जाणीने निःशंक न थाय अने मिथ्यात्वादि शल्यने न टाळे त्यां सुधी साचा व्रतादि होता नथी.
वस्तुनुं प्रतिबिंब कई रीते पडे? ज्ञानमां परने पण जाणवानी ताकात छे तेथी तेमां पर जणाय छे ते अपेक्षाए
ज्ञानमां परनुं प्रतिबिंब कह्युं छे. ज्ञाननुं स्व परप्रकाशक सामर्थ्य बताववा माटे निमित्तथी तेम कह्युं छे. जो
ज्ञानमां खरेखर परनुं प्रतिबिंब पडतुं होय तो कोलसानुं प्रतिबिंब पडतां ज्ञान काळुं थई जाय, दस हाथ ऊंचा
लीमडानुं पतिबिंब पडतां ज्ञानने पण दस हाथ पहोळुं थवुं पडे! पण एम थतुं नथी, ज्ञान पोते साडा त्रण
हाथमां रहीने पण दस हाथना लीमडाने जाणी ल्ये छे; माटे परज्ञेयनो आकार के प्रतिबिंब ज्ञानमां आवता
नथी, पण ज्ञान तेने जाणी ले छे ते अपेक्षाए ज्ञानमां तेनुं प्रतिबिंब कह्युं छे.
जेम अरीसामां कोलसानुं प्रतिबिंब जणातां जे काळापणुं देखाय छे ते कांई अरीसानो मेल नथी पण ते तो तेनी
स्वच्छतानुं परिणमन छे; तेम ज्ञानमां अनेक ज्ञेयो जणातां जे अनेकरूपता थाय छे ते कांई ज्ञाननो मेल नथी
पण ज्ञाननी स्वच्छतानो तेवो स्वभाव छे के बधा ज्ञेयो तेमां जणाय. साकरने, लीमडाने के लींबुने जाणतां ज्ञान
कांई मीठुं कडवुं के खाटुं थई जतुं नथी, केम के ज्ञानमां परज्ञेयनो अभाव छे, ते ते प्रकारना अनेकविध पदार्थोना
ज्ञानपणे थवानो ज्ञाननो स्वभाव छे.
ज्ञानमां ते याद आवे के अमुक वर्ष पहेलांं मने आ जातना खराब परिणाम थया हता; तो त्यां पूर्वना विकारी
परिणामनुं ज्ञान थाय छे पण ते ज्ञान भेगी कांई पूर्वना विकारी परिणामनी उपाधि आवी जती नथी. ज्ञान
पोते विकार वगरनुं रहीने विकारने पण जाणे–एवो तेनो स्वभाव छे. अनेक प्रकारना समस्त ज्ञेयोने
जाणवानो ज्ञाननो स्वभाव छे पण राग करवानो तेनो स्वभाव नथी. ज्ञान वखते साथे जे राग थाय ते दोष छे
तेथी ते तो नीकळी जाय छे, पण ज्ञानमां जे अनेकता (अनेक पदार्थोनुं ज्ञान) थाय छे ते तो तेनो स्वभाव छे,
जो तेने काढी नांखो तो तो ज्ञाननो ज नाश थई जाय, एटले के जो ज्ञाननी अनेकता थाय छे तेने न माने तो
ज्ञानस्वभाव प्रतीतमां आवतो नथी. माटे हे भाई! तुं धीरो थईने तारा ज्ञानस्वभावनी प्रतीत कर. तारा
ज्ञानस्वभावमां केवा केवा धर्मो रहेला छे ते आचार्यदेव ओळखावे छे, माटे तेनो महिमा लावीने ओळखाण कर.
स्वभावमां विकार नथी एम जाण्युं होय ते ज पूर्वना विकारनुं यथार्थ ज्ञान करी शके. ते ज्ञान कांई विकारनुं
कारण नथी. सर्वज्ञना ज्ञानमां शुं न जणाय? केवळीभगवान पूर्वे निगोददशामां हता तेने पण जाणे छे,
जगतनी बधी गूढमां गूढ बाबतोने पण ते जाणे छे, छतां तेमना ज्ञानमां किंचित् पण विकार थतो नथी.–तो हे
जीव! शुं तारामां पण तेवो स्वभाव नथी? ? सर्वज्ञनो तेवो स्वभाव प्रगट्यो क्यांथी? अंदर आत्मामां तेवो
स्वभाव शक्तिरूपे हतो ज, तेना ज अवलंबने ते प्रगट्यो छे. ने तारा आत्मामां पण तेवो ज ज्ञानस्वभाव छे,
अंतर्मुख थईने तेनी प्रतीत करीने तेनुं अवलंबन कर तो तारामां पण सर्वज्ञ जेवुं स्वभावसामर्थ्य प्रगटी जाय.
सर्वज्ञ भगवान थया तेमनी शक्तिमां अने तारा आत्मानी शक्तिमां कांई फेर नथी, सर्वज्ञ करतां तारा
आत्मानी शक्तिमां किंचित् पण ओछा–