
थई,–तो एम नथी. सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी रचनामां आत्माना स्वभाव सिवाय बीजुं कोई कारण छे ज
नहि. आत्मा पोताना कार्यमां कोई बीजानी सहाय लेतो ज नथी अने पोते कोई बीजानुं कारण थतो नथी–
आवी स्वयंसिद्ध अकार्यकारणशक्ति तेनामां त्रिकाळ छे. भले लाखो वर्ष भगवाननी भक्ति करे, पण परने
लीधे आत्मामां कार्य थाय–एवो गुण आत्मामां नथी, तेम ज ते भक्तिनो राग कारण थईने तेनाथी
सम्यग्दर्शनरूप कार्य प्रगटे एम पण बनतुं नथी.
तेमां पण आत्मद्रव्य कारण नथी–आवुं आत्मानी अकार्यकारणत्वशक्तिनुं सामर्थ्य छे. आवो स्वभाव समजतां
पर उपर द्रष्टि रहेती नथी. पण द्रव्यस्वभाव उपर द्रष्टि जाय छे. जड कर्म थाय तेनुं कारण आत्मा नथी. क्षणिक
विकारपरिणाम थाय तेना कारणपणे आखुं द्रव्य नथी एटले आवा द्रव्यनी सन्मुख जोनार जीवने क्षणिक
विकारनी कर्तृत्वबुद्धि रहेती नथी. त्रिकाळी द्रव्यनो आश्रय करतां विकारनी उत्पत्ति थती नथी माटे त्रिकाळी द्रव्य
विकारनुं कारण नथी. त्रिकाळी द्रव्यना आश्रये तो सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनी ज उत्पत्ति थाय छे तेथी ते
सम्यग्दर्शन–ज्ञान–चारित्रनुं कारण थाय एवो द्रव्यनो स्वभाव छे.
तो द्रव्यमां अभेद छे एटले व्यवहाररत्नत्रयथी जेम द्रव्य नथी बनतुं तेम निर्मळपर्याय पण तेनाथी बनती
नथी. पर्याय द्रव्यमांथी आवे के परमांथी? पर्याय तो द्रव्यमांथी ज आवे छे एटले पर्यायनो पिता द्रव्य छे. द्रव्य
ज पोतानी पर्यायनुं उत्पादक छे तेने बदले बीजाने उत्पादक मानवो ते कलंक छे. जेम पुत्रनो जे पिता होय तेने
बदले बीजाने पिता मनावे तो ते लोकव्यवहारमां कलंक छे, तेम निर्मळपर्यायरूप प्रजानो पिता द्रव्य छे, द्रव्यना
आश्रये ते पर्याय प्रगटी छे तेने बदले बीजाने तेनुं कारण मनाववुं ते कलंक छे. पुण्य–पापमांथी, निमित्तमांथी के
व्यवहारमांथी आत्मानुं कांई कार्य थतु नथी, अने आत्मानो स्वभाव ते पुण्य–पापनो के व्यवहारनो कर्ता नथी.
तो पछी आत्मा देशनुं कांई करे के शरीरनुं कांई करे के पैसा वगेरे लेवा–देवानी क्रिया करे–ए वात तो छे ज नहि.
आत्मा तेनो कर्ता नथी. पर्यायबुद्धिवाळो जीव आ वात यथार्थपणे मानी शके नहि. आत्मा तो ज्ञान–दर्शन–सुख
वगेरे अनंत स्वभावनी मूर्ति छे, तेनामां एवो कोई स्वभाव नथी के जे विकारनुं कारण थाय!–अथवा परना
कार्यने करे!
विनानो छे. सर्वज्ञ भगवाने आत्मामां एवो कोई गुण नथी जोयो के शरीर–मन–वाणी वगेरे सरखां होय तो
आत्मामां धर्मनुं कार्य थाय; तेम ज आत्माना कारणे शरीर–मन–वाणी सरखां रहे एवो पण कोई गुण
भगवाने जोयो नथी. तो हे मूढ! तुं वळी सर्वज्ञथी वधारे डाह्यो क्यांथी नीकळ्यो! आत्माथी परनुं कार्य कदी पण
थतुं ज नथी तो मफतनो परनुं करवानुं तुं केम माने छे? जो शरीर–मन–वाणी वगेरेनां कार्यो आत्माथी थतां
होय तो तेमनाथी आत्मा कदी जुदो पडे नहि अने पोतानुं स्वकार्य करवा ते कदी नवरो थाय नहि. ए ज प्रमाणे
द्रव्य पोते कारण थईने जो पुण्य–पापने रचे तो द्रव्यमांथी पुण्य–पाप कदी जुदा ज न पडे, एटले वीतरागता तो
न थाय परंतु भेदज्ञान थवानो अवसर पण रहे नहि. माटे द्रव्य पोते विकारनुं कारण नथी.–आम समजतां
स्वभाव अने विकारनुं भेदज्ञान थाय छे अने स्वभावना अवलंबने विकार टळीने वीतरागता प्रगटे छे.