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मूकवा माटे सो मणनी मोटी केंची उपर चडती होय त्यां भ्रमथी–संयोगी द्रष्टिथी–अज्ञानी एम समजे छे के
पचास मजूरोए भेगा थईने बळ कर्यु तेथी आ केंची ऊची थई. हवे खरी रीते जोतां वस्तुस्वरूप तो एम छे के
मजूरो अने केंची बंने तद्न भिन्न भिन्न चीजो छे, तेथी कोईना कारणे बीजामां कांई कार्य थाय नहि. मजूरोनुं
कार्य मजूरोमां छे ने केंचीनुं ऊंचुं थवानुं कार्य केंचीमां छे. माटे केंची केंचीना ज कारणे ऊंची थई छे, मजूरोना
कारणे नहि.
भिन्न कार्यने करी रह्यो छे, बे रजकणो भेगां थईने एकमेकपणे कार्य करतां ज नथी. जो आ प्रमाणे रजकणे–
रजकणना भिन्न भिन्न कार्यने समजे तो परनी क्रिया करवानुं अभिमान ऊडी जाय, ने तेनुं वलण
आत्मस्वभाव तरफ वळी जाय.
ताकात भेगी थई ज नथी तो पछी मजूरोए केंची उपाडी–ए वात क्यां रही? शुं एक मजूरथी सो मणनी केंची
ऊपडे? न ज उपडे. जो एक मजूरथी केंची न उपडे तो बीजा मजूरथी पण न उपडे, त्रीजाथी पण न उपडे, ए
प्रमाणे कोई मजूरथी न उपडे. तो पछी बधा मजूरो भेगा थईने केंची उपाडे ए वात पण रहेती नथी, केमके
दरेक मजूरनी ताकात पोतपोतामां ज छे, कोईनी ताकात पोतामांथी नीकळीने बीजामां जती नथी एटले बे
मजूरनी ताकात कदी भेगी थती नथी. जुओ आ वीतरागी विज्ञाननी द्रष्टि!! सामे केंचीमां बे परमाणु भेगा
थईने काम करतां नथी ने अहीं बे मजूरो भेगा थईने काम करतां नथी, एटले कोईना कारणे बीजानुं कार्य थयुं
ए वात रहेती नथी. आ प्रमाणे समस्त वस्तुओमां परस्पर अकार्यकारणपणुं छे.
थाय छे. ‘अकार्यकारण’ शब्दमां जे ‘अ’ छे ते कार्य अने कारण बंनेनी साथे लागु पडे छे एटले के आत्मद्रव्य
परनुं कार्य नथी तेम ज परनुं कारण पण नथी. जे जीव खरेखर समस्त पर द्रव्यो साथे पोतानुं अकार्यकारणपणुं
समजे तेने स्वद्रव्यना आश्रये निर्मळ कार्य प्रगट्या विना रहे नहि. आत्मा परना कार्यनुं कारण थाय एवी
शक्ति ज तेनामां नथी; तेम ज पोताना कार्यने माटे पर कारणनी अपेक्षा राखे एवी पराधीनता पण तेनामां
नथी. आम समजे तेने क्यांय पर साथे ‘आ मारुं कार्य ने आ मारुं कारण’ एवी एकत्वबुद्धि न रहे, एटले
स्वभावना आश्रये निर्मळ कार्य प्रगटे. तेनुं कारण पण आत्मा पोते ज छे, बीजुं कोई कारण छे ज नहि; एकेक
समयनी पर्याय पोते ज पोताना कारण–कार्यपणे वर्ते छे. परम शुद्धद्रष्टिमां तो कारण कार्यना भेद ज नथी,
कारण–कार्यना भेद कहेवा ते पण व्यवहार छे.
खरेखर निमित्तने कारण कार्य थवानुं मानी ल्ये तो तेने स्व–परतत्त्वनी एकत्वबुद्धि छे, तेने यथार्थ कारण–
कार्यनी खबर नथी. कारण अने कार्य जुदां जुदां द्रव्योमां होय ज नहि. कारण एक द्रव्यमां ने तेनुं कार्य बीजा
द्रव्यमां एम होय नहि, छतां जे तेम माने तेने बे द्रव्योमां एकत्वबुद्धि छे.
तेम ज निमित्त वडे, पुण्य–पाप वडे के व्यवहार वडे आत्मद्रव्यनी रचना थई शकती नथी एटले के ते कोई वडे