आसो: २४७८ : २३१:
‘आत्मा कोण छे
ने कई रीते पमाय?’
[१]
श्री प्रवचनसारना परिशिष्टमां ४७ नयोद्वारा आत्मद्रव्यनुं
वर्णन कर्युं छे, तेना उपर पू. गुरुदेवश्रीनां
विशिष्ट अपूर्व प्रवचनोनो सार
(अंक १०६ थी चालु)
• श्री प्रवचनसारना परिशिष्टमां जिज्ञासु शिष्य पूछे छे के–प्रभो! ‘आ आत्मा कोण
छे अने कई रीते प्राप्त कराय छे? ’
• तेना उत्तरमां श्री आचार्यदेव कहे छे के ‘आत्मा अनंत धर्मोवाळु एक द्रव्य छे,
अने अनंत नयात्मक श्रुतज्ञान–प्रमाण पूर्वक स्वानुभव वडे ते जणाय छे.
• आवा आत्मद्रव्यनुं ४७ नयोथी वर्णन कर्युं छे, तेमांथी १९ नयो उपरना प्रवचनो
अत्यार सुधीमां आवी गया छे, त्यार पछी आगळ अहीं आपवामां आवे छे.
(२०) सर्वगतनये आत्मानुं वर्णन
साधक जीव पोताना श्रुतज्ञानने स्वसन्मुख करीने अनंत धर्मस्वरूप आत्माने स्वानुभवथी जाणे छे;
सर्वगतनयथी जोतां ते आत्मा, खुल्ली राखेली आंखनी माफक, सर्ववर्ती छे. जेम खुल्ली आंख बधा पदार्थोमां
पहोंची वळे छे तेम आत्मानुं ज्ञान सर्व पदार्थोमां पहोंची वळे छे तेथी आत्मा सर्वमां व्यापक छे. खरेखर
आत्मा पोतानुं स्वक्षेत्र छोडीने कांई परद्रव्यमां पेसी जतो नथी; पण तेना ज्ञानसामर्थ्य वडे ते सर्वे पदार्थोने
जाणी ल्ये छे, ते अपेक्षाए तेने सर्वव्यापक कह्यो छे–एम समजवुं. आ पण आत्मानो एक धर्म छे, ने ते ज
वखते तेनी साथे बीजा अनंतधर्मो रहेलां छे. बीजा धर्मोनो सर्वथा निषेध करीने एकांत एक धर्मने ज पकडी
बेसे, तो ते नय कहेवाय नहि, ते तो मिथ्याज्ञान छे. मिथ्याज्ञानमां नय होय नहीं.
जेम खुल्ली आंख बधाने देखे छे एटले ‘आंख बधे ठेकाणे पहोंची वळे छे’ एम कहेवामां आवे छे, तेम
आत्मा लोकालोकना समस्त पदार्थोने जाणे छे ते अपेक्षाए तेनामां सर्वगतधर्म छे. आत्मानुं ज्ञान बधाने
जाणतां जाणे के बधामां व्यापतुं होय! –एम सर्वगतधर्म कहीने ज्ञानसामर्थ्य बताव्युं छे. आत्मा पोते फेलाईने
कांई सर्व पदार्थोमां व्यापी जतो नथी पण पूरुं ज्ञान खीलतां ते सर्व पदार्थोनेजाणी ले छे ते अपेक्षाए तेने
‘सर्वगत’ कह्यो छे. पोताना आत्मामां आवो सर्वगत स्वभाव सदाय छे, तेन.ी प्रतीत करतां ज्ञाननुं परिणमन
विकासरूपे थईने एवुं खीले छे के एक समयमां सर्वने जाणी ल्ये. केवळज्ञान थया पहेलांं पण आत्मामां
‘सर्वंगतधर्म’ तो छे, पण तेनी प्रतीत करे तेने सर्वगत एवुं केवळज्ञान प्रगटे छे. आत्मानां सर्वगतपणानी
प्रतीत करे अने सर्वज्ञता न प्रगटे एम बने नहीं.
प्रश्न:– एक जीव सर्वज्ञ थतां तेना केवळज्ञानमां लोकालोकना बधा भावो जणाया, अने जेम तेना
ज्ञानमां जणायुं छे तेम ज थवानुं छे, तो पछी जीवोने पुरुषार्थ करवानुं क्यां रह्युं? केवळी भगवाने जे जोयुं छे
तेमां कांई फेरफार तो थवानो नथी!
उत्तर:– केवळी भगवानना ज्ञानमां जेम जणायुं तेम ज थशे, तेमां फेरफार थवानो नथी–ए वात साची,