एकाग्रताथी अमे केवळज्ञान प्रगट कर्युं छे; अने दरेक
जीवना अंतरमां चैतन्यदरियो छलोछल छलकाई
रह्यो छे, तेमां अंर्तद्रष्टि करवी ते सम्यग्दर्शन छे.
आखो परिपूर्ण चैतन्य आत्मा छे तेनुं भान कर्या
सिवाय बीजी कोई रीते साचुं सम्यक्त्व थतुं नथी.
दरेक आत्मा प्रभु छे, पूर्ण सामर्थ्यवाळा छे; वर्तमान
अवस्थामां अपूर्णता भले हो, पण ते अपूर्णता सदा
रह्या करे–एवुं तेनुं स्वरूप नथी. पर्यायथी पण
आत्मस्वभावने ओळखीने तेना अनुभवथी ज
धर्मनी शरूआत थाय छे.
समजीने पोताना परिपूर्ण आत्मानी श्रद्धा अने
आश्रय करवो ने परनो आश्रय छोडवो ते परमेश्वर
थवानो पंथ छे.