Atmadharma magazine - Ank 112
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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: महा : २००९ : आत्मधर्म–११२ : ७३ :
*वधावुं.... मानस्तंभ भगवान*
(वीर सं. २००९ना मागसर सुद एकमे श्री मानस्तंभजीमां भगवाननी
बेठकनुं स्थापन थयुं ते प्रसंगे गवायेली खास भक्ति)
धन्यभाग्य अमारे आंगणे पधार्या मानथंभ भगवान........
वधावुं आज.... हीरले थाळ भरी भगवान......
सुवर्णपुरीमां आज पधारी न्याल कर्या भगवान;
तुम चरणे प्रभु निशदिन रहीने करीए आत्मकल्याण....वधावुं आज....
महिमा शाश्वत जिननी गाजे त्रण भुवननी मांही;
सेवकने हो जिननी सेवा धन्य दिवस धन्य काळ....वधावुं आज....
श्री मानथंभे रत्न पटारा झूले स्वर्गनी मांही;
जिनेन्द्रदेवना वस्त्राभूषण शाश्वत–थंभनी मांही....वधावुं आज....
वस्त्राभूषण ईन्द्रो लावे मध्य लोक मोझार;
जन्मकल्याणके जिनने पहेरावे ईन्द्र पूजे भगवंत.... वधावुं आज....
बाग बगीचा वावडी सोहे अभिषेक घंटा नाद;
मुक्तिनी रमणीकता आवी मानथंभने द्वार....वधावुं आज....
ज्ञायक छो प्रभु विश्वतणा ए अनंत गुणना नाथ;
आतमपद दातार छो प्रभु चिदस्वरूप शणगार...वधावुं आज...
कल्पवृक्ष मुज आंगणे फळीओ मनचिंतित दातार;
त्रणभुवनना नाथ पधार्या गुरुजीने हरख न माय....वधावुं आज...
कहान गुरुना परम प्रतापे भेटया श्री मानस्तंभ;
जिनवर ऋद्धि नजरे निहाळी हैडुं हरखी जाय...वधावुं आज...
पंचमकाळे विरह भुलाव्या भेटाडया भगवंत;
जिनेन्द्रदेवनां रहस्य खोल्यां ए कहान–गुरु जयवंत....वधावुं आज...