Atmadharma magazine - Ank 110
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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: २६ : आत्मधर्म : ११०
अपूर्व कल्याण कोने प्रगटे?
परथी मने लाभ छे, परनुं कांईक हुं करी शकुं छुं, पर मारे ताबे छे–
आवी बुद्धि ज्यां सुधी जीवने रहे त्यां सुधी परमां ईष्ट–अनिष्टपणानी मिथ्या
कल्पना तेने टळती नथी अने पोताना कल्याणमां तेनी बुद्धि लागती नथी. हजी
तो परनुं करवानो बोजो पोताना माथे मानीने फरे ते पोताना कल्याणनो
विचार करवा क्यांथी नवरो थाय? माटे जेने पोतानुं कल्याण करवानी भावना
होय तेणे, परथी मने लाभ–नुकसान थाय के हुं परनुं कांई भलुं–बुरुं हुं करी
दउं–एवा प्रकारनी ऊंधी मान्यता उपर मींडा मूकीने, परथी भिन्न निरालंबी
स्वाधीन आत्मस्वभावने मान्ये ज छूटको छे. पोताना आत्माने परथी छूटो
माने तो पर तरफथी पाछो फरीने आत्माना आश्रये पोतानुं कल्याण करे.
आत्मा परनुं कांई करे अथवा तो परने लीधे आत्मानुं हित थाय–ए वात तो
दूर रहो.....परंतु......मनना अवलंबने जे शुभ विकल्प ऊठे तेनाथी पण
आत्माने धर्म के हित नथी; शुभ–विकल्प पण आत्माना गुणनो रोधक छे.
पुण्य–पापरूप विकारथी आत्मगुणने मदद थाय–एम माननारे गुणने अने
विकारने एकमेक मान्या छे, विकारथी भिन्न आत्मस्वभावने तेणे जाण्यो नथी,
एटले तेने पण कल्याण क्यांथी प्रगटे? जेमांथी कल्याण प्रगटे छे एवा आत्माने
जाण्या विना शेमांथी कल्याण लावशे? परथी भिन्न अने विकारथी रहित स्वतंत्र
निर्विकारी आत्मस्वभावने जे जाणे तेने ज तेमां एकाग्रता वडे अपूर्व
आत्मकल्याण प्रगटे छे.
–प्रवचनमांथी.
ज्ञानीना हृदयमांथी करुणा झरे छे....
“हे भाई! परनी चिंता छोडीने तारुं पोतानुं कल्याण केम थाय तेनो
तुं विचार कर...तुं तारुं सुधार. तारा हित माटे तुं अंतर्मुख स्वभावमां
जो.....ने तारा पूर्ण स्वरूपने लक्षमां ले... भाई! आ देह तो क्षणमां छूटी
जशे. बहारमां तो भले गमे तेम थाय पण तुं तारा आत्मतत्त्वने समज. ते
समजवाथी ज तारुं कल्याण थशे ने भवथी निवेडा आवशे.’ –आत्मा परनुं
तो कांई करी शकतो नथी छतां अज्ञानी मात्र अभिमान करीने भवसमुद्रमां
भटके छे; एवा जीवो उपर करुणा करीने, तेओना हितनो आवो उपदेश
ज्ञानीओए कर्यो छे. अहो! आ वात तो जगतने पहेली समजवा जेवी छे.
बीजुं तो भले आवडे के न आवडे पण आ वात जरूर समजवा जेवी छे.
आ समज्या विना कल्याण थवानुं नथी. जे आ समजशे तेना भवथी
निवेडा आवशे. आत्मानुं पोतानुं हित करवा माटेनी आ वात छे
–प्रवचन उपरथी.