होय...प्रतिबिंबित थयां होय एम एक क्षणमां ज शुद्ध आत्मा प्रत्यक्ष करे छे.’ आवा ज्ञेयज्ञायक संबंधने लीधे ज्ञान
अने ज्ञेयो जाणे के एकमेक होय–एम प्रतिभासे छे; तोपण आत्मा पोताना ज्ञानस्वभावनी एकताने छोडीने पर
ज्ञेयो साथे एकमेक थई गयो नथी. ज्ञाननी ज एवी विशेषता छे के ज्ञेयो तेमां जणाय छे, पण कांई ज्ञेयोने लीधे
ज्ञान थतुं नथी. भगवाननी वाणी हती माटे तेने लीधे आत्माने ज्ञान थयुं–एम नथी, सामे साक्षात् तीर्थंकर
भगवान के तेमनी प्रतिमा बिराजता हता माटे ते ज्ञेयने लीधे ज्ञान थयुं–एम नथी, सम्मेदशिखरजी के गिरनारजी
तीर्थं हता माटे ते ज्ञेयने लीधे तेनुं ज्ञान थयुं–एम नथी; तेम ज ते ते प्रकारना ज्ञेयोनुं ज्ञान आत्मामां नथी थतुं–
एम पण नथी. आत्मानो पोतानो ज जाणवानो स्वभाव छे तेथी ते जाणवारूपे परिणमे छे, त्यां स्वपरप्रकाशक
स्वभावने लीधे परज्ञेयो ज्ञानमां जणातां, आत्मा ते ज्ञेयोनी साथे जाणे के एक थई गयो होय–एम ज्ञान अने
ज्ञेयना अद्वैतनयथी भासे छे, आवो पण आत्मानो एक धर्म छे. आ धर्मथी जुए तोपण अनंतधर्मवाळो
शुद्धचैतन्यस्वरूप आत्मा ज अंतरमां देखाय छे. आवो चैतन्यस्वभाव ख्यालमां लीधा विना श्रद्धा–ज्ञान साचा थाय
नहि, अने साचा श्रद्धा–ज्ञान थया विना गमे तेटला दया वगेरेना शुभभाव करे तोपण तेनाथी जीवनुं कांईपण
हित थाय नहि; शुभभावथी संसारमां संयोगनी प्राप्ति थाय, पण स्वभावनी प्राप्ति न थाय, मुक्ति न थाय.
ते ज्ञानस्वभावी आत्मा छे. आवो आत्मा खरेखर परज्ञेयोथी जुदो छे, पण तेना ज्ञानमां परज्ञेयो जणाय छे
तेथी ज्ञान अने ज्ञेयनुं अद्वैत होय एम कहेवाय छे. जेम छाणां–लाकडां वगेरे अनेक प्रकारना इंधनने बाळनारो
मोटो अग्नि एक ज लागे छे, तेमां छाणां लाकडां वगेरे जुदा देखाता नथी, तेम जाणनार स्वभाव वडे आत्मा
पोते पोताना ज्ञानमां परिणत थईने अनंत ज्ञेयपदार्थोना ज्ञानरूपे परिणमे छे, त्यां जाणे के बधा
ज्ञेयपदार्थोपणे एक ज्ञान ज परिणमी गयुं होय–एम ज्ञानज्ञेयना अद्वैतनये प्रतिभासे छे. जुओ, अहीं ज्ञान
अने ज्ञेयनुं एकपणुं साबित नथी करवुं, पण ज्ञानसामर्थ्यमां बधा ज्ञेयो जणाय छे–एम साबित करीने
आत्मानो ज्ञानस्वभाव ओळखाववो छे. परज्ञेयो तो त्रणेकाळे परमां ज रहे छे पण ज्ञानमां जणवानी
अपेक्षाए तेमने ज्ञान साथे अद्वैत कहीने ज्ञाननुं सामार्थ्य जणाव्युं छे. अनंता सिद्धो वगेरे ज्ञेयो छे तेमने लीधे
अहीं तेनुं ज्ञान थाय छे एम नथी, पण ज्ञाननुं ज एवुं दिव्य सामर्थ्य छे तेथी ज्ञान पोते ज तेवा ज्ञेयोना
प्रतिभासरूपे परिणमे छे, ज्ञाननी ज एवी मोटाई छे के समस्त ज्ञेयोना ज्ञानपणे पोते एक ज भासे छे.
जाणवारूपे परिणमी जाय छे. अरीसो तो स्थूळ वस्तु छे, तेमां बहु दूरनी, भूत–भविष्यनी के पाछळनी वस्तुओ
जणाती नथी, अरीसो पोते जड वस्तु छे, ते कांई जाणतो नथी; परंतु ज्ञाननो स्वभाव तो बधुं य जाणवानो छे,
दूरनुं तेम ज भूत–भविष्यनुं बधुं ज्ञान जाणे छे. ज्ञान पोतानी सन्मुख रहीने बधाने जाणी लेवाना
स्वभाववाळुं छे.
पाईभार लोढुं पण पाणीमां डूबी जाय छे, तेनुं कारण?–के एवो ज ए पदार्थोनो स्वभाव छे. तेना ते
स्वभावने जाण्यो कोणे? कोई ईन्द्रियोथी ते स्वभाव जाणातो नथी, पण ज्ञानथी ज ते जणाय छे. बीजाना
स्वभावने पण ज्ञान जाणे छे एटले ज्ञाननो जाणवानो स्वभाव छे. पण अज्ञानीने पोताना ज्ञान–स्वभावनी
खबर नथी, तेने परनो महिमा भासे छे पण परने जाणनार पोतानुं ज्ञान छे तेनो तेने महिमा आवतो नथी.
जो ज्ञाननी महत्ता भासे तो तो संसारसमुद्रथी तरी जाय, केम के ज्ञाननो तरवानो स्वभाव छे.
ज्ञाननो स्वभाव जाणवानो छे पण क्यांय परमां अहंपणुं करीने अटके