करीने आवा परमार्थस्वभावने द्रष्टिमां लेतां शुद्ध आत्मानो अनुभव थाय छे.
पण विकल्प थाय छे, ते गुणभेदना विकल्पमां रोकातां शुद्धआत्मानो अनुभव थतो नथी. शुद्धनय तो भेदना
विकल्पथी रहित छे, शुद्धनयथी आत्मानो अनुभव करे त्यारे तेमां विकल्प होतो नथी. माटे गुणभेदनो विकल्प
करे तो ज आत्माने मान्यो कहेवाय–एम नथी, पण गुणभेदना विकल्पथी पण जुदो पडीने एकाकार
आत्मस्वभावने शुद्धनयथी स्वीकारे तेणे आत्माने जाण्यो छे. शुद्धनयथी आवा आत्मानी द्रष्टि प्रगट्या पछी
भेदनो विकल्प ऊठे ते मात्र अस्थिरतानो विकल्प छे, ते वखते य धर्मीनी द्रष्टिमां तो अभेदस्वभावनो ज
स्वीकार छे.
स्वभावथी तो आत्मा त्रिकाळ राग–द्वेष–मोह विनानो छे ज, अने ज्यां ते स्वभावने लक्षमां लईने पर्याये ते
स्वभावनी समीपता करी त्यां पर्याय राग–द्वेष–मोहथी दूर थई एटले ते पर्यायमां पण असंयुक्तपणुं प्रगट्युं.
‘हुं राग–द्वेष–मोहथी संयुक्त नथी, हुं तो शुद्ध ज्ञानस्वरूप छुं’–एम शुद्धनयथी पोताना स्वभावने पकडीने तेनो
अनुभव कर्यो त्यां पर्याय पर साथे संयुक्त न थई पण स्वभावमां संयुक्त थई एटले आत्मा संयुक्त थयो.
पोतानी पर्यायने परसंगथी खसेडीने, ज्ञायकस्वभाव तरफ वाळीने पर्यायमां राग–द्वेष–मोहथी असंयुक्तपणुं जे
प्रगट करे तेणे ज खरेखर असंयुक्त आत्मस्वभावने जाण्यो छे. आ रीते पर्यायमां परिणमन सहितनी आ
वात छे. जे जीव शुद्धनयथी आत्मस्वभावने स्वीकारे तेने पर्यायमां पण शुद्धतानुं परिणमन थया विना रहे ज
नहि.
पूछनार शिष्यने आचार्यदेव आ वात समजावे छे. जे शिष्य आ वात सांभळवा आव्यो छे तेने हजी अनुभव
थयो नथी पण ते शुद्धात्माना अनुभवनो कामी छे, जगतना मान–आबरूनो के विषय–कषायनो कामी नथी,
रागनो ने व्ययहारनो कामी नथी पण अंतरमां आत्मानो अनुभव थईने भवभ्रमण केम मटे तेनो ज कामी छे.
ते व्यवहारने तो जाणे छे, रागथी ने पराश्रयथी धर्म मनावनारा एवा कुदेव–कुगुरु–कुशास्त्रनी श्रद्धा छूटीने तेने
साचा देव–गुरु–शास्त्रनी श्रद्धा थई छे अने हवे शुद्धनय केवो छे ते जाणवा मांगे छे. आवा पात्र शिष्यने
संबोधीने ‘
तैयारीवाळा शिष्यने शुद्धनयनो उपदेश परिणमी जाय छे अने अंतरमां तेने शुद्धआत्मानो अनुभव थाय छे.
वगर असंयुक्त आत्माने मान्यो कहेवाय नहि; केम के असंयुक्त आत्मस्वभावने स्वीकारनारी तो पर्याय छे, ते
पर्याय पोते जो मोहथी जुदी पडीने असंयुक्त न थाय तो त्रिकाळी मोहरहित एवा असंयुक्त आत्माने तेणे कई
रीते स्वीकार्यो? जे जीव आत्माने कर्मना संगवाळो के भेदना विकल्पवाळो अशुद्ध ज अनुभवे छे तेने अमे
आत्मा कहेता नथी पण पुण्य कहीए छीए; ते जीवना अनुभवमां आत्मा नथी आव्यो पण पुण्यना विकल्पने
ज आत्मा मानीने ते अनुभवे छे. पुण्यना क्षणिक विकल्पने ज आत्मा मानीने जे अनुभवे छे ते मिथ्याद्रष्टि छे.
शुद्धनयथी आत्मानुं परमार्थ स्वरूप जाण्या विना ते मिथ्याद्रष्टिपणुं टळे नहि ने धर्म थाय नहि. निश्चयथी
आत्मा परना संबंध वगरनो, विकार वगरनो ने भेद वगरनो एकाकार