Atmadharma magazine - Ank 114
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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प्रथम वैशाखः २४७९ः १२९ः
पणे पोतानी वैराग्यभावनामां अचल ज हता.–छेवटे,
जूनागढना राजमहेलना आंगणे आवेलो ए रथ
पाछो फरीने अद्रश्य थई गयो.......
भगवानना वैराग्यनो आ प्रसंग घणो ज
गंभीर अने भव्य हतो....जाणे नेमिनाथ भगवान
साक्षात् नजर सामे ज वैराग्य पामता होय–एवुं ते
वखते लागतुं हतुं. पशुओना पोकारनुं दश्य पण
आबेहूब हतुं.
दूरथी देखाई रहेलो भगवाननो रथ अचानक
अदश्य थतां राजीमतीने आश्चर्य थाय छे अने पोतानी
सखी पासेथी भगवानना वैराग्यना समाचार
सांभळता पोते पण वैराग्य पामीने संयमनी भावना
भावे छे–ए प्रसंग पडदा पाछळथी ज संवाद अने
काव्य द्वारा रजू करवामां आव्यो हतो. आ वखते खूब
ज भावभीनी शैलीथी एक वैराग्यमय काव्य गवायुं
हतुं. ते काव्य सांभळतां आखी सभा वैराग्यथी गदगद
थईने डोली ऊठी हती. ए काव्य नीचे मुजब हतुं–
ओ.....सांवरिया नेमिनाथ शाने गया गीरनार
ओ......तीन भुवन के नाथ शाने गया गीरनार.
शुं रे कुदरतमां रचायुं शुं रे थयो अपराध...
शाने गया गीरनार
तोरण सें रथ फेर स्वामी गीरी गुफा वसनार...
शाने गया गीरनार
रथडो वाळो....करुणा धारो लहुं संयम तुम साथ
शाने छोडयो संसार
नाथ निरागी स्वरूप म्हाली मुनिन्द्र पद धरनार
शाने छोडयो संसार
सहस्रावन में जाके स्वामी श्रेणी क्षपक चढनार
शाने गया वनवास
भव्य अनंत के तारनहारे मुजने तारो दयाल
शाने गया वनवास
धन्य सुअवसर मिला संयम का धरुं संयम प्रभु पास
प्रभु गया गीरनार
यह आभूषण मेरे अंग पर अब न सोहे लगार
प्रभु गया गीरनार
छोडुं शणगार बनुं अर्जिका रहुं चरण संत छांय
प्रभु गया गीरनार
दीक्षा कल्याणक
आ तरफ, संसारथी विरक्त थयेला नेमिनाथ
भगवान उपशमभावथी अंतरमां बार
वैराग्यभावनाओनुं चिंतवन करी रह्या छे, त्यां
भगवानना वैराग्यनी खबर पडतां ज लौकांतिकदेवो
आवीने प्रभुचरणे पुष्पांजलि अर्पीने स्तुति करे छे–
(लौकांतिकदेवो तरीके सोनगढना बालब्रह्मचारी
भाईओ वगेरे हता)
वंदो वंदो परम वीरागी त्यागी जिनने रे.....
थाये जिन दिगंबर मुद्राधारी देव....
–नेमिनाथ प्रभुजी तपोवनमां संचरे रे....
*
धन्य तुं......धन्य तुं.....धन्य नेमिनाथ तुं......
धन्य हो नाथ! वैराग्य उत्तम लहा..........
आपको बोधने बल धरें हम नहीं
मात्र भक्ति करें पाप आवे नहीं........
–इत्यादि स्तुति करीने पछी भक्तिपूर्वक
वैराग्य संबोधन करे छे केः अहो! वैराग्यमूर्ति
नेमिनाथ भगवान! विवाह समये वैराग्य धारण
करीने आपश्री जगतने वीतरागतानो एक भव्य
आदर्श आपी रह्या छो.....आ संसारना भोग खातर
आपनो अवतार नथी पण आत्माना मोक्ष खातर
आपनो अवतार छे. आ भव तन अने भोगथी
विरक्त थईने आत्माना चिदानंद स्वभावमां पुर्णपणे
समाई जवा माटे आपश्री जे वैराग्यचिंतन करी रह्या
छो तेने अमारी अत्यंत अनुमोदना छे. प्रभो!
आपना रोमे रोमे वैराग्यनी छाया छवाई गई छे,
आपना प्रदेशे प्रदेशे वीतरागभाव उल्लसी रह्यो छे.
धन्य छे प्रभो! आपनी वैराग्यभावनाने धन्य
छे.........हे नाथ! आप भगवती दिगंबर मुनिदशा
अंगीकार करीने आत्माना अतीन्द्रिय आनंदमां झुलतां
झुलतां अप्रतिहतभावे केवळज्ञान पामो अने अमारा
जेवा भव्य जीवोने माटे मोक्षना दरवाजा खुल्लां
करो..... आपना जेवुं पवित्र वैराग्यजीवन अमने पण
प्राप्त थाव......’
–ए प्रमाणे लौकांतिक देवोना वैराग्यसंबोधन बाद
नेमिनाथ प्रभुजी दीक्षा माटे वनमां जवा तैयार थाय
छे. देवो दीक्षा कल्याणक ऊजववा आवे छे ने प्रभुजीने
पालखीमां बिराजमान करीने सहस्राम्रवनमां लई जाय
छे–ए द्रश्य थयुं हतुं. दीक्षा माटे भगवाननी
वनयात्रानुं द्रश्य