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रागथी आत्माने धर्मनो कांई लाभ थाय नहि. जे जीव रागथी लाभ माने ते
सर्वज्ञ भगवाननो साचो भक्त नथी. धर्म करनार जीव एटले के भगवाननो
साचो भक्त तो भगवानना ज्ञानस्वरूपी आत्माने ओळखीने अने तेवा ज
पोताना आत्मस्वभावने ओळखीने तेना अवलंबने पोतामां सम्यग्दर्शन–ज्ञान–
चारित्र प्रगट करे छे. सर्वज्ञ वीतराग भगवाने जे केवळज्ञानादि प्रगट कर्या छे ते
अंतरना ज्ञानस्वभावना अवलंबनथी ज प्रगट कर्या छे, पुण्य–पापना भावो तो
पहेलांं भगवाननुं तेम ज भगवान जेवा पोताना आत्मानुं साचुं स्वरूप
समजवुं जोईए. आत्माने समजवाना प्रयत्नमां काळ जाय तेनो वांधो नहि, त्यां
थोडीवार लागे तोपण ते सत्यना पंथे छे; पण जो आत्मानुं सत्यस्वरूप
समजवानो मार्ग न ल्ये अने रागमां ज धर्म मानीने रोकाई जाय तो ते जीव
अज्ञानभावे संसारना भावमां ज भटकया करशे..... आत्मानी समजण विना
क्यांय तेना आरा नहि आवे. जो साची समजणनो प्रयत्न हशे तो अल्पकाळमां
भवनो अंत आवी जशे. भगवाननो साचो भक्त थाय तेने विशेष भव होय ज
नहि. भगवाननो साचो भक्त थवा माटे, प्रथम आत्मानी स्थिरता भले
ओछी–वधती होय, पण जेवो परिपूर्ण आत्मस्वभाव छे अने तेनो जे मार्ग छे
मार्ग छे, ते श्रद्धाथी पण धर्मीपणुं टकी रहेशे. पण जे जीव रागादिथी धर्म मानीने
ऊंधी श्रद्धा करशे तेनो तो मनुष्यभव एळे चाल्यो जशे. माटे भगवाननो भक्त
प्रथम आत्माने ओळखीने यथार्थ श्रद्धा करे.