पोताने खबर न पडे’––आम जे माने छे तेणे स्वयंप्रकाशमान आत्माने जाण्यो ज नथी. पोताने पोतानी खबर
न पडे–एवी वात आत्मामां छे ज नहि. पोताना अपूर्व स्वानुभवना वेदननो प्रकाश पोते ज पोतानी
प्रकाशशक्ति करे छे. सम्यग्दर्शन–सम्यग्ज्ञान थतां आत्माना अपूर्व अतीन्द्रिय आनंदनुं वेदन थाय अने तेनी
पोताने खबर न पडे–एम बने ज नहि, केम के आत्मा पोते ज स्वयं प्रकाशक छे. आत्मा पोताना प्रत्यक्ष
अनुभवथी प्रकाशमान छे; एकला अनुमानथी परोक्ष जाणे के ‘आत्मा आवो होवो जोईए’–तो ते ज्ञान यथार्थ
नथी. आत्मा एकला परोक्षज्ञानथी प्रकाशित थतो नथी, पण स्पष्ट प्रगटपणे पोताना संवेदननी साक्षी लाववो
पोते पोताथी ज प्रकाशमान छे, बीजा कोईनी साक्षी लेवा जवुं पडतुं नथी. पोताना स्वभावनुं परिणमन थयुं,
पोताने स्वभावनुं वारंवार वेदन थयुं–तेने प्रगटपणे प्रकाशवानी शक्ति आत्मामां त्रिकाळ छे. कोई कहे के
अमने अमारी खबर न पडे. तो तेने कहे छे के अरे मूर्ख! तने तारी खबर न पडे!! तुं तो चेतन छो के जड
छो? जडने पोतानी के परनी खबर न पडे, पण चेतनमां तो पोताने तेम ज परने जाणवानी परिपूर्ण ताकात
छे. भाई, तुं तारी पूर्ण ताकातने ओळख.
पोताने बराबर जाणी शके छे, पोते पोताने साक्षात् अनुभव करी शके छे, तेमां शास्त्रने के भगवानने पूछवा
जवुं न पडे. शास्त्रमां आत्मानुं गमे तेटलुं वर्णन कर्युं होय, पण ते शास्त्रनो मर्म जाणशे कोण? जाणनार तो
आत्मा छे ने! माटे आत्मा पोते पोताथी ज प्रकाशमान छे.
अनुभव करीने निःशंकता प्रगट कर तो भगवान तेम जाणे. जेम वस्तुस्थिति होय तेम भगवान जाणे ने? वळी
‘भगवाने ज्ञानमां जोयुं होय ते खरुं’–एम कह्युं, तो त्यां भगवानना ज्ञाननो निर्णय तो तें कर्यो ने?–तो
भगवानना ज्ञाननो जे निर्णय करे ते पोते पोताना ज्ञानस्वभावनो निर्णय केम न करी शके? जे जीव
ज्ञानस्वभावनी सन्मुख थईने आत्मानो अनुभव करे तेने पोताना अनुभवनी निःशंक खबर पडे छे.
संसारना वेपार–धंधा के रसोई वगेरे काममां ‘मने नथी आवडतुं’–एम नथी कहेता, त्यां तो ‘हुं जाणुं छुं’–एम
पोताना जाणपणानुं डहापण करे छे; अने अहीं पोते पोताने जाणवानी वात आवे त्यां ना पाडे छे. अरे भाई!
ऊंधी द्रष्टिने लीधे तारा ज्ञानमां स्वनी नास्ति ने परनी अस्ति थई गई छे. ‘बधाने जाणे छे कोण?’ –के हुं.
‘तो तने तारी खबर न पडे?–तो कहे छे के ना. वाह रे वाह! आश्चर्य छे, ‘अमुक देशमां माणस वगर चाले
तेवा एरोप्लेन नीकळ्या छे, मोटी लडाईमां हवे फलाणो देश हारी जशे’ एम त्यां तो पोतानुं जाणपणुं बतावे
छे, त्यां तो कांई अजाणपणुं नथी बतावतो; तो हे भाई! ‘आवो मारो चैतन्यमूर्ति आत्मा छे, मारामां आवी
अनंती शक्तिओ छे अने तेना आश्रये अल्पकाळमां केवळज्ञान थईने मारी मुक्ति थशे’–आम तारा आत्मानुं
नक्की करवानी शक्ति तारामां खरी के नहि? जे पर पदार्थोने प्रकाशी रह्यो छे तेनो पोतानो स्वयं प्रकाशमान
स्वभाव छे, एटले आत्मा स्वानुभवथी पोताने स्पष्ट जाणे एवो तेनो प्रकाशस्वभाव छे. माटे
आचार्यभगवान कहे छे के हे जीव! मने मारी खबर न पडे–ते वात हृदयमांथी काढी नांख, अने तारा आत्मामां
प्रकशशक्ति त्रिकाळ छे तेनो विश्वास कर, तेनी सन्मुख थईने प्रतीति कर. प्रकाशस्वभावी आत्मानी प्रतीति
करतां तने तारा आत्मानुं प्रत्यक्ष स्वसंवेदन थईने अल्पकाळमां तारी मुक्ति थशे.