Atmadharma magazine - Ank 110
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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मागशर : २४७९ : २७ :
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी
केटलीक शक्तिओ
[गतांकथी पूर्ण]
(१) आत्मानी प्रकाशशक्ति कोई परना आश्रये रहेली नथी, तेथी परनी सामे जोईने ते शक्तिनी
प्रतीत थती नथी;
(२) आत्मानी प्रकाशशक्ति विकारना आश्रये रहेली नथी, तेथी विकारनी सामे जोईने पण ते शक्तिनी
प्रतीत थती नथी.
(३) आत्मानी प्रकाशशक्ति त्रिकाळ छे ते क्षणिक पर्यायना आश्रये रहेली नथी, तेथी पर्यायनी सामे
जोईने पण तेनी प्रतीत थती नथी.
(४) आत्मामां एक प्रकाशशक्ति जुदी रहेली नथी, एटले अनंत शक्तिना पिंडमांथी एक शक्तिनो भेद
पाडीने लक्षमां लेतां पण तेनी यथार्थ प्रतीति थती नथी.
(प) अनंत धर्मनो पिंड आत्मा छे तेना ज आश्रये आ प्रकाशशक्ति रहेली छे, तेथी ते अभेद आत्मानी
सामे जोईने ज आ शक्तिनी यथार्थ कबूलात थाय छे. ज्यां अभेद आत्मानी द्रष्टि थई त्यां एकसाथे अनंतशक्तिओ
पंचमकाळना तीर्थंकर अने पंचमकाळना गणधर
[–तेमणे कहेलो समस्त जिनशासननो सार–]
श्री समयप्राभृतना मूळ सूत्रोनी रचना करनार भगवानश्री कुंदकुंदाचार्यदेव
लगभग बे हजार वर्ष पहेलांं आ भरतभूमिमां साक्षात् मोजूद वन–जंगलमां वसता
हता....तेओश्री महान दिगंबर संत हता; अहो! आ पंचमकाळमां तेओश्रीए तीर्थंकर जेवुं
काम कर्युं छे. अने आ शास्त्रना टीकाकार श्री अमृतचंद्राचार्यदेव पण लगभग एक हजार
वर्ष पहेलांं थयेला महामुनि हता, तेओश्रीए पंचमकळमां गणधर जेवुं काम कर्युं छे.
आवा महासमर्थ...आभना थोभ जेवा संतो समयसारनी पंदरमी गाथामां
समस्त जिनशासननो मर्म खुल्लो मूकतां कहे छे के :
जो पस्सदि अप्पाणं अबद्धपुट्ठं अणण्णमविसेसं।
अपदेससन्तमज्झं पस्सदि जिणसासणं सव्वं।।१५।।
जे पुरुष आत्माने अबद्धस्पृष्ट, अनन्य, अविशेष (तथा उपलक्षणथी नियत
अने असंयुक्त) देखे छे ते सर्व जिनशासनने देखे छे,–के जे जिनशासन बाह्य
द्रव्यश्रुत तेम ज अभ्यंतर ज्ञानरूप भावश्रुतवाळुं छे.
टीका:–‘जे आ अबद्धस्पृष्ट, अनन्य, नियत, अविशेष अने असंयुक्त एवा
पांच भावो–स्वरूप आत्मानी अनुभूति छे ते निश्चयथी समस्त जिनशासननी
अनुभूति छे.’
पोताना शुद्धआत्माथी भिन्न कांई जिनशासन नथी, माटे शुद्ध आत्मानो
अनुभव कहो के समस्त जिनशासननो अनुभव कहो–ते एक ज छे. जेणे पोताना
शुद्धआत्माने जाण्यो तेणे समस्त जिनशासनने जाणी लीधुं.
– चर्चा उपरथी.