Atmadharma magazine - Ank 111
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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: ४६: आत्मधर्म: १११
‘आत्मा कोण छे
ने कई रीते पमाय?’
[१३]
श्री प्रवचनसारना परिशिष्टमां ४७ नयोद्वारा आत्मद्रव्यनुं
वर्णन कर्युं छे, तेना उपर पू. गुरुदेवश्रीना
विशिष्ट अपूर्व प्रवचनोनो सार.
(अंक १०९ थी चालु)
• ‘प्रभो! आ आत्मा कोण छे अने कई रीते प्राप्त कराय छे’–एम जिज्ञासु
शिष्य पूछे छे.
• तेना उत्तरमां श्री आचार्यदेव कहे छे के ‘आत्मा अनंत धर्मोवाळुं एक
द्रव्य छे अने अनंत नयात्मक श्रुतज्ञान–प्रमाणपूर्वक स्वानुभव वडे ते
जणाय छे.
• आवा आत्मद्रव्यनुं ४७ नयोथी वर्णन कर्युं छे, तेमांथी २३ नयो उपरना
प्रवचनो अत्यार सुधीमां आवी गया छे, त्यारपछी आगळ अहीं
आपवामां आवे छे.
(२४) ज्ञानज्ञेय–अद्वैतनये आत्मानुं वर्णन
आत्मा अनंत धर्मोवाळुं एक द्रव्य छे; ज्ञान अने ज्ञेयना अद्वैतरूप नये जोतां ते आत्मद्रव्य, मोटा
इंधनसमूहरूपे परिणत अग्निनी माफक, एक छे.
जिज्ञासु शिष्ये पूछयुं हतुं के प्रभो! आ आत्मा केवो छे? तेनुं स्वरूप शुं छे? तेनो आ उत्तर चाले छे.
आत्मा चैतन्यस्वरूप वस्तु छे, तेनामां अनंत धर्मो छे. खरेखर आत्मा पोते पोतामां छे ने पर परमां छे,
आत्मामां पर पदार्थो आवी जता नथी; परंतु आत्मानो ज्ञानस्वभाव एवो विशाळ छे के तेमां बधाय ज्ञेयो
जणाय छे. जेम अग्निना मोटा भडकामां अनेक जातना लाकडा वगेरे बळतां होय त्यां अग्निनो एक मोटो भडको
ज देखाय छे. तेम आत्मानी ज्ञानज्योतिनुं एवुं मोटुं सामर्थ्य छे के बधा ज्ञेयोने ते जाणी ल्ये छे, ते अपेक्षाए
ज्ञान जाणे के बधा ज्ञेयो साथे अद्वैत होय! –एम कह्युं छे. एकलुं ज्ञान जाणे पोते अनंत पदार्थोपणे थतुं होय–
एम बधा ज्ञेयोने जाणवाने तेनो स्वभाव छे. आ स्वभाव कोई निमित्तोने लीधे के रागने लीधे नथी, जगतमां
केवळी भगवान वगेरे छे माटे आ आत्मामां तेनुं ज्ञान करवानो धर्म छे–एम नथी. ज्ञान करवानो धर्म तो
पोताना कारणे छे ने ज्ञेयो तेमना कारणे छे, कोईना कारणे कोई नथी.
ज्ञान अने ज्ञेयपदार्थो कदी एकमेक थई जता नथी, पण ज्ञानस्वभावी आत्मामां एक एवो स्व–
परप्रकाशकधर्म छे के लोकालोकना समस्त ज्ञेयो जाणे के ज्ञानमां कोतराई गयां होय–एम जणाय छे. पहेलांं
२००मी गाथामां पण कह्युं हतुं के ‘एक ज्ञायकभावनो सर्व ज्ञेयोने जाणवानो स्वभाव होवाथी, क्रमे प्रवर्तता,
अनंत, भूत–वर्तमान–भावी विचित्र पर्यायसमूहवाळां, अगाधस्वभाव अने गंभीर एवां समस्त द्रव्यमात्रने–
जाणे के ते द्रव्यो ज्ञायकमां