Atmadharma magazine - Ank 113
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

< Previous Page   Next Page >


PDF/HTML Page 17 of 21

background image
: ९६ : आत्मधर्म २४७९: फागण:
मिथ्यात्वादि कर्मनो अभाव छे; आ प्रमाणे सम्यग्द्रष्टिने एक साथे पांचे समवायो आवी जाय छे. नियतना निर्णय
संबंधमां मिथ्याद्रष्टि अने सम्यग्द्रष्टिनो आ मोटो तफावत छे ते अज्ञानीओ समजी शकता नथी एटले तेमने भ्रमथी
बंनेमां समानता लागे छे, पण खरेखर तो ते बंनेमां आकाश पाताळ जेटलु अंतर छे.
‘हुं ज्ञायक छुं’ एम पोताना ज्ञानस्वभावनी जेने प्रतीत नथी अने परमां फेरफार करवानुं मिथ्या अभिमान
जेओ सेवी रह्या छे तेओ नियत वस्तुस्वभावनी आ वात सांभळतां भडकी ऊठे छे के ‘अरे! शुं बधुं ज नियत!!
अमारा पुरुषार्थथी कांई फेरफार न थाय?’ एटले एणे ज्ञाता नथी रहेवुं पण फेरफार करवो छे,–ए बुद्धि ज मिथ्यात्व
छे. अज्ञानी माने छे के वस्तुनी पर्याय नियत नथी एटले के निश्चित नथी, तेमां अमारी मरजी प्रमाणे अमे फेरफार
करी दईए;–तेनी आ मान्यता जूठी छे केम के वस्तुनी पर्यायोमां एवुं अनियतपणुं नथी के ते आघी पाछी थाय!
अहीं आत्मानो अनियतधर्म वर्णवे छे तेमां तो जुदी वात छे, कांई पर्यायना क्रममां फेरफार करवानी वात तेमां नथी.
अज्ञानी जाणे के आ अनियतनयमां तो अमारी मान्यता प्रमाणे वस्तुनी क्रमबद्धपर्यायमां फेरफार थवानुं
आवशे!–पण एम नथी; कोई पर्यायनो क्रम तो फरतो ज नथी–ए नियम तो अबाधित राखीने ज बधी वात छे.
द्रव्यस्वभावनी द्रष्टिथी जोतां आत्मा शुद्धपणे देखाय छे ने पर्याय– द्रष्टिथी जोतां आत्मा अशुद्ध देखाय छे, ते
अशुद्धपणुं आत्मानो अनियत स्वभाव छे, क्षणिक अशुद्धताने पण आत्मा पोते पोतानी पर्यायमां धारी राखे छे.
आत्माना अनियतधर्मने कोण मानी शके?
आत्मा एकांत शुद्ध छे तेनी पर्यायमां पण विभाव नथी–एम जे माने तेणे आत्माना अनियतधर्मने जाण्यो
नथी;
अथवा आत्मानी पर्यायमां जे विकार छे ते परने कारणे थाय छे एम माने तो ते पण आत्माना
अनियतधर्मने जाणतो नथी;
वळी पर्यायमां जे क्षणिक विकार छे तेने ज जो आत्मानो कायमी स्वभाव मानी ल्ये तो तेणे पण आत्माना
अनियत धर्मने जाण्यो नथी;
पर्यायमां विकार छे ते पोताना कारणे छे परंतु ते आत्मानो त्रिकाळ रहेनारो स्वभाव नथी पण क्षणिक
अशुद्ध भाव छे–एम जे जाणे तेणे ज आत्माना अनियत धर्मने यथार्थपणे मान्यो कहेवाय.
सर्वे जीवो कर्मने वश छे–एम अज्ञानी माने छे एटले कर्म ज जीवने विकार करावे छे एम ते माने छे, पण
आत्माना अनियत धर्मने ते जाणतो नथी. रागादि विकार थाय छे ते कांई जड कर्मनो धर्म नथी, परंतु ते रागादि
आत्मानी ज अवस्थामां थाय छे एटले आत्मानो ज अनियत धर्म छे. तत्त्वार्थसूत्रमां पण औदयिकभावने य
आत्मानुं स्वतत्त्व कह्युं छे. रागादिभावो आत्मानो अनियत धर्म छे ते कांई कर्मने वश नथी; आत्मानो आ धर्म
कांई जड कर्मने लीधे नथी.
‘आत्मानी पर्यायमां विकार थवानो न हतो, पण घणा कर्मोनो एकसाथे उदय आव्यो तेथी विकार थयो’–एवुं
अनियतपणुं नथी; परंतु आत्माना स्वभावनो जे एकरूप नियम छे तेवो पर्यायमां नथी माटे पर्यायना विकारने
अनियत कह्यो छे चैतन्यमूर्ति भगवान आत्मा त्रिकाळ छे, तेनी अवस्थामां विकार अने संसार छे ते अनियतस्वभावे
छे, एक समयपूरतो अचोक्कस छे माटे आत्मामां ते कायम रहेशे नहि, ने शुद्धस्वभाव तो कायम एवो ने एवो
रहेनार छे; ते स्वभावनो महिमा करीने तेनी सन्मुख रहेतां पर्यायमांथी अनियत एवो संसार टळी जशे माटे हे जीव!
ज्ञायक आनंदकंद स्वभावे हुं नियत छुं ने अवस्थानो विकार ते अनियत छे–एम प्रतीत करीने स्वभावसन्मुख था.
विकार आत्मामां कायमी रहेवावाळो भाव नथी माटे पर्यायमां विकार गमे तेटलो हो तेनाथी मूंझा नहि, पण ते
विकारनी तुच्छता जाण अने कायमी शुद्ध नियतस्वभावनो महिमा लावीने तेनी सन्मुख द्रष्टि करीने तेमां ठर.–एम
करवाथी, जेवो कायमी शुद्धस्वभाव छे तेवी शुद्धता पर्यायमां प्रगटी जशे अने विकार टळी जशे. आत्माना
शुद्धस्वभावना आश्रये अनियत एवो विकार टळी जवा योग्य छे, पण पर्यायना क्षणिक विकारथी कांई आत्माना
नियतस्वभावनो नाश थई जतो नथी. रागादि विकार तो क्षणिक अनियत नाशवंत छे ते शरणभूत थई शकता नथी
अने द्रव्यनो नियतस्वभाव तो सदा शुद्ध छे तेना शरणे जीवने शांति अने कल्याण थाय छे. आ प्रमाणे नियतस्वभाव
अने अनियतस्वभाव ए बंनेथी आत्माने जाणीने तेना धु्रव स्वभावनो आश्रय करवो ते प्रयोजन छे.
भाई! तारो द्रव्यस्वभाव शुद्ध चैतन्यमय छे ते नियत छे ने पर्यायमां विकारी संसारभाव छे ते अनियत छे,
माटे ते टळी जशे नियत शुद्धस्वभावनी द्रष्टि करतां अनियत एवो विकारभाव टळी जशे. विकार तारो पोतानो धर्म
होवा छतां ते अनियत छे एटले पाणीनी उष्णतानी जेम ते टळी जाय छे. अग्निनी उष्णता ते तेनो नियतस्वभाव छे
एटले ते टळे नहि पण पाणीनी उष्णता ते अनियत छे एटले ते टळी जाय छे; तेम आत्मानो शुद्धचैतन्यमय
द्रव्यस्वभाव तो नियत छे तेनो कदी नाश थतो नथी, ने पर्यायनो विकार अनियतस्वभावे छे तेथी ते टळी जाय छे. मा
टे