Atmadharma magazine - Ank 113
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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: फागण: २४७९ आत्मधर्म : ८७ :
कामदेव हता अने तीर्थंकर हता तेमणे ज्यारे दीक्षा लीधी हशे ते वखतनी वैराग्यदशानी अने ते प्रसंगनी शुं
वात!! धन्य ते काळ.....अने धन्य ते भाव. छ खंडमां सर्वोत्तम जेमनुं रूप हतुं, उत्तम भोग हतो अने जे तीर्थंकर
छे एवा शांतिनाथ भगवान चारित्रदशा धारण करीने अप्रमत्तस्वरूपमां झूली रह्या छे....क्षणमां भेदनी के
महाव्रतनी वृत्ति ऊठे छे ने बीजी क्षणे ते वृत्ति तोडीने पाछा निर्विकल्प आत्मअनुभवमां एवां लीन थई जाय
छे–जाणे के सिद्ध बेठा... आवी भगवाननी दशा छे. आवी चारित्रदशा अत्यारे तो धोखपंथे महाविदेह क्षेत्रमां
छे..... अत्यारे अहीं एवी दशाना दर्शनना भाग्य क्यांथी होय!–पण ए दशा कर्या वगर कोईनी मुक्ति होती नथी.
पहेलांं तो शुद्धआत्माना भान वडे मिथ्यात्वनो क्षय कर्यो अने पछी राग–द्वेषने हणीने आत्मा ‘सम
सुख–दुःख’ थयो एटले कोई अनुकूळ के प्रतिकूळ संयोगमां ‘आ ठीक अने आ अठीक’ एवो विषमभाव थतो
नथी, चैतन्यना अनुभवमां आनंदनी लीनतामां क्यांय सुख–दुःखनी लागणी थती नथी एटले समभावे (–
राग–द्वेष रहित वीतरागभावे) चैतन्यमां लीनता वडे जीव श्रामण्यभावमां परिणमे छे तेनुं नाम चारित्रदशा
अने मुनिपद छे. एवा चारित्रवाळो जीव अल्पकाळे मुक्तिनुं अक्षय सुख पामे छे.
शांतिनाथ भगवाने एवी चारित्रदशा प्रगट करी ने केवळज्ञान प्रगटावी अक्षयसुखने पाम्या; केवळज्ञान
अनेकान्तमूर्ति भगवान आत्मानी
केटलीक शक्तिओ
[१४]
• अकयकरणत्व शक्त •
ज्ञानस्वरूपी आत्मामां अनंत शक्तिओ रहेली छे तेनुं आ वर्णन चाले छे; अत्यार सुधी तेर शक्तिओनुं
विवेचन थई गयुं छे. चौदमी अकार्यकारणत्वशक्ति छे. आत्माना द्रव्य गुण के पर्यायने कोई परवस्तु करती नथी
तेथी आत्मा अकार्य छे, अने आत्मा कोई परवस्तुना द्रव्य गुण के पर्यायने करतो नथी तेथी आत्मा अकारण छे;
पर साथेना कार्य–कारणभाव वगरनो आत्मा पोते सर्वेथी भिन्न एक द्रव्यस्वरूप छे. आवा आत्माने जे ओळखे
तेने स्वभावनुं कार्य प्रगट्या विना रहे नहि. आत्मस्वभावना अवलंबने जे निर्मळ पर्याय प्रगटी ते आत्मानुं
कार्य छे अने आत्मा ज तेनुं कारण छे. ए सिवाय कोई पण पर चीज आत्माना कार्यनुं कारण छे ज नहीं.
आत्मामां अनंत शक्तिओ छे पण तेमां कोई एवी शक्तिओ नथी के जेथी आत्मा परनुं कारण थाय. आत्मानुं
कारण पर नहि ने परनुं कारण आत्मा नहि; आत्माना स्वकारणकार्य आत्मामां, ने परना कारणकार्य परमां.
आ अकार्यकारणत्वशक्ति आत्मामां त्रिकाळ छे, एटले खरेखर तो क्षणिक विकारनुं कार्य–कारणपणुं पण
आत्मामां नथी. जो त्रिकाळी आत्मा विकारनुं कारण होय