आचार्यदेव अगियारमी गाथामां समजावे छे. अरे भाई! अमे व्यवहारने परमार्थनो ज प्रतिपादक कह्यो ते तो
तने व्यवहारनुं लक्ष छोडावीने परमार्थना लक्षमां पहोंचाडवा माटे कह्युं हतुं, पण ते व्यवहारनो ज आश्रय
करीने जो तुं रोकाईश तो तने परमार्थस्वरूप आत्मा नहि समजाय; केम के व्यवहारनय तो अभूतार्थ छे तेना
आश्रये शुद्धआत्मानुं ज्ञान थतुं नथी, माटे ते आश्रय करवा योग्य नथी. भूतार्थस्वभावने देखाडनारो शुद्धनय
ज आश्रय करवा योग्य छे. ––आवो श्रीगुरुओनो उपदेश छे.
आंगळी सामे जोया करे तो चंद्र देखाय नहि, पण जो आंगळीनुं लक्ष छोडीने सीधुं चंद्र उपर लक्ष करे तो
आंगळीए चंद्रने देखाड्यो–एम कहेवाय छे; तेम अभेद आत्मस्वरूप समजाववा माटे व्यवहारथी भेद पाडीने
कह्युं होय, त्यां ते भेदनी सामे ज जोया करे तो आत्मानुं परमार्थ स्वरूप समजाय नहि, पण ते भेदरूप
व्यवहारनुं लक्ष छोडीने जो सीधो अभेदस्वभावने लक्षमां लई ल्ये तो त्यां व्यवहारने परमार्थनो प्रतिपादक
कहेवामां आवे छे. पण जे जीव व्यवहारना ज आश्रयमां रोकाई जाय ने व्यवहारनुं लक्ष छोडीने परमार्थने
लक्षमां न ल्ये तो तेने माटे व्यवहार परमार्थनो प्रतिपादक छे’ –ए वात लागु पडती नथी.
तेने माटे ते विकथा छे, अने जो वैराग्यपरिणाम करे तो ते वीतरागीकथा छे. ––ए रीते विकथा के वीतरागीकथा
जीवना भावअनुसार कहेवाय छे; तेम व्यवहारे भेद पाडीने समजावतां जे जीवे परमार्थने लक्षमां लई लीधो छे
ते जीवने माटे ‘व्यवहारे पण परमार्थनुं ज प्रतिपादन कर्युं’ एम कहेवामां आवे छे.
कहेवाय; अने समजनार नयसप्तभंगीने समजे तो ते ज वाक्यने नयप्ररूपणा कहेवाय. सप्तभंगीनुं पूरुं कथन
तो एक वाक्यमां आवतुं नथी पण समजनार ते प्रकारनो आशय समजी जाय छे तेथी त्यां वाणीए पण तेनुं
प्रतिपादन कर्युं––एम कहेवामां आवे छे; ए रीते आत्मानुं परमार्थस्वरूप समजाववा कोई पण वचन बोलतां
तेमां भेदरूप व्यवहार आव्या विना रहेतो नथी; आ अपेक्षाए परमार्थस्वभावने कथंचित् वचनअगोचर
कहेवाय छे, पण सामो समजनार जीव कहेनारना आशयने पकडीने अभेदस्वभावने समजी जाय छे तेथी त्यां ते
वाणीए पण परमार्थनुं प्रतिपादन कर्युं एम कहेवाय छे; सामो जीव आशय समजी जाय छे ते अपेक्षाए परमार्थ
कथंचित् वक्तव्य पण छे.
‘एक ज प्रकारनो’ छे––ए वात तेमां आवी जाय छे, अने ते एकरूप निश्चयस्वभाव ज भूतार्थ होवाथी तेना
आश्रये सम्यग्दर्शन थाय छे. माटे संतोए जीवोना कल्याण अर्थे फरी फरीने एना ज आश्रयने उपदेश आप्यो छे.
अखंडद्रव्य छे तेनो आश्रय करवानुं कह्युं छे; शुद्धनयनो आश्रय करवानुं कह्युं छे; शुद्धनयनो आश्रय करवानुं कह्युं
ते कथन तो नय अने नयना विषयने अभेद करीने कह्युं छे. शुद्धनय क्यारे थाय? के ज्यारे अखंड द्रव्यनी सामे
जुए त्यारे, तेथी शुद्धनयनो आश्रय करवानुं कहेतां पण अखंड द्रव्यनी सन्मुख जोवानुं ज आव्युं.