तारामां ज भरी छे, माटे क्यांय पण पराश्रयनी आशा छोडीने तारा स्वभावनो ज आश्रय कर. जीव पोतानी
शक्तिथी परिपूर्ण छे पण ते पोतानी संभाळ करतो नथी तेथी पराश्रयनी भीख मागी मागीने भटकी रह्यो छे.
जो निजशक्तिने संभाळे तो पराश्रय छूटीने स्वाश्रये अल्पकाळमां सिद्ध थई जाय. जे अनंत सिद्धभगवंतो थया
ते बधाय निजशक्तिनी संभाळ करीने तेना आश्रये ज सिद्ध थया छे.
विकल्पोथी पण पार छे. श्री सर्वज्ञभगवान शरीर–मन–वाणीथी पार एवी ऊंडी ऊंडी खीणमां लई जईने
चैतन्यनां बेहद निधान बतावे छे; तेनो विश्वास करीने हे जीव! तारा ज्ञानचक्षुमां रुचिना अंजन आंज तो तने
तारा चैतन्यनिधान देखाय. अज्ञानथी अंध थयेला जीवो पोतानी पासे ज पडेला निज–निधानने देखता नथी,
श्रीगुरु तेने सम्यक्श्रद्धारूपी अंजन आंजीने तेनां निधान बतावे छे के–जो! तारा निधान तारा अंतरमां ज
पड्या छे; बाह्यद्रष्टि छोडीने अंतरमां द्रष्टि कर तो सिद्धभगवान जेवा निधान तारामां भर्या छे ते तने देखाशे.
एक चैतन्यनी प्रतीत करतां अनंता सिद्धभगवंतो, केवळीओ अने संतोनी बधी ऋद्धि तने तारामां ज देखाशे,
ते ऋद्धि तारे क्यांय बीजे नहि शोधवी पडे. संत–महंतो जे ऋद्धि पाम्या ते पोताना चैतन्यमांथी ज पाम्या छे,
कांई बहारमांथी नथी पाम्या. तारा चैतन्यमां पण ए बधी ऋद्धि भरी छे, आंख उघाडीने अंतरमां जो तो ते
देखाय. पण जो परमांथी तारी ऋद्धि लेवा जईश तो आंधळो थईने घोर संसाररूपी जंगलमां भटकीश. अज्ञानी
जीवो अंतर्मुख थईने पोताना स्वभावना महिमानी प्रतीत करता नथी ने पुण्य–पापनां टपलां खाईने
अनादिथी भवचक्रमां भटकी रह्या छे; अहीं आचार्यप्रभु करुणा करीने ते भवभ्रमणथी छूटकारानो मार्ग बतावे
छे के अंतर्मुख थईने निजशक्तिनी संभाळ कर तो भवभ्रमणथी छूटकारो थाय.
न पडे.. तारा चैतन्यनो महिमा देखतां ज तने परनो महिमा छूटी जशे... अनंतधर्मस्वभावी तारो आत्मा ज
चैतन्यमूर्ति भगवान छे, तने कोई बीजानी जरूर नथी; तुं पोते ज दुनियाना निधानने जोनारो छे. सदाय
अल्पज्ञसेवक ज रह्या करे एवो तारा आत्मानो स्वभाव नथी, तारो आत्मा तो सर्वज्ञनो समोवडियो छे; जेटलुं
सर्वज्ञे कर्युं तेटलुं करवानी ताकात तारामां पण भरी छे. जे जीव आवी शक्तिवाळा निजआत्मानी प्रतीत करे
तेने कोई निमित्तना के विकल्पना आश्रयनी श्रद्धा ऊडी जाय छे, पर्यायबुद्धि छूटी जाय छे ने अनंत
चैतन्यशक्तिनो पिंड तेनी प्रतीतमां आवी जाय छे... ते सम्यग्द्रष्टि थईने मोक्षमार्गे विचरवा मांडे छे..
अंर्तद्रष्टिथी ते पोते ज पोताने त्रणलोकना नाथ परमेश्वर तरीके देखे छे.
तारी आंख उघाडीने चैतन्यनिधानने देख. तारुं अपूर्व निधान देखाडवा माटे आ तने अंजन अंजाय छे.
क्यांय अटके नहि ने संसारमां क्यांय भटके नहि–एवो तेनो ज्ञानस्वभाव छे. ज्यां ते स्वभावने प्रतीतमां
लीधो त्यां द्रष्टिमां तो भगवान थयो, ने हवे अल्पकाळे पर्याये पण प्रभुता प्रगटशे एटले एक समयमां
त्रणकाळ त्रणलोकने जाणी ल्ये एवुं सर्वगत ज्ञानसामर्थ्य खीली जशे.