: ३२ : आत्मधर्म : ११०
हवे पर्यायना कारण–कार्य कहीए छीए:–
पर्यायनां कारण–कार्य
(१) द्रव्य (तथा) गुण ते पर्यायनुं कारण छे अने पर्याय कार्य छे; केम के द्रव्य विना पर्याय होय नहि,–
जेम समुद्र विना तरंग होतां नथी तेम. आ प्रमाणे पर्यायनो आधार द्रव्य छे, द्रव्यमांथी ज परिणति ऊठे छे.
(आलापपद्धतिमां) कह्युं छे के:–
अनादिनिधने द्रव्ये स्वपर्यायाः प्रतिक्षणं।
उन्मज्जंति निमज्जंति जलकल्लोलवज्जले।। पृष्ठ.२६.
अर्थ:–(जळमां जळना कल्लोलोनी समान अनादिनिधन द्रव्यमां द्रव्यना निज पर्यायो प्रत्येक समयमां
उत्पन्न थाय छे तथा नष्ट थाय छे.) आ प्रमाणे पर्यायनुं कारण द्रव्य छे.
(२) हवे गुण ते पर्यायनुं कारण छे ए कहीए छीए:–गुणोनो समुदाय द्रव्य छे; गुण विना द्रव्य न
होय, अने द्रव्य विना पर्याय न होय.–ए रीते गुण ते पर्यायनुं कारण छे. –एक तो आ विशेषण (–प्रकार) छे,
अने बीजुं गुण विना गुणपरिणति न होय माटे गुण, पर्यायनुं कारण छे. गुण पर्याय (रूपे) परिणमे छे त्यारे
गुणपरिणति (एवुं) नाम पामे छे, माटे गुण कारण छे अने पर्याय कार्य छे.
(३) पर्यायनुं कारण पर्याय ज छे, गुण विना ज (अर्थात् गुणनी अपेक्षा वगर ज) पर्यायनी सत्ता
पर्यायनुं कारण छे; पर्यायनुं सूक्ष्मत्व पर्यायनुं कारण छे, पर्यायनुं वीर्य पर्यायनुं कारण छे, पर्यायनुं प्रदेशत्व
पर्यायनुं कारण छे. अथवा,
(४) उत्पाद–व्यय कारण छे (ने पर्याय कार्य छे). केम के उत्पाद–व्ययवडे पर्याय जाणवामां आवे छे माटे
ते पर्यायनुं कारण छे अने पर्याय (तेनुं) कार्य छे.
ए प्रमाणे कार्य–कारणना भेद छे. वस्तुनो सर्वरस सर्व स्वकारण कार्य ज छे. कारण कार्य जाण्या तेणे सर्व
जाण्युं. आ परमात्माने अनंत गुणो छे, अनंत शक्ति छे, अनंत गुणोना अनंतानंत पर्यायो छे, अनंत चेतना–
चिह्नमां अनंत, अनंतानत सप्तमभंग सधाय छे. आ वगेरे प्रकारे वस्तुनो अनंत महिमा छे. ते (महिमाने)
कोई क्यां सुधी कहे? माटे जेओ संत छे तेओ स्वरूपना अनुभव (रूपी) अमृतरस पीने अमर थाओ.
(चिद्दविलास पृ. ९२–९५)
(अनुसंधान पृष्ठ ३०थी चालु)
नियम छे के हुं गोरस नहि लउं, ते गोरसने ग्रहण
करतो नथी. माटे तत्त्व छे ते त्रणे थईने छे. दूध छे ते
गोरसनो पर्याय छे अने दहीं पण (गोरसनो) पर्याय
छे. एक पर्यायमात्रने ग्रहण करवाथी गोरसनी सिद्धि
थती नथी, गोरस सर्व (आखुं) (तेमां) आवी जतुं
नथी. तेम एक उत्पादमां अथवा व्ययमां अथवा
धु्रवमां वस्तुनी सिद्धि थती नथी, (पण) वस्तु त्रणे
वडे सिद्ध छे. जेम कोई पंचरंगी चित्र छे, (तेमांथी)
एक ज रंगने ग्रहवाथी चित्रनुं ग्रहण थतुं नथी; तेम
उत्पाद–व्यय–धु्रव ए त्रणेमय वस्तु छे, (उत्पादादि
कोई) एक ज वडे तेनुं ग्रहण थतुं नथी.
जो वस्तुने धु्रव ज मानो तो बे दोष लागे–* एक
तो धु्रवनो ज नाश थाय; उत्पाद–व्यय वगर (वस्तु)
अर्थक्रियाकारक न होय अने अर्थक्रिया वगर वस्तुनी सिद्धि
न थाय– (वस्तुमां) षट्गुणी वृद्धि–हानि न थाय; एम
थतां (वस्तु) अगुरुलघु न रहे ने वस्तु हलकी–भारे
थईने जड थई जाय, तेथी चिद्धु्रवता न रहे. बीजा ए
दोष–क्षणवर्ती पर्याय पण नित्य थई जाय, एम थतां
अधु्रव पण धु्रव थई जाय.
वळी केवळ उत्पाद ज मानीए तो बे दोष
लागे–एक तो उत्पादन कारण–व्ययनो अभाव थाय,
व्ययनो अभाव थतां उत्पादनो अभाव थाय. बीजो
दोष ए–जो असत्नो उत्पाद थाय तो आकाशना
फूलनी पण उत्पत्ति देखाय पण ए कल्पना जूठी छे.
केवळ व्यय ज मानवामां आवे तो बे दोष
लागे–एक तो विनाशनुं (व्ययनुं) कारण जे उत्पाद
तेनो अभाव थाय, एम थतां विनाश पण होय नहि;
कारण वगर कार्य होय नहि; बीजो ए दोष–सत्नो
उच्छेद थई जाय; अने सत्नो उच्छेद थतां ज्ञानादि
चेतनानो नाश थई जाय.
माटे (उत्पाद–व्यय–धु्रव ए) त्रिलक्षणरूप
वस्तु छे. १
(–चिद्दविलास पृ: ३५ थी ३८)
* जुओ, प्रवचनसार गा.१०० टीका १. जुओ, प्रवचनसार गा. १०० टीका.