागीचारित्र छे केमके परथी भिन्नता जाणी एटले ज्ञान परमां न रोकातां स्वमां ठर्युं. –ए रीते
वीतरागीश्रद्धा वीतरागीज्ञान अने वीतरागीचारित्र ए त्रणेय अनेकान्तमां आवी जाय छे.