Atmadharma magazine - Ank 115
(Year 10 - Vir Nirvana Samvat 2479, A.D. 1953)
(Devanagari transliteration).

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द्वितीय वैशाखः २४७९ः १४९ः
होय ते वखते पण अंतरमां ज्ञायकद्रष्टिनी मुख्यता कदी छूटती नथी, तेम ज छठ्ठा गुणस्थान जेटली आत्मजागृति
ते वखते पण वर्ते छे.
जेने द्रव्य–गुणपर्यायनी स्वतंत्रतानुं भान होय अने आत्मामां घणी एकाग्रता वर्तती होय तेने ज
मुनिदशा होय छे. जेने हजी द्रव्य–गुण–पर्यायनी स्वतंत्रतानी खबर न होय ने कर्मना उदयने लीधे विकार थाय
एम मानता होय–तेने तो मुनिदशानी गंध पण कयांथी होय? सम्यग्दर्शन थया पछी पण मुनिदशा माटे घणो
पुरुषार्थ मांगे छे. वस्त्रनो त्याग के मजबूत शरीर वगेरे कोई बाह्य कारणोने लीधे मुनिदशा थती नथी पण
आत्मा पोते कर्ता थईने मुनिदशा प्रगट करे छे, मुनिदशाना छए कारकोपणे आत्मा पोते ज परिणमे छे.
सम्यग्दर्शन, सम्यग्ज्ञान तेमज सम्यक्चारित्र ए त्रणेय आत्मा पोते पोताना पुरुषार्थथी करे त्यारे थाय छे,
आत्माना अंतर्मुख पुरुषार्थ वगर ते थई जतां नथी. चैतन्यस्वभावमां अंतर्मुख थईने लीन थतां राग टळी
जाय छे, राग टाळवा माटे जुदो पुरुषार्थ करवो पडतो नथी. पहेलां ज्ञायकस्वभावनी द्रष्टि करतां अपूर्व
सम्यग्दर्शन थाय छे, तेना कर्तापणे आत्मा ज परिणमे छे; सम्यग्दर्शन पछी बारभावनारूपी वीतरागी परिणति
तेम ज मुनिदशा थाय छे ते पण आत्मा पोते पोतानी स्वाधीन कर्तृत्वशक्तिथी ज करे छे; ते ते अवस्थाना छए
कारकपणे आत्मा पोते परिणमे छे. भगवाननो आत्मा पोते छ कारकरूपे थईने आजे वीतरागी मुनिदशारूपे
परिणम्यो. मुनिदशामां चार ज्ञान सहित, आत्माना आनंदमां झूलतां झूलतां केटलोक काळ वीत्या पछी भगवाने
शुक्लध्याननी अप्रतिहत श्रेणी मांडीने केवळज्ञान प्रगट कर्युं.
आ रीते आजे भगवाननी दीक्षानो महामांगळिक दिवस छे.
*
शुद्धभावथी धर्म
आत्माना परमशुद्ध स्वभावनी श्रद्धा, ज्ञान अने तेमां स्थिरता वडे पर्यायमां जे शुद्धभाव प्रगटे छे ते
मोक्षनुं कारण छे. आत्मानो त्रिकाळ परमशुद्ध स्वभाव छे ते ज उपादेय छे, पुण्य–पाप ए बंने विकारी भावो छे,
ते छोडवा जेवा छे; ए बंने भावो अशुद्धभावना पडखा छे, तेनाथी धर्म थतो नथी. धर्म तो आत्माना
शुद्धभावथी थाय छे.
–नियमसारना प्रवचनोमांथी.
*
जगतने जरूरनुं
अहो! आत्मतत्त्वनी वात
तो जगतने पहेली समजवा जेवी
छे; बीजुं तो भले आवडे के न
आवडे पण आ वात तो जरूर
समजवा जेवी छे. आ समज्या
विना कल्याण थवानुं नथी. आ
समजशे तो ज भवथी नीवेडा
आवशे.
–प्रवचनमांथी.