Atmadharma magazine - Ank 113
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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: ९४ : आत्मधर्म २४७९: फागण:
तथा तुं जगतनी सत् वस्तु छो, तो सत्ने वळी बीजुं कारण कोण होय? माटे द्रव्यनुं कोई कारण छे ज नहि.
वळी कोई एम पूछे के : द्रव्यनुं कारण भले कोई न होय, पण ‘हुं चेतन छुं ने जड नथी’ तेनुं शुं
कारण? कोई द्रव्यो चेतन अने कोई द्रव्यो जड–तेनुं कारण शुं? उत्तर:–जे चेतन छे ते पोताना स्वभावथी ज
चेतन छे अने जे जड छे ते पोताना स्वभावथी ज जड छे, ते स्वभावमां कोई कारण छे ज नहि. एटले आ
चेतन केम अने आ जड केम–एवो प्रश्न ज रहेतो नथी.
ए ज प्रमाणे पर्यायमां पण कोई एम पूछे के ‘आ समये आवी ज पर्याय केम थई? ने बीजी केम न
थई?’ तो तेनो उत्तर ए छे के–ते द्रव्यनो पर्यायस्वभाव ज तेवो छे. जे द्रव्यमां जे समये जे पर्याय थवानो
स्वभाव होय ते ज होय, बीजी पर्याय न ज होय –एवो तेनो स्वभाव छे, तेमां कोई बीजुं कारण नथी.
आ रीते द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेयमां अकार्यकारणस्वभाव रहेलो छे. ‘आम केम?’–एम कारण शोधवानुं
रहेतुं नथी. द्रव्य–गुण–पर्याय जेम सत् छे तेम जाणी लेवुं–एवो ज आत्मानो स्वभाव छे; जाणवामां वच्चे
‘आम केम?’ एवो प्रश्न उठाडवानो ज्ञाननो स्वभाव नथी.
प्रश्न:– वस्तुमां अकार्यकारणशक्ति छे तेथी त्रिकाळी द्रव्यने के गुणने तो परनुं कार्य–कारणपणुं नथी–ए वात
खरी, परंतु पर्याय तो नवी प्रगटे छे माटे तेनुं कारण तो पर छे ने? पर्यायमां तो परनुं कार्य–कारणपणुं छे ने?
उत्तर:– जे अकार्यकारणस्वभाव छे ते द्रव्य–गुण अने पर्याय त्रणेमां रहेलो छे, तेथी जेम द्रव्य–गुणनुं
कारण कोई बीजुं नथी तेम पर्यायनुं कारण पण कोई बीजुं नथी. अरे भाई! शुं त्रिकाळी द्रव्य कदी पण
वर्तमान पर्याय वगरनुं होय? द्रव्य पोतानी कोई ने कोई पर्याय सहित ज होय, पर्याय वगरनुं द्रव्य कदी न
होय. जो पर्यायनुं कारण पर कहो तो तेनो अर्थ ए थयो के द्रव्य पोते पर्याय वगरनुं छे एटले के द्रव्य ज नथी.
भेद पाडीने कहेवुं होय तो द्रव्य कारण अने पर्याय कार्य–एम कही शकाय, केम के पर्याय ते द्रव्यनी ज छे. परंतु
अहीं तो ए भेदनी वात पण नथी लेवी, अहीं तो द्रव्य–गुण–पर्याय त्रणेने अकारण सिद्ध करवा छे. तो पछी
पर्यायनुं कारण परवस्तु छे ए वात तो रही ज क्यां? जेणे अकार्यकारणरूप द्रव्यस्वभावने स्वीकार्यो तेनी
पर्याय पण अंतर्मुख थईने द्रव्यमां अभेद थयेली छे तेथी ते पर्याय पण परनुं कार्यकारण नथी. जो परनुं कार्य–
कारणपणुं माने तो ते पर्याय परसन्मुख छे, तेणे अंतरना द्रव्यने स्वीकार्युं नथी, जेणे अंतरना द्रव्यने स्वीकार्युं
तेनी द्रष्टि भिन्न कारण–कार्य उपर होती नथी.
एकेक शक्तिना वर्णनमां घणुं रहस्य छे. आ एक अकार्यकारण शक्तिने बराबर समजे तो आत्मानी
स्वंतत्रता समजाई जाय; पछी गमे तेवा संयोगमां पण परने कारणे मने कांई थाय छे–एम माने नहि तेम ज
हुं परनुं कांई करी दउं छुं–एम पण माने नहि; एटले तेनी प्रतीतमां क्यांय पण राग–द्वेष करवानुं न रह्युं.
आवी वीतरागी श्रद्धा थया पछी अल्प राग–द्वेष थाय त्यां धर्मी जाणे छे के आ राग–द्वेष कोई पर करावतुं नथी
तेम ज ए राग–द्वेष द्वारा हुं परनां कांई काम करी शकतो नथी, मारा निर्मळ द्रव्यस्वभावमां आ राग–द्वेष छे
नहि एटले मारुं द्रव्य पण रागनुं कारण नथी, मात्र अवस्थानी ते प्रकारनी भूमिका छे पण तेटलुं ज मारुं
स्वरूप नथी. आ प्रमाणे धर्मी जीवने सर्व समाधान अने विवेक वर्ते छे.
आत्मानो अकार्यकारणस्वभाव होवाथी आत्माने त्रणे काळे परवस्तुना कारण वगर ज चाली रह्युं छे;
आत्माने पोताना कार्यने माटे परवस्तुनी जरूर पडे–एवुं तेनुं स्वरूप नथी. छतां, मारे पर वस्तु विना न चाले–
एम अज्ञानी मानी बेठो छे ते तेनो मिथ्या अभिप्राय छे. आ मिथ्या अभिप्राय ज संसारनुं मूळ कारण छे.
ज्यां मिथ्या अभिप्राय होय त्यां तीव्र राग–द्वेष थया विना रहे ज नहीं.
हुं एक स्वतःसिद्ध वस्तु छुं, मारुं कोई कारण नथी अने हुं कोईनुं कारण नथी. जो मारे पर साथे
कारणकार्यपणुं होय तो स्व–परनी एकता थई जाय, एटले हुं परथी भिन्न एक स्वद्रव्यपणे ज न रहुं परंतु
परद्रव्यपणे पण थई जाउं! परंतु हुं तो एक स्वद्रव्यस्वरूप ज छुं, कोईपण परद्रव्यनी साथे मारे कारण–कार्यपणुं
नथी.–आ प्रमाणे यथार्थ समजण करवी ते संसारना नाशनुं कारण छे,
–आ प्रमाणे अकार्यकारणत्वशक्तिनुं वर्णन
पूर्ण थयुं. [१४]