Atmadharma magazine - Ank 112
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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: ७० : आत्मधर्म–११२ : महा : २००९ :
समयनी जेम छे तेम नियत छे, तेमां कांई आडुं अवळुं थाय तेम नथी. बस! तुं तारा ज्ञाननी प्रतीत करीने
तेनो ज्ञाता रही जा. शरीरादि मारां–ए वात भूली जा, अने रागने फेरवुं–ए वात पण भूली जा, शरीरादिने
अने रागादिने बधाने जाणनारो तारो ज्ञानस्वभाव छे तेने संभाळ; ते तारो नियत स्वभाव छे. तारा
नियतज्ञानस्वभावने तें कदी छोड्यो नथी.
आत्मा त्रिकाळ ज्ञानस्वभाव छे–एम द्रव्यना नियतस्वभावने नक्की करे तो ते स्वभावद्रष्टिथी
रागादिनो ज्ञाता थई गयो.
द्रव्यना नियतस्वभावने जाणतां, रागने पर्यायना नियत तरीके जाणे–तो तेमां पण रागनो ज्ञाता थई गयो.
राग ते आत्मानो अनियतस्वभाव छे एटले के ते आत्मानो त्रिकाळ टकनार स्वभाव नथी–एम जाणे
तो तेमां पण राग अने स्वभावनुं भेदज्ञान थईने रागनो ज्ञाता रही गयो.
आ रीते गमे ते प्रकारे समजे पण तेमां ज्ञानस्वभावनी सन्मुखता ज करवानुं आवे छे अने ते ज धर्म छे.
‘नियतवाद’ ना बहाने अज्ञानीओ अनेक प्रकारना गोटा चलावे छे. सर्वज्ञदेवे जेम जोयुं छे ते ज प्रमाणे
नियमथी थाय छे–आम सर्वज्ञनी श्रद्धापूर्वकना सम्यक्नियतवादने पण अज्ञानीओ गृहीतमिथ्यात्व कहे छे, परंतु
तेमां ज्ञानस्वभावना निर्णयनो महान पुरुषार्थ आवे छे तेनी तेमने खबर नथी. तथा बीजा स्वच्छंदी जीवो,
सर्वज्ञना निर्णयना पुरुषार्थने स्वीकार्या वगर एकलुं नियतनुं नाम लईने पुरुषार्थने उडाडे छे तेने पण
नियतस्वभावनी खबर नथी.
गोमट्टसारमां नियतवादीने गृहीतमिथ्याद्रष्टि कह्यो छे; ते जीव तो ज्ञानस्वभावनी प्रतीतनो
सम्यक्पुरुषार्थ करतो नथी, सर्वज्ञनी प्रतीत करतो नथी, पण विकारनो अने परनो स्वामी थईने कहे छे के ‘जे
नियत हशे ते थशे. ’ परंतु जे नियत हशे ते थशे’ एम जाण्युं कोणे? तेनो निर्णय शेमां कर्यो? –के मारा
ज्ञानमां; तो तने तारा ज्ञाननी प्रतीत छे? ज्ञाननी मोटप अने ज्ञानना महिमाने जाणीने, तेनी सन्मुख थईने,
ज्ञेयोना नियतने जे जाणे छे ते तो मोक्षमार्गी साधक थई गयो छे. तेनी गोमट्टसारमां वात नथी; परंतु जे
मिथ्याद्रष्टि जीव ज्ञानस्वभावनी सन्मुख थया वगर तेम ज सर्वज्ञनी श्रद्धा कर्या वगर एकला पर सामे जोईने
नियत माने छे ते मिथ्या नियतवादी छे अने तेने ज गोमट्टसारमां गृहीतमिथ्याद्रष्टि कह्यो छे.
सर्वज्ञस्वभावनी श्रद्धापूर्वक पोताना ज्ञानस्वभावनी सन्मुख थईने एम नक्की कर्युं के अहो! बधुं नियत
छे, जे समये जेम थवानुं छे तेम ज क्रमबद्ध थाय छे, हुं तो स्व–परप्रकाशी ज्ञाता छुं.
–आवो निर्णय ते सम्यग्द्रष्टिनो सम्यक्नियतवाद छे. आ नियतमां द्रव्य–पर्याय बधुं समाई जाय छे, अज्ञानीने
आवो नियतवाद होतो नथी. जेणे पोताना ज्ञानस्वभावनी सन्मुख थईने तेनी रुचिनो सम्यक्–पुरुषार्थ प्रगट
कर्यो अने शुभ–अशुभ भावोनी रुचि छोडी तेणे ज खरेखर सम्यक्नियतवादने मान्यो छे, तेमां चैतन्यनो
पुरुषार्थ छे, मोक्षनो मार्ग छे. तेनुं वर्णन स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षा ३२१–३२२मी गाथामां छे, सम्यग्द्रष्टि जीव
वस्तुना यथार्थस्वरूपनुं केवुं चिंतवन करे छे ते तेमां बताव्युं छे.
अहीं प्रवचनसारमां जे नियतधर्म कह्यो छे ते त्रीजी वात छे. अहीं तो आत्मानो जे त्रिकाळ एकरूप शुद्ध
निरपेक्ष चैतन्यस्वभाव छे तेनुं नाम नियतधर्म छे; स्वभाववान कदी पोताना मूळ स्वभावने न छोडे एवो
तेनो नियतधर्म छे. आ नियतधर्म तो ज्ञानी अज्ञानी बधा जीवोमां छे, पण नियतनय वडे ज्ञानी ज तेने जाणे
छे. नियतधर्म बधा आत्मामां छे, पण नियतनय बधा आत्माने होतो नथी, जे ज्ञानी आत्माना
नियतस्वभावने जाणे तेने ज नियतनय होय छे.
ए प्रमाणे नियतना त्रण प्रकार थया–
(१) गोमट्टसारमां कहेलो, ज्ञाननी प्रतीत वगरनो गृहीतमिथ्याद्रष्टिनो नियतवाद.
(२) स्वामी कार्तिकेयानुप्रेक्षामां कहेलो, ज्ञानीनो नियतवाद; तेमां सम्यग्द्रष्टि जीव ज्ञानस्वभावनी भावनापूर्वक
सर्वज्ञदेवे जोयेला वस्तुस्वरूपनुं चिंतन करतो, जेम थाय तेम पर्यायना नियतने जाणे छे, तेमां विषमभाव
थवा देतो नथी, एटले आ ज्ञानीनो नियतवाद तो वीतरागता अने सर्वज्ञतानुं कारण छे.