बहारना पदार्थो कांई ज्ञानमां नथी आवी जता, पण ज्ञानना उपयोगनो एवो मेचक स्वभाव छे के समस्त
पदार्थोना ज्ञानपणे ते परिणमे छे, छतां पोते स्वच्छताने छोडतो नथी. जेणे पोताना आवा पवित्र उपयोग
स्वभावनी प्रतीत करी ते जीव स्वसन्मुखताथी पर्याये पर्याये पवित्रताने प्रगट करतो केवळज्ञाननी सन्मुख थतो
जाय छे.
तेजपाळना संबंधमां एम वात आवे छे के एक वार चोरना भयथी घरेणां वगेरे मिल्कत दाटवा माटे जमीनमां
खाडो खोदता हता, त्यां ते खाडामांथी ज सोनामहोरोनां निधान नीकळी पड्या. ते जोईने तेमनी स्त्रीओ कहे छे
के अरे! आपणे ते कांई जमीनमां दाटवानुं होय? ज्यां पगले पगले निधान नीकळे छे त्यां दाटवानुं शुं होय?
माटे आ लक्ष्मीने एवी रीते वापरो के जे कोई चोरी न शके. ––आ उपरथी पछी तेओए मंदिरो बंधाव्या. तेम
अहीं चैतन्यमां एवी उपयोगलक्ष्मीनो भंडार भर्यो छे के अंतर्मुख ऊंडा उत्तरीने तेने खोदतां केवळज्ञाननां
निधान प्रगटे छे, ने लोकालोक आवीने तेमां झळके छे. ते उपयोगनी स्वच्छताने कोई चोरी जई शकतुं नथी.
जेना स्वभावमां आवा निधान भर्या तेने वळी कोई परनो आश्रय केम होय? स्वभावना आश्रये पर्याये
पर्याये पूरा निधान प्रगटे छे. आत्मामां ज एवी स्वच्छता भरी छे के कोई परवस्तुना के मंदकषायना आश्रय
वगर ज तेनो उपयोग लोकालोकने जाणवापणे परिणमे छे.
तेम चैतन्यमूर्ति आत्मानो उपयोग ते आखा जगतनो मंगलअरीसो छे; तेनी स्वच्छतामां लोकालोक एवा
स्पष्टपणे जणाय छे के जाणे लोकालोक तेमां प्रवेशी गया होय! खरेखर कांई लोकालोक आत्माना उपयोगमां
पेसी जता नथी, लोकालोक तो बहार ज छे, आत्मानो स्वच्छ उपयोग ज तेवा स्वरूपे परिणम्यो छे. आवी
स्वच्छत्वशक्ति आत्मामां त्रिकाळ छे. काई बहारना लक्षे उपयोगनी स्वच्छता नथी थती पण त्रिकाळी स्वच्छ
उपयोगस्वभावनी सन्मुख थतां उपयोगनी स्वच्छता प्रगटे छे. आ रीते स्वच्छत्वशक्ति द्रव्य–गुण–पर्याय
त्रणेमां व्यापेली छे. एक समयमां जगतना अनेक पदार्थोने जाणे तेवा आकाररूपे उपयोगनुं परिणमन थवा
छतां तेनामां खंडखंड के मलिनता थई जती नथी–एवो स्वच्छता शक्तिनो प्रताप छे.
प्रगटे छे. ते उपयोग परनी सामे जोया विना पोते पोतामां लीन रहीने पोतानी स्वच्छतामां बधाने जाणी ले
छे. जेम कोईवार स्वयंवर वगेरेमां कन्याने राजकुमारो सामे जोवुं न पडे ते माटे एक स्वच्छ मोटो अरीसो राखे
छे, ते अरीसानी सामे जोतां कन्या तेमां राजकुमारनुं मोढुं देखी ले छे, कन्याने बीजा सामे जोवुं नथी पडतुं; तेम
आत्मामां एवी स्वच्छता छे के पर लोकालोकनी सामे जोया विना, पोते पोताना स्वभावनी सामे जोतां निर्मळ
उपयोगभूमिमां लोकालोकने देखी ले छे. जेम सती स्त्रीओ परपुरुषनी सामे आंख ऊंची करती नथी तेम
पवित्रमूर्ति आत्मा परनी सामे जोया वगर ज लोकालोकने प्रकाशवारूपे परिणमवानी ताकातवाळो छे.
छे; पूर्वना प्रारब्धयोगे एवी खोटी लोकवायका ऊडी गई के द्रौपदीने पांच पति हता. अहो! युधिष्ठिर अने
भीम ए जेठ तो पितातुल्य हता ने नकुल–सहदेव ए दियर तो तेने दीकरा तुल्य हता, आवी पवित्र सतीने पांच
पति माननारा मूढ छे. सतीने स्वप्नेय तेवुं न होय. सती सीता, द्रौपदी, राजिमती वगेरे तो जगतनी
हीरलाओ हती, तेमने आत्मानुं भान हतुं, अंदरमां ब्रह्म–आनंदनो रस चाख्यो हतो तेथी विषयो निरस
लाग्या हता, विषयमां