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परंतु एम माननार मूढ छे, तेणे आत्माने के आत्मानी शक्तिओने जाणी ज नथी. आत्मानी अनंत शक्तिनुं
कार्य तो आत्मामां होय के आत्माथी बहारना पदार्थमां होय? वळी जो आत्मा परनुं कार्य करे, तो शुं पर
पदार्थमां तेनुं पोतानुं कार्य करवानी शक्ति नथी? आत्मा परनुं करे एम माननारे परद्रव्यनी शक्तिने पण
जाणी नथी अने परथी भिन्न पोतानी आत्मशक्तिने पण जाणी नथी.
अनेकान्तनुं स्वरूप छे. आ वात स्पष्ट करवा माटे आचार्यदेवे आत्मानी केटलीक खास शक्तिओनुं वर्णन कर्युं
छे. अनंतशक्तिओ छे ते बधीये वचनगोचर न थई शके, वचनमां तो अमुक ज आवी शके. अनंतशक्तिओने
एक साथे प्रतीतमां लेवा जतां शक्तिमान एवो अभेद आत्मा द्रष्टिमां आवी जाय छे अने निर्विकल्प
सम्यग्दर्शन थाय छे.
कर्यो नथी. केवळज्ञान तो जेना एक गुणनी मात्र एक समयनी पर्याय, एवी एवी अनंती पर्यायो थवानुं एक
ज्ञानगुणनुं सामर्थ्य, अने एवा अनंत गुणो जेनामां भर्या छे ते वस्तुना महिमानी शुं वात!! ते वस्तुनो
महिमा समजे तो तेमां अंतर्मुख थईने आनंदनुं वेदन थाय.
पर वस्तुने के तेनां कोई कार्यने आत्मा करतो नथी अने आत्माने के आत्माना कोई कार्यने परवस्तु करती
नथी. आ रीते आत्मा कोईनुं कार्य के कारण नथी. शरीर वगेरे जड पदार्थोमां जे कार्य थाय छे तेनुं कारण
आत्मा नथी, तथा आत्मामां जे कार्य थाय छे तेमां जड पदार्थ कारण नथी. आत्मानो आवो त्रिकाळी स्वभाव
छे के पोते कोईनुं कार्य के कारण नथी एटले आत्मा पोते कोई अन्यनुं कार्य नथी, तेम ज पोते कारणरूप
थईने कोई बीजाना कार्यने निपजावतो नथी. कोई पर कारण थयुं अने आत्मा तेना कार्यपणे उत्पन्न थयो–
एम पण नथी; तथा आत्मा कारण थयो अने पर द्रव्य तेनुं कार्य थयुं–एम पण नथी; आ रीते कोई पण पर
वस्तुना द्रव्य–गुण के पर्याय साथे कार्य–कारण संबंध वगरना एकद्रव्यस्वरूप एवो आत्मानो अकार्यकारण
स्वभाव छे. आत्मवस्तुमां ज्ञानादि अनंत गुणोनी साथे एक आवी ‘अकार्यकारण’ शक्ति पण छे.
‘अकार्य=आत्माना द्रव्य–गुण के पर्याय परथी थया नथी; अने ‘अकारण= आत्मा पोते परवस्तुना द्रव्य–गुण
के पर्यायने करतो नथी.
एटले के ज्ञान परमां लीनताथी पाछुं फरीने पोताना स्वभावमां ठरे छे. ‘मने कोई करे अथवा हुं कोईने करुं’
एवी मान्यतामां तो स्व–परनी एकत्वबुद्धिरूप मिथ्या एकान्त थई जाय छे; पण ‘हुं’ कोईनुं कार्य–कारण नथी,
मारो कोई कर्ता नथी ने हुं कोईनुं कारण नथी’ एवा ज्ञानमां स्व–परनी पृथकतारूप अनेकान्त छे. परमां
एकत्वबुद्धि ते मिथ्या एकान्त छे; स्वमां एकत्वबुद्धि ते सम्यक् एकान्त छे, अने स्व–परना भेदज्ञान अपेक्षाए
ते ज सम्यक् अनेकान्त छे. जे जीव परपदार्थो साथे पोतानुं कार्य–कारणपणुं माने छे तेने स्वपरनी एकत्वबुद्धिनुं
मिथ्यात्व छे, एवा जीवने मुनिपणांनो के श्रावकपणांनो कोई पण धर्म होतो ज नथी.
तुं पोते बेठो छो पछी ‘न होउं तो’ ए वात क्यां रही?