Atmadharma magazine - Ank 108
(Year 9 - Vir Nirvana Samvat 2478, A.D. 1952)
(Devanagari transliteration).

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आसो: २४७८ : २४१ :
अभूतार्थ कह्यो अने शुद्धनयने भूतार्थ कह्यो, त्यां शुद्धनय तो जोके श्रुतज्ञाननी पर्याय छे अने पर्याय तो अभूतार्थ
छे, परंतु अहीं ते पर्याय द्रव्यमां अभेद थई होवाथी आखाने (द्रव्य–पर्यायनी अभेदता थई तेने) भूतार्थ कही
दीधुं छे. अनुभव वखते शुद्धनयनी पर्याय जुदी नथी रहेती पण द्रव्यमां अभेद थई जाय छे; जो भूतार्थस्वभावमां
अभेद न थाय तो ते शुद्धनय ज नथी. शुद्धनय पोते श्रुतज्ञाननी पर्याय होवा छतां तेनो विषय भूतार्थरूप
शुद्धआत्मा छे, ते भूतार्थस्वभावमां लक्ष करीने अभेद थाय छे तेथी शुद्धनयने पण भूतार्थ कहेवाय छे. शुद्धआत्मा
विषय अने ज्ञान तेने जाणनार–एवा बे भेदनुं लक्ष शुद्धनयनी अनुभूति वखते होतुं नथी.
जुओ भाई, आ वात सूक्ष्म छे पण समजवा जेवी छे, आ समजतां अपूर्व कल्याण थाय छे;
आवा आत्माने ओळखीने अंतरमां तेनो अनुभव करवो ते जैनधर्मनो सार छे. समस्त जिनशासननो
सार शुं? के शुद्धआत्मानी अनुभूति! आगळ पंदरमी गाथामां आचार्यदेव कहेशे के जे आ शुद्धआत्मानी
अनुभूति छे ते निश्चयथी समस्त जिनशासननीअनुभूति छे. अहो! त्यां तो आचार्यदेवे अलौकिक वात
करी छे, आखाय जैनशासननुं रहस्य बतावी दीधुं छे.
(–श्री समयसार गा. ८ थी ११ उपरना प्रवचनोमांथी)
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी
केटलीक शक्तिओ
(१)
• स्वच्छत्व – शक्त •
अमूर्तिक आत्मप्रदेशोमां प्रकाशमान लोकालोकना आकारोथी मेचक (अर्थात् अनेक आकाररूप) एवो
उपयोग जेनुं लक्षण छे एवी स्वच्छत्वशक्ति आत्मामां छे. जेम अरीसानी स्वच्छत्वशक्तिथी तेनी पर्यायमां
घट–पटादि प्रकाशे छे, तेम आत्मानी स्वच्छत्वशक्तिथी तेना उपयोगमां लोकालोकना आकारो प्रकाशे छे.
अनंत शक्तिओवाळा आत्माना आधारे धर्म थाय छे, तेथी तेनी शक्तिओ वडे तेने ओळखवा माटे आ
वर्णन चाले छे. आत्माना उपयोगमां लोकालोक जणाय एवो तेनो स्वच्छ स्वभाव छे. बहारमां शरीरने
धोवाथी आत्मानी स्वच्छता थाय–एम नथी; स्वच्छता तो आत्मानो ज गुण छे, ते क्यांय बहारथी आवती
नथी. अज्ञानीओ चैतन्यना स्वच्छ स्वभावने भूलीने शरीरनी स्वच्छतामां धर्म माने छे, ने शरीरनी अशुचि
थतां जाणे के पोताना आत्मामां मलिनता लागी गई एम ते माने छे; पण आत्मा तो स्वयं स्वच्छ छे, तेना
उपयोगमां लोकालोक जणाय छतां तेने मलिनता न लागे एवो तेनो स्वच्छस्वभाव त्रिकाळ छे.
हे जीव! तारी स्वच्छता एवी छे के तेमां जगतनो कोई पदार्थ जणाया वगर रहे नहि. जेम अरीसानी
स्वच्छतामां बधुं देखाय छे तेम स्वच्छत्वशक्तिने लीधे आत्माना उपयोगमां लोकालोक जणाय छे. शरीर तो जड
छे, तेनामां कोईने जाणवानी ताकात नथी, रागादि भावोमां पण एवी स्वच्छता नथी के ते कोईने जाणी शके, ते
तो आंधळा छे; आत्मामां ज एवी स्वच्छता छे के तेना उपयोगमां बधुं य जणाय छे. स्वच्छताने लीधे
आत्मानो उपयोग ज लोकालोकना ज्ञानपणे परिणमी जाय छे. शरीर स्वच्छ होय तो आत्माना भाव निर्मळ
थाय–एम नथी.