Atmadharma magazine - Ank 112
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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: ७२ : आत्मधर्म–११२ : महा : २००९ :
छे? ‘क्रमबद्ध जेम थवानुं नियत छे तेम ज थाय छे’ –एम जाणवानुं बीडुं झील्युं कोणे? जे ज्ञाने ते बीडुं झील्युं
ते पोताना ज्ञानसामर्थ्यनी प्रतीत वगर ते बीडुं झीली शके नहि; क्रमबद्ध जेम थवानुं नियत छे तेम ज थाय छे–
एवुं बीडुं झालनार ज्ञानमां ज्ञानस्वभावनी सन्मुखतानो पुरुषार्थ वगेरे बधा समवायो आवी जाय छे.
(१) अहीं कहेलो नियतधर्म बधा जीवोमां छे.
(२) द्वादशअनुप्रेक्षामां कहेलो सम्यक् नियतवाद सम्यग्द्रष्टिने ज होय छे.
(३) गोमट्टसारमां कहेलो मिथ्यानियतवाद गृहीतमिथ्याद्रष्टिने ज होय छे.
–माटे नियतनो ज्यां जे प्रकार होय ते समजवो जोईए; मात्र ‘नियत’ शब्द सांभळीने भडकवुं न
जोईए.
‘नियत स्वभाव’ ते पण आत्मानो एक धर्म छे, अने ते धर्मथी आत्माने जाणतां तेना बीजा अनंता
धर्मोनो स्वीकार पण भेगो आवी ज जाय छे. आत्मामां अनंत धर्मो एक साथे छे, तेमां एक धर्मनी यथार्थ
प्रतीत करवा जतां बीजा बधा धर्मोनी प्रतीत पण भेगी आवी ज जाय छे ने प्रमाणज्ञान थईने अनंत धर्मना
पिंडरूप शुद्ध चैतन्यस्वरूप आत्मानो अनुभव थाय छे.
पांच समवायकारणोमां जे भवितव्य अथवा नियति आवे छे ते सम्यक् नियतवाद छे, तेनी साथे बीजा
चारे समवाय पण आवी जाय छे. जे न बनवानुं होय ते बनी जाय–एम कदी थाय नहि, जे बने छे ते बधुं
नियत ज छे. पण ते नियतना निर्णयमां ज्ञातास्वभावनो ‘पुरुषार्थ’ छे, ते वखते जे निर्मळ स्वपर्याय प्रगटी
ते ज ते समयनो ‘काळ’ छे, स्वभावमां जे पर्याय हती ते ज प्रगटी छे–तेथी तेमां ‘स्वभाव’ पण आवी गयो,
अने जेटले अंशे निर्मळ पर्याय प्रगटी तेटले अंशे कर्मनो अभाव छे–ते ‘निमित्त’ छे. आ रीते एक समयमां
पांचे बोल एक साथे आवी जाय छे. तेमां नियत–अनियतरूप अनेकान्त उतारवो होय तो, जे भवितव्य छे ते
‘नियत’ अने नियत सिवायना बीजा चार बोल ते ‘अनियत’ –ए रीते नियत–अनियतरूप अनेकान्त ते
भगवाननो मार्ग छे. –पण तेमां ‘अनियत’ शब्दनो अर्थ ‘आघुंपाछुं के अनिश्चित’ –एम न समजवो, परंतु
आत्माना नियत धर्म सिवायना बीजा धर्मोनुं नाम ‘अनियत’ समजवुं.
सम्यक्नियतमां तो विकारी–अविकारी तेम ज जडनी बधी पर्यायो आवे छे, केमके बधी पर्यायोनो क्रम
नियत ज छे. अने अहीं कहेला नियतस्वभावमां तो एकलो धु्रवस्वभाव ज आवे छे, तेमां पर्याय न आवे.
पर्यायना नियतनो निर्णय पण द्रव्यना निर्णय वगर करी शकातो नथी केमके पर्यायो द्रव्यमांथी ज आवे
छे. निश्चितपर्यायनो निर्णय करवामां द्रव्यसन्मुखनो अपूर्व पुरुषार्थ छे, ते निर्णय करनारने पर्यायबुद्धि रहेती
नथी; वर्तमानपर्यायनी बुद्धि अंतर्मुख थईने द्रव्यमां घूसी जाय त्यारे ज सम्यक्नियतनो निर्णय थाय छे.
पर्यायमां समय समयनो विकार छे ते मारा त्रिकाळस्वभावमां नथी–एम बंने धर्मोथी आत्माने जाणे तो
अवस्था विकार तरफथी पाछी खसीने चैतन्यस्वभाव तरफ ढळी जाय छे ने सम्यग्ज्ञान थाय छे.
द्रव्यनो त्रिकाळ नियतस्वभाव छे तेनी द्रष्टि करे के पर्यायना नियतनो यथार्थ निर्णय करे, अथवा नियत
अने पुरुषार्थ वगेरे पांचे समवायो एक साथे छे तेने समजे–तो मिथ्याबुद्धि टळीने स्वभाव तरफनुं वलण थई
जाय छे. जेणे नियतिनो यथार्थ निर्णय कर्यो तेने आत्माना ज्ञान–स्वभावनो अने केवळीभगवाननो तेम ज
पुरुषार्थनो विश्वास पण भेगो ज छे. नियतिनो निर्णय कहो, स्वभावनो निर्णय कहो, केवळज्ञाननो निर्णय कहो,
पांच समवायनो निर्णय कहो, सम्यक्पुरुषार्थ कहो–ते बधुं एक साथे ज छे.
नियत साथेना बीजा पुरुषार्थ वगेरे चार बोल छे तेने नियतमां खतवाता नथी माटे तेने अनियत
कहेवाय छे; ए रीते नियत अने अनियत एवो वस्तुस्वभाव छे. अथवा बीजी रीते–द्रव्यनो एकरूप स्वभाव ते
नियतधर्म छे अने पर्यायमां विविधता थाय छे ते अनियतधर्म छे, –ए रीते नियत अने अनियत बंने धर्मो
एक साथे रहेलां छे. तेमां नियतिनयथी आत्माना द्रव्यस्वभावनुं वर्णन कर्युं, हवे अनियतनयथी पर्यायनी वात
करशे.
–अहीं २६मा नियतिनयथी आत्मानुं वर्णन पूरुं थयुं.