Atmadharma magazine - Ank 112
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 8 of 21

background image
: महा : २००९ : आत्मधर्म–११२ : ६७ :
‘आत्मा कोण छे ने कई रीते पमाय?’
(१४)
श्री प्रवचनसारना परिशिष्टमां ४७ नयोद्वारा आत्मद्रव्यनुं
वर्णन कर्युं छे, तेना उपर पू. गुरुदेवश्रीना
विशिष्ट अपूर्व प्रवचनोनो सार.
(अंक १११ थी चालु)
* * * * *
* ‘प्रभो! आत्मा कोण छे अने कई रीते प्राप्त कराय छे’ –एम
जिज्ञासु शिष्य पूछे छे.
* तेना उत्तरमां श्री आचार्यदेव कहे छे के ‘आत्मा अनंत
धर्मोवाळुं एक द्रव्य छे अने अनंत नयात्मक श्रुतज्ञानप्रमाणपूर्वक
स्वानुभव वडे ते जणाय छे.
* ते आत्मद्रव्यनुं ४७ नयोथी वर्णन कर्युं छे, तेमांथी २५ नयो
उपरनां प्रवचनो अत्यार सुधीमां आवी गया छे, त्यारपछी आगळ
अहीं आपवामां आवे छे.
* * * * *
(२६) नियतिनये आत्मानुं वर्णन
अनंतधर्मवाळो चैतन्यमूर्ति आत्मा प्रमाणज्ञानथी जणाय छे, तेनुं २५ नयोथी अनेक प्रकारे वर्णन
कर्युं; हवे नियति, स्वभाव, काळ, पुरुषार्थ अने दैव–ए पांच बोल वर्णवे छे, तेमां प्रथम नियतिनयथी
आत्मा केवो छे ते कहे छे.
आत्मद्रव्य नियतिनये नियतस्वभावे भासे छे; जेम उष्णता ते अग्निनो नियतस्वभाव छे तेम
नियतिनये आत्मा पण पोताना नियतस्वभाववाळो भासे छे. आत्माना त्रिकाळ एकरूप स्वभावने अहीं
नियतस्वभाव कह्यो छे, ते स्वभावने जोनार नियतनयथी ज्यारे जुओ त्यारे आत्मा पोताना
चैतन्यस्वभावपणे एकरूप भासे छे. पर्यायमां क्यारेक तीव्र राग, क्यारेक मंद राग अने क्यारेक
रागरहितपणुं; वळी क्यारेक राग पलटीने द्वेष, क्यारेक मतिज्ञान ने क्यारेक केवळज्ञान, एक क्षणे मनुष्य
ने बीजी क्षणे देव–ए प्रमाणे अनेक प्रकारो थाय छे तेने आत्माना अनियतस्वभाव तरीके हवे पछीना
बोलमां वर्णवशे. अहीं आत्माना नियतस्वभावनी वात छे. जेवो शुद्ध चैतन्य ज्ञानानंदस्वभाव छे तेवा ज
नियतस्वभावे आत्मा सदाय भासे छे, पर्याय ओछी हो के वधारे हो, विकारी हो के निर्मळ हो, –पण
नियतस्वभावथी तो आत्मा सदा एकरूप छे. आवा नियत–स्वभावने जे जुए तेने एकली पर्यायबुद्धि
रहे नहि पण द्रव्यस्वभावनुं अवलंबन होय. पर्यायबुद्धिवाळो जीव आत्माने एकरूप नियतस्वभावे देखी
शकतो नथी ने तेने नियतनय होतो नथी.
अहीं द्रव्यना त्रिकाळी स्वभावने ज नियत कहेल छे; जेम उष्णता ते अग्निनो नियतस्वभाव छे,
अग्नि सदाय