Atmadharma magazine - Ank 114
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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ः १२८ःः मानस्तंभ–महोत्सव अंकः
सोना–चांदीना पारणीये प्रसन्नवदन प्रभुजी झूली रह्या हता. ए नानकडा भगवानने नीरखतां ज हैयामां स्नेह
अने भक्ति ऊभराई जतां हतां.....अने एम थतुं हतुं के अहो! भगवान थवा माटे एनो अवतार छे...धन्य
एनो अवतार! ए मोटो थईने मुनि थशे अने आत्माना आनंदमां झूलतां झूलतां केवळज्ञान प्रगट करीने
अनेक भव्य जीवोने भवसमुद्रथी पार करशे.–आवा प्रभुजीना पारणांने पू. बेनश्री–बेनजी जेवा पवित्रात्माओ
ज्यारे हैयाना उमळकाथी वात्सल्यपूर्वक झूलावी रह्या हता त्यारे तो, जाणे के तीर्थंकरनी माताना हाथे
तीर्थंकरप्रभु पारणे झूली रह्या होय–एवुं ए द्रश्य हतुं.....ए पावन द्रश्य जोतां एम थतुं हतुं के अहो! तीर्थंकरना
महिमानी तो शुं वात? परंतु जे हाथ तीर्थंकरनुं पारणुं झुलावी रह्या छे ते हाथ पण धन्य छे!!
*
लग्ननी तैयारी
रात्रे समुद्रविजय महाराजानी राजसभानो देखाव थयो. राजसभामां सौ कुटुंबीजनो बेठा छे अने
पोताना हरिवंशमां नेमिनाथ तीर्थंकरनो जन्म थयो ते माटे हर्ष मनावी रह्या छे के अहो! पूर्वे शांतिनाथ
भगवान वगेरे तीर्थंकरो जे कुळमां जन्म्या ते ज कुळमां आजे नेमिनाथ भगवाने जन्म लईने आपणा कुळने
पावन कर्युं छे.
त्यार पछी–यादवकुमारो वसंतऋतु खेली रह्या छे ए देखाव थयो हतो, तेमां नेमिकुमार पण साथे हता.
खेली रह्या पछी नेमिकुमार श्रीकृष्णनी एक राणीने एक वस्त्र धोवानुं कहे छे; राणी ना पाडतां कहे छे के मारा
कृष्ण जेवुं बळ तमारामां नथी. आ उत्तर सांभळतां ज नेमिकुमार जईने कृष्णनो शंख फूंकवो वगेरे कार्यो करे छे;
तेमनुं दिव्यबळ जोतां कृष्णने चिंता थाय छे, तेथी नेमिकुमार वैराग्य पामीने दीक्षा लई ल्ये एवी युक्ति विचारे
छे. राजकुमारी राजीमती साथे नेमिकुमारना विवाहनी तैयारी थाय छे, ने देशोदेशना राजाओ भेट लईने आवे
छे,–आ बधां द्रश्यो थयां हतां.
विवाह प्रसंगे भगवान श्री नेमिकुमारनी जाननुं द्रश्य अत्यंत भव्य हतुं. लग्न प्रसंगे भेट लईने
आवेला देशोदेशना राजा–महाराजाओ पण जानमां साथे हता. राजकुमार नेमिनाथ एक सुशोभित रथमां
बिराजी रह्या हता ने सारथी रथना घोडाने धीरेधीरे चलावी रह्यो हतो.....ए रीते श्री नेमिकुमारनी जान
जूनागढ तरफ जई रही हती. आ वखते रथमां बिराजमान भगवाननी अत्यंत धीरगंभीर मुद्रा जोतां एम
आश्चर्य थतुं हतुं केः अरे! आ भगवान ते शुं राजीमतीने परणवा जाय छे?–के मुक्तिने वरवा जाय छे!
*
वैराग्य
(चैत्र सुद आठमः रविवार सवारमां)
भगवान नेमिकुमारनी जान जूनागढनी एकदम नजीक आवी गई छे, लोको उत्सुकतापूर्वक जाननुं द्रश्य
नीहाळी रह्या छे...परंतु–जाननुं द्रश्य पूरुं जोई रहे ते पहेलां तो सामे एक जुदुं ज द्रश्य खडुं थयुंः भगवाननो रथ
जे रस्तेथी पसार थई रह्यो छे तेनी बाजुमां पींजरे पूरायेला पशुओ करुण पोकार करी रह्या हता. पशुओनो
करुण पोकार सांभळतां नेमप्रभु सारथीने पूछे छे के अरे सारथी! आ पशुडांने अहीं केम पूर्यां छे? सारथी
जवाब आपे छे के हे नाथ! आ पशुओनी हिंसा करवा माटे अहीं पूर्यां छे, आपना लग्नप्रसंगे तेमनी हिंसा
थशे. सारथीनी वात सांभळतां ज–अरे! मारां लग्न निमित्ते आ निर्दोष जीवोनी हिंसा!!–एम विचारी
भगवान एकदम वैराग्य पामी जाय छे....अने कहे छे के ‘अरे सारथी! रथने पाछो वाळ! हवे रथने आगळ न
चलावीश.....मारे नथी परणवुं.....हुं दीक्षित थईने संयम अंगीकार करीश.’ भगवाननी दीक्षानी वात सांभळतां
ज सारथी एकदम गदगदित थई जाय छे ने आंसुझरती आंखे भगवानने खूबखूब विनवे के ‘हे नाथ! आप
दीक्षा न ल्यो....आप घेर पाछा पधारो....हे प्रभो! आपना विना अमे घेर जईशुं अने शिवादेवी मने पूछशे के
‘मारा नेमिकुमार कयां?’–तो हुं शो जवाब आपीश! ‘नेमिकुमार दीक्षित थई गया’ एम हुं कहीश तो ते
सांभळतां ज शिवादेवी माता मूर्च्छा खाईने जमीन पर गिर पडशे...’–आम कहेतां कहेतां सारथी पोते पण
मूर्च्छित थईने भगवानना चरणोमां ढळी पडे छे. आ वखतनुं एकदम करुण द्रश्य बधानां हैयांने हचमचावी देतुं
हतुं...छतां विशेषता तो ए हती के आ द्रश्य जोनारा बधा ज्यारे करुणताथी पीगळी जता हता त्यारे पण
भगवान नेमिकुमार तो अत्यंत धीर–गंभीर