Atmadharma magazine - Ank 113
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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: फागण: २४७९ आत्मधर्म : ९७ :
पर्यायमां एक समयनो विकार देखीने मूंझा नहि केम के आखुं द्रव्य विकारपणे थई गयुं नथी, द्रव्य तो
शुद्धस्वभावे रह्युं छे, तेनी द्रष्टि कर, एटले विकार टळी जशे ने शुद्धता प्रगटी जशे. पर्यायनो स्वभाव अनियत छे
एम जाणीने तेनो आश्रय छोड, ने द्रव्यनो स्वभाव नियत छे एम जाणीने तेनो आश्रय कर. अहो, हुं सदा
एकरूपे परम पारिणामिकभावे नियत छुं–एम जाणीने स्वाश्रय करतां सम्यग्दर्शनादि अपूर्वभाव प्रगटी जाय छे.
आत्मा सदाय चैतन्यप्रभुताथी भरेलो छे–एम नियतनय देखे छे अने पर्यायमां पामरता छे तेने
अनियतनय देखे छे. ए बंने धर्मो आत्मामां एक साथे छे. आत्माना आव बंने धर्मोने जे जाणे तेनुं जोर
स्वभावनी प्रभुता तरफ वळ्‌या विना रहे नहि, एटले द्रव्यनी प्रभुताना जोरे पर्यायनी पामरतानो नाश थया
विना रहे नहि.
द्रव्यस्वभावमां विकार नथी ने पर्यायमां विकार थयो तो ते क्यांथी आव्यो? शुं कर्मने लीधे आव्यो? ना;
विकार पण आत्मानो ज अनियतधर्म छे, आत्मानी पर्यायमां ते जातनी लायकात छे. अग्निना संयोग वखते
पाणी ऊनुं थयुं ते अग्निने लीधे थयुं नथी पण पाणीनी पर्यायमां ते प्रकारनी लायकात छे, ते उष्णता पाणीनो
अनियतधर्म छे, तेम आत्मामां जे रागादि पर्याय थाय छे ते तेनो अनियतधर्म छे. जो ते एक धर्मने पण काढी
नाखो के परने लीधे मानो तो आखी आत्मवस्तु ज सिद्ध थती नथी एटले के सम्यग्ज्ञान थतुं नथी. जेम सो
वर्षनी उंमरनो कोई माणस होय, तेना सो वर्षमांथी वच्चेनो एक समय पण काढी नांखो तो ते माणसनुं सो
वर्षनुं अखंडपणुं रहेतो नथी पण तेना बे कटका थई जाय छे, तेम आत्मा अनंत धर्मोनो अखंड पिंड छे, तेमांथी
तेना एक पण अंशने काढी नांखो तो अखंड वस्तु सिद्ध थती नथी.
अहीं नयथी जे जे धर्मोनुं वर्णन कर्युं छे ते धर्मो आत्माना छे एटले नयज्ञान स्व तरफ जुए छे. पर तरफ
जोये आत्माना धर्मोनुं यथार्थ ज्ञान नथी थतुं पण आत्मा तरफ वळीने ज तेना धर्मोनुं यथार्थ ज्ञान थाय छे.
केवळी भगवानने तेरमा गुणस्थाने योगनुं कंपन छे ते तेमनो अनियतधर्म छे, अघाति कर्मने लीधे ते
कंपन नथी. योगनुं कंपन ते पण आत्मानो पोतानो औदयिकभाव छे, ते पण स्वतत्त्वनो धर्म छे. द्रव्य अने
पर्याय बंने थईने प्रमाण छे, पर्यायनो धर्म ते पण आत्मानो पोतानो धर्म छे, पर्यायनो धर्म कांई परना आधारे
रहेलो नथी. पर्यायमां जे विकार थयो ते विकारपणे कोण भासे छे?–के अनियतनये आत्मद्रव्य पोते ज विकारपणे
भासे छे, कांई पर द्रव्य विकारपणे थतुं भासतुं नथी.
वस्तुना अनंत धर्मोने सर्वज्ञदेव प्रत्यक्ष जाणे छे, ने साधक सम्यग्ज्ञानी तेने प्रतीतमां ल्ये छे. आ धर्मो
आखा आत्मानी प्रतीति करावे छे, धर्मी एवा आत्मानी प्रतीति वगर तेना धर्मनी प्रतीत थाय नहि. आ तो
वीतरागताना मंत्रो छे.
प्रमाणज्ञान कराववा माटे द्रव्य अने पर्याय बंनेनी वात साथे ने साथे लीधी छे. नियतनय, द्रव्य
अपेक्षाए आत्माना नियतस्वभावने जुए छे अने ते ज वखते पर्याय अपेक्षाए आत्मामां अनियतस्वभाव
पण छे, तेने जोनारो अनियतनय छे. आत्मानी पर्यायमां भूल अने विकार सर्वथा छे ज नहि–एम नथी, भूल
अने विकार ते पण आत्मानो पोतानो अनियत स्वभाव छे, अने आत्मानो कायमी स्वभाव भूल वगरनो
चैतन्यस्वरूपी छे. वस्तुमां जेम होय तेम बधुं जो न जाणे तो ज्ञाननो महिमा शुं? अने तेनी प्रमाणता शी?
आत्माना विकाररहित त्रिकाळी स्वभावने ज्ञान जाणे छे अने पर्यायना क्षणिक विकारने पण जाणे छे. जो
स्वभावने अने विकारने–बंनेने न जाणे तो विकारमांथी एकाग्रता टाळीने स्वभावमां एकाग्र थवानुं रहेतुं नथी,
ने सम्यग्ज्ञान पण थतुं नथी एटले कोई जातनो धर्म थतो नथी.
द्रव्यपणे तो आत्मा सदा एकरूप नियत स्वभावे छे, ने तेनी पर्यायमां हीनाधिकताना अनेक प्रकारो पडे
छे तेथी अनियतपणुं पण छे. पर्यायमां अनेक प्रकारो ने विकारो छे तेने जो न जाणे तो ज्ञान सम्यक् थतुं नथी.
जेम अग्निमां उष्णता तो नियत छे, ने पाणीमां उष्णता अनियत छे एटले क्यारेक होय ने क्यारेक न पण होय.
पाणीनो कायमी स्वभाव ठंडो होवा छतां तेनी वर्तमान हालतमां जे उष्णता छे ते तेनो पोतानो अनियत
स्वभाव छे, उष्णतापणे थवानी तेनी पोतानी क्षणिक लायकात छे; जो ते अनियत उष्णस्वभावने न जाणे अने