Atmadharma magazine - Ank 110
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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मागशर : २४७९ : ३१ :
एक समयनां
कारण–कार्यमां त्रण भेद

समय समय(नां) कारण कार्य द्वारा आनंदनो
विलास थाय छे. ते कारण कार्य परिणामथी छे. पूर्व
परिणाम कारण छे ते उत्तर परिणाम(रूप) कार्यने करे
छे. ते एक ज कारण–कार्यमां त्रण भेद सधाय छे, ते
कहीए छीए. जेम षट्गुणी वृद्धि–हानि एक समयमां
सधाय छे तेम एक वस्तुना परिणाममां भेद
कल्पनाद्वार वडे कारण–कार्यनां त्रण भेद साधीए छीए.
(ते आ प्रमाणे–) द्रव्य कारण–कार्य, गुण कारण–कार्य
अने पर्याय कारण–कार्य. प्रथम द्रव्यना कारण–कार्य
कहीए छीए–
द्रव्यना कारण–कार्य
(१) द्रव्य पोते ज पोताना स्वभावथी पोतानुं
कारण छे अने पोते ज कार्यरूप छे; अथवा,
(२) गुण–पर्याय ते द्रव्यनुं कारण छे (अने
द्रव्य कार्य छे). गुण पर्यायवान् द्रव्य आवुं सूत्रनुं
वचन छे;
(३) पूर्व परिणामयुक्त द्रव्य कारण छे अने
उत्तर परिणामयुक्त द्रव्य कार्य छे; अथवा,
(४) ‘सत्’ कारण छे अने द्रव्य कार्य छे;
अथवा
(५) ‘द्रवत्वयोगात् द्रव्य’ (एटले के
द्रवत्वना योगथी द्रव्य छे) –द्रवत्वगुण कारण छे अने
द्रव्य कार्य छे.
द्रव्यनां कारण–कार्य द्रव्यमां ज छे, केम के द्रव्य
पोते ज पोताना कारणस्वभावपणे परिणमीने
पोताना कार्यने पोते ज करे छे. द्रव्यमां जो कारण–कार्य
न होय तो द्रव्यपणुं केवी रीते रहे? माटे संसारमां
जेटला पदार्थो छे ते ते सर्वे पोतपोतानां कारण–कार्यने
करे छे. तेथी जीवद्रव्यनां कारण–कार्यवडे जीवनुं सर्वस्व
प्रगटे छे. जे कांई छे ते कारण–कार्य ज छे [अर्थात्
कारण–कार्यमां बधुं आवी जाय छे]।
१. जुओ, तत्त्वार्थ सूत्र ५–३८.
२. स्वामी कार्तिकेयानुंप्रेक्षा गा. २२२; २३०.
हवे गुणना कारण–कार्य कहीए छीए:–
गुणनां कारण–कार्य
(१) द्रव्य–पर्याय ते गुणनुं कारण छे अने
गुण कार्य छे;
(२) केवळ द्रव्य–पर्याय (गुणनुं) कारण छे
एटलुं ज नहि परंतु गुण पण गुणनुं कारण छे अने
गुण ज कार्य छे. एक सत्तागुण सर्वे गुणोनुं कारण छे
अने सर्वे गुणो (तेनुं) कार्य छे. एक सूक्ष्म (त्व) गुण
सर्वे गुणोनुं कारण छे अने सर्वे गुणो कार्य छे. एक
अगुरुलघु गुण सर्वे गुणोनुं कारण छे अने सर्वे गुणो
कार्य छे. एक प्रदेशत्वगुण सर्वे गुणोनुं कारण छे अने
सर्वे गुणो कार्य छे, आ ज प्रकारे एकेक गुण सर्वे
गुणोनुं कारण छे अने सर्वे गुणो कार्य छे.
(३) हवे ते ज गुणनां कारण (कार्य) तेमां
कहीए छीए:– सत्तानुं निज कारण सत्तामां ज छे;
सत्ता, द्रव्य–गुण–पर्यायनां होवापणांरूप लक्षणवाळी
छे, तेथी उत्पाद–व्यय–धु्रव के जे सत्तानुं लक्षण छे ते
सत्तानुं कारण छे अने सत्ता कार्य छे. ए ज प्रमाणे
अगुरुलघुत्वगुण निजकारणवडे निज–कार्यने करे छे. ते
अगुरुलघुत्वगुणनो विकार (–परिणमन) षट्गुणी
वृद्धि–हानि छे; ए वृद्धि–हानिवडे ज अगुरुलघुकार्य
नीपज्युं छे, तेथी अगुरुलघु पोते पोतानुं ज कारण छे.
आ प्रमाणे सर्वे गुणो पोतपोतानुं कारण छे अने
पोताना कार्यने पोते ज करे छे.
‘अन्यगुणनिमित्तकारणग्राहक नय’ नी विवक्षाथी
अन्य गुणना कारणथी अन्य गुणनुं कार्य थाय छे;
‘अन्यगुणग्राहकनिरपेक्ष, केवळ ‘निजगुणग्राहकनय’
नी विवक्षाथी निज गुण पोते ज निजनां कारण–कार्यने
करे छे.
द्रव्य विना गुण होय नहि, माटे गुणकार्यनुं द्रव्य कारण
छे; पर्याय न होय तो गुणरूप कोण परिणमे? माटे
पर्याय कारण छे, गुण कार्य छे. ए प्रमाणे गुणकारण–
कार्यना अनेक भेद छे.