Atmadharma magazine - Ank 110
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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मागशर : २४७९ : ३३ :
“शुद्धआत्मानो अनुभव केम थाय? ”
शुद्धात्मानी अनुभूति माटे तलसतो शिष्य प्रश्न पूछे छे
–अने–
श्रीगुरु तेने शुद्धात्माना अनुभवनी रीत समजावे छे

शुद्धनयथी आत्मानुं स्वरूप केवुं छे ते आचार्यदेव ओळखावे छे–
अबद्धस्पृष्ट, अनन्य ने जे नियत देखे आत्मने,
अविशेष, अणसंयुक्त, तेने शुद्धनय तुं जाणजे.१४.
आ गाथा शुद्धनयथी आत्मानुं स्वरूप बतावनारी छे. शुद्धनयथी आवा आत्माने देखवो ते सम्यग्दर्शन
छे. ‘जो परसदि अप्पाणं...’ अर्थात् जे आवा आत्माने देखे छे तेने हे शिष्य! तुं शुद्धनय जाण’–एम कह्युं
एटले एवा शुद्धात्माने देखवानी–अनुभववानी तालावेली जेना अंतरमां जागी छे एवा शिष्यने माटे आ
शुद्धनयनो उपदेश छे. वळी ‘...
तं सुद्धणयं वियाणीहि’ एम कहीने श्री आचार्यदेव शिष्यने शुद्धनय जाणवानुं
कहे छे, तो सामे सांभळनार शिष्यमां पण शुद्धनयने जाणवानी पात्रता छे–एम ते सूचवे छे. आचार्यदेव कहे छे
के हे शिष्य! तुं आवा शुद्धनयने जाण!–तो सामे तेवुं जाणनार शिष्य न होय एम बने नहि.
‘शुद्धनय’ एटले शुं?
बंधरहित ने परना स्पर्शरहित, अन्यपणारहित, चळाचळतारहितविशेषरहितअन्यना संयोगरहित–
एवा पांच भावरूप शुद्ध आत्माने जे ज्ञान देखे छे तेने शुद्धनय जाणवो.
जुओ, अहीं आचार्यदेव शुद्धआत्माने जाणवानुं कहे छे : हे शिष्य! शुद्धनय वडे तुं तारा शुद्धआत्माने
जाण. शुद्ध आत्मा सिवाय बीजुं अनादिथी तें जाण्युं छे पण शुद्ध आत्मानुं स्वरूप पूर्वे कदी पण जाण्युं नथी तेथी
ज आ संसारभ्रमण मटयुं नथी. ‘हुं क्रोधी, हुं मनुष्य, हुं परना संबंधवाळो’ –एम अनादिथी जीव मानी रह्यो
छे, पण क्रोध विनानो, देह विनानो ने परना संबंध विनानो शुद्धज्ञायक–मूर्ति आत्मा हुं छुं’–एम शुद्धनयथी कदी
जाण्युं नथी. माटे आचार्यदेव ते जाणवानो उपदेश आपे छे. आवो शुद्धनयनो उपदेश सांभळवा जे शिष्य
जिज्ञासाथी ऊभो छे ते पण ए ज जाणवा मांगे छे के प्रभो! अनादिकाळथी हुं मारा आत्माने अशुद्ध अने
संयोगवाळो ज मानीने अत्यार सुधी संसारमां रखड्यो, पण शुद्धनयथी में मारा आत्माने कदी ओळख्यो नहि;
हवे मारे शुद्धनय अनुसार मारा आत्मानुं स्वरूप जाणवा योग्य छे,–के जे जाणवाथी सम्यग्दर्शन थईने मारी
मुक्ति थाय. आ प्रमाणे पोताना शुद्धआत्माने जाणवानी ज शिष्यने प्रधानता छे, बीजी अप्रयोजनभूत बाबत
जाणवानी प्रधानता नथी. ज्ञानना उघाडथी बीजी अप्रयोजनभूत वातो जणाय तो तेनुं अभिमान नथी अने न
जणाय तो तेनो खेद नथी, शुद्ध आत्माने जाणवानी ज धगश अने उत्साह छे.
आत्मज्ञानी संतने शोधीने जिज्ञासु शिष्य पूछे छे : प्रभो! शुद्ध आत्मानी अनुभूति केम थाय? श्रीगुरु
तेने उत्तर आपे छे के आत्माना भूतार्थस्वभावनी समीप थईने अनुभव करतां शुद्ध आत्मानो अनुभव थाय
छे. जुओ, जे शिष्य जिज्ञासु थईने पूछे छे तेने श्रीगुरु कहे छे के तुं आवा आत्माने जाण! पण जेने जिज्ञासा
नथी तेने पराणे संभळाववा नथी जता. तत्त्वार्थसूत्रमां
सम्यग्दर्शनज्ञानचारित्राणि मोक्षमार्गः’ एवुं प्रथम
सूत्र छे; तेनी टीकामां प्रश्न कर्यो छे के आ सूत्र कोना माटे प्रवर्त्युं छे? तेना उत्तरमां कहे छे के जे शिष्यनी
अल्पकाळमां मुक्ति थवानी छे अने वर्तमानमां जे मोक्षमार्गना श्रवणनी झंखनावाळो छे–एवा शिष्यने माटे
आ सूत्र प्रवर्तमान थयुं छे. तेम अहीं प्रश्नकार शिष्यने अल्पकाळमां भवभ्रमणथी छूटकारो