ते गुरुए तेवा शुद्धआत्मानो अनुभव कर्यो छे एम पण आमां आवी गयुं, केम के जेणे पोते शुद्धआत्मानो
अनुभव न कर्यो होय ते बीजाने अनुभवनो उपाय क्यांथी बतावी शके? जेमणे पोते शुद्धआत्मानो अनुभव
करेलो छे एवा गुरु जिज्ञासु शिष्यने तेनी रीत समजावे छे के–बद्धस्पृष्ट आदि जे अशुद्ध भावो छे ते फक्त
क्षणिक पर्याय पुरता छे, अभूतार्थ छे, तारा त्रिकाळी भूतार्थ–स्वभावमां ते भावो नथी, माटे हे शिष्य!
शुद्धनयना अवलंबन वडे भूतार्थस्वभावनी समीप थईने अनुभव करतां अमे कह्यो तेवा आत्मानो अनुभव
थाय छे. आत्माना भूतार्थस्वभावनी द्रष्टिमां कर्मनुं बंधन के अशुद्धता देखाता नथी तेथी ते अभूतार्थ छे अने
ते अभूतार्थ होवाथी तेनाथी रहित एवा अबद्धस्पृष्ट–शुद्धआत्मानो अनुभव थई शके छे. पर्यायना आश्रये ते
अनुभव थतो नथी पण त्रिकाळी द्रव्यस्वभावना आश्रये ते अनुभव थाय छे. तने आत्मामां जे बंधन अने
अशुद्धपणुं देखाय छे ते मात्र पर्यायद्रष्टिथी ज छे, शुद्ध द्रव्यस्वभावनी द्रष्टिथी जोतां तो आत्मा तेमनाथी रहित
एकाकार शुद्ध छे; माटे ते स्वभावनी समीप जईने अनुभव करतां अबद्ध–अस्पृष्ट–अनन्य–नियत–अविशेष
अने असंयुक्त एवा भगवान आत्मानो अनुभव थाय छे.
(१) अबद्धस्पृष्ट : आत्मा बंधन अने परना स्पर्श–रहित छे; जेम पाणीना संयोग तरफनी अवस्थाथी
तेम कर्मना संयोग तरफनी अवस्थाथी अनुभव करतां आत्मा कर्मथी बंधायेलो अने कर्मथी स्पर्शायेलो देखाय
छे पण आत्माना मूळ स्वभावनो अनुभव करतां ते बंधनरहित छे अने पुद्गलना स्पर्शथी रहित छे, ए रीते
आत्मा अबद्धस्पृष्ट छे.
माटी ज छे; तेम मनुष्य–देव वगेरे अनेक पर्यायोथी जोतां आत्मा अनेक आकारो रूपे देखाय छे, परंतु मूळ
स्वभावथी जोतां आत्मा एकरूप चैतन्यआकारमय छे, पर्यायना जुदा जुदा आकारो तेना स्वभावमां नथी, ए
रीते आत्मा अनन्य छे.
पर्यायमां ज्ञान वगेरे पर्यायोनी वृद्धि–हानिरूप अनियतपणुं देखाय छे पण त्रिकाळी स्वभावनी द्रष्टिथी जुओ
तो आत्मा वृद्धि–हानिथी रहित नित्य एकरूप स्थिर छे, ए रीते आत्मा नियत छे.
तेम ज्ञान–दर्शन वगेरे गुणोना भेदथी जोतां आत्मा विशेष भेदरूप देखाय छे पण अनंतगुणोथी अभेदरूप
सामान्य स्वभावनो अनुभव करतां तेमां भेदनो विकल्प रहेतो नथी, ए रीते आत्मा अविशेष छे.
उष्णता नथी; तेम आत्मानी अवस्थामां मोह साथे संयुक्तपणु देखाय छे पण आत्मानो स्वभाव एकांत
बोधबीजरूप छे, तेमां मोहथी संयुक्तपणुं नथी, तेथी आत्मा असंयुक्त छे. आवा स्वभावनी द्रष्टिथी पर्यायमां
पण असंयुक्तपणुं–मोहरहित शुद्धपणुं प्रगटे छे.
बीजुं कोई तेनुं साधन नथी. उपयोगने अनादिथी आम (बहारमां) वाळे छे तेने बदले आम (अंतरमां)
वाळवो ते ज अनुभवनी रीत छे. अनादिथी शुद्धआत्माने भूलीने, विकार ते हुं, अने संयोग ते हुं–एम मानीने
ते विकारनी