समय समय(नां) कारण कार्य द्वारा आनंदनो
परिणाम कारण छे ते उत्तर परिणाम(रूप) कार्यने करे
कहीए छीए. जेम षट्गुणी वृद्धि–हानि एक समयमां
सधाय छे तेम एक वस्तुना परिणाममां भेद
कल्पनाद्वार वडे कारण–कार्यनां त्रण भेद साधीए छीए.
(ते आ प्रमाणे–) द्रव्य कारण–कार्य, गुण कारण–कार्य
अने पर्याय कारण–कार्य. प्रथम द्रव्यना कारण–कार्य
कहीए छीए–
द्रव्य कार्य छे.
पोताना कार्यने पोते ज करे छे. द्रव्यमां जो कारण–कार्य
न होय तो द्रव्यपणुं केवी रीते रहे? माटे संसारमां
जेटला पदार्थो छे ते ते सर्वे पोतपोतानां कारण–कार्यने
करे छे. तेथी जीवद्रव्यनां कारण–कार्यवडे जीवनुं सर्वस्व
२. स्वामी कार्तिकेयानुंप्रेक्षा गा. २२२; २३०.
गुण ज कार्य छे. एक सत्तागुण सर्वे गुणोनुं कारण छे
अने सर्वे गुणो (तेनुं) कार्य छे. एक सूक्ष्म (त्व) गुण
सर्वे गुणोनुं कारण छे अने सर्वे गुणो कार्य छे. एक
अगुरुलघु गुण सर्वे गुणोनुं कारण छे अने सर्वे गुणो
कार्य छे. एक प्रदेशत्वगुण सर्वे गुणोनुं कारण छे अने
सर्वे गुणो कार्य छे, आ ज प्रकारे एकेक गुण सर्वे
गुणोनुं कारण छे अने सर्वे गुणो कार्य छे.
सत्ता, द्रव्य–गुण–पर्यायनां होवापणांरूप लक्षणवाळी
छे, तेथी उत्पाद–व्यय–धु्रव के जे सत्तानुं लक्षण छे ते
सत्तानुं कारण छे अने सत्ता कार्य छे. ए ज प्रमाणे
अगुरुलघुत्वगुण निजकारणवडे निज–कार्यने करे छे. ते
अगुरुलघुत्वगुणनो विकार (–परिणमन) षट्गुणी
वृद्धि–हानि छे; ए वृद्धि–हानिवडे ज अगुरुलघुकार्य
नीपज्युं छे, तेथी अगुरुलघु पोते पोतानुं ज कारण छे.
आ प्रमाणे सर्वे गुणो पोतपोतानुं कारण छे अने
पोताना कार्यने पोते ज करे छे.
‘अन्यगुणनिमित्तकारणग्राहक नय’ नी विवक्षाथी
अन्य गुणना कारणथी अन्य गुणनुं कार्य थाय छे;
‘अन्यगुणग्राहकनिरपेक्ष, केवळ ‘निजगुणग्राहकनय’
नी विवक्षाथी निज गुण पोते ज निजनां कारण–कार्यने
करे छे.
द्रव्य विना गुण होय नहि, माटे गुणकार्यनुं द्रव्य कारण
छे; पर्याय न होय तो गुणरूप कोण परिणमे? माटे
पर्याय कारण छे, गुण कार्य छे. ए प्रमाणे गुणकारण–
कार्यना अनेक भेद छे.