
शुद्धस्वभावे रह्युं छे, तेनी द्रष्टि कर, एटले विकार टळी जशे ने शुद्धता प्रगटी जशे. पर्यायनो स्वभाव अनियत छे
एम जाणीने तेनो आश्रय छोड, ने द्रव्यनो स्वभाव नियत छे एम जाणीने तेनो आश्रय कर. अहो, हुं सदा
एकरूपे परम पारिणामिकभावे नियत छुं–एम जाणीने स्वाश्रय करतां सम्यग्दर्शनादि अपूर्वभाव प्रगटी जाय छे.
स्वभावनी प्रभुता तरफ वळ्या विना रहे नहि, एटले द्रव्यनी प्रभुताना जोरे पर्यायनी पामरतानो नाश थया
विना रहे नहि.
पाणी ऊनुं थयुं ते अग्निने लीधे थयुं नथी पण पाणीनी पर्यायमां ते प्रकारनी लायकात छे, ते उष्णता पाणीनो
अनियतधर्म छे, तेम आत्मामां जे रागादि पर्याय थाय छे ते तेनो अनियतधर्म छे. जो ते एक धर्मने पण काढी
नाखो के परने लीधे मानो तो आखी आत्मवस्तु ज सिद्ध थती नथी एटले के सम्यग्ज्ञान थतुं नथी. जेम सो
वर्षनी उंमरनो कोई माणस होय, तेना सो वर्षमांथी वच्चेनो एक समय पण काढी नांखो तो ते माणसनुं सो
वर्षनुं अखंडपणुं रहेतो नथी पण तेना बे कटका थई जाय छे, तेम आत्मा अनंत धर्मोनो अखंड पिंड छे, तेमांथी
तेना एक पण अंशने काढी नांखो तो अखंड वस्तु सिद्ध थती नथी.
पर्याय बंने थईने प्रमाण छे, पर्यायनो धर्म ते पण आत्मानो पोतानो धर्म छे, पर्यायनो धर्म कांई परना आधारे
रहेलो नथी. पर्यायमां जे विकार थयो ते विकारपणे कोण भासे छे?–के अनियतनये आत्मद्रव्य पोते ज विकारपणे
भासे छे, कांई पर द्रव्य विकारपणे थतुं भासतुं नथी.
वीतरागताना मंत्रो छे.
पण छे, तेने जोनारो अनियतनय छे. आत्मानी पर्यायमां भूल अने विकार सर्वथा छे ज नहि–एम नथी, भूल
अने विकार ते पण आत्मानो पोतानो अनियत स्वभाव छे, अने आत्मानो कायमी स्वभाव भूल वगरनो
चैतन्यस्वरूपी छे. वस्तुमां जेम होय तेम बधुं जो न जाणे तो ज्ञाननो महिमा शुं? अने तेनी प्रमाणता शी?
आत्माना विकाररहित त्रिकाळी स्वभावने ज्ञान जाणे छे अने पर्यायना क्षणिक विकारने पण जाणे छे. जो
स्वभावने अने विकारने–बंनेने न जाणे तो विकारमांथी एकाग्रता टाळीने स्वभावमां एकाग्र थवानुं रहेतुं नथी,
ने सम्यग्ज्ञान पण थतुं नथी एटले कोई जातनो धर्म थतो नथी.
जेम अग्निमां उष्णता तो नियत छे, ने पाणीमां उष्णता अनियत छे एटले क्यारेक होय ने क्यारेक न पण होय.
पाणीनो कायमी स्वभाव ठंडो होवा छतां तेनी वर्तमान हालतमां जे उष्णता छे ते तेनो पोतानो अनियत
स्वभाव छे, उष्णतापणे थवानी तेनी पोतानी क्षणिक लायकात छे; जो ते अनियत उष्णस्वभावने न जाणे अने